आयी ज्ञान की आँधी / संजय कुंदन


संजय कुंदन का यह नाटक मौजूदा दौर पर एक तीखा व्यंग्य है। इतना तीखा कि एकाधिक जगहों पर छपते-छपते रह गया। तो अब यहाँ पढ़िये…
और खेलिये!

आयी ज्ञान की आँधी 

 

पात्र

परमज्ञानी
चरमज्ञानी
विशाल गजपति
ज्योति देवी
कोरस (कम से कम 5)

 

(परमज्ञानी और चरमज्ञानी आकर गाते हैं )

हम अतीत से खोजकर-खोजकर लेकर आए ज्ञान,
इसी ज्ञान को अपनाकर के बनना हमें महान,
फिर से सतयुग लाने का हम करते हैं आह्वान,
आई ज्ञान की आंधी रे, आई ज्ञान की आंधी रे।

जग को फिर से देंगे अपनी प्रतिभा का प्रमाण,
सदा रहे हैं इस धरती पर हम बुद्धि की खान,
हम हैं हम हैं हम हैं ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ संतान,
आई ज्ञान की आंधी रे, आई ज्ञान की आंधी रे।

खोल के खोपड़ी भर देना है सबके भीतर ज्ञान,
तर्क नहीं करना है कोई, सुनो खोलकर कान,
ज्ञान के आड़े जो भी आए, लेंगे उसके प्राण,
आई ज्ञान की आंधी रे, आई ज्ञान की आंधी रे।

परमज्ञानीः मैं हूं परमज्ञानी।
चरमज्ञानीः मैं हूं चरमज्ञानी।
परमज्ञानीः हम यह बताने आए हैं कि हम अब जाग चुके हैं।
चरमज्ञानीः हमें अतीत के उस ज्ञान को अपनाना है जिसने हमें महान बनाया।
परमज्ञानीः विश्वगुरु बनाया।
चरमज्ञानीः हमारा ही ज्ञान लेकर दुनिया आगे बढ़ी। है न परमज्ञानी जी?
परमज्ञानीः जी चरमज्ञानी जी। आज दुनिया के पास जो कुछ भी है वो हमारा है।
चरमज्ञानीः वही जो हमारा प्राचीन ज्ञान है।
परमज्ञानीः दुख है कि हमीं उस ज्ञान को भूल गए।
चरमज्ञानीः इसलिए हम पिछड़ गए।
परमज्ञानीः कारण यह था कि शासन पर अज्ञानियों का वर्चस्व हो गया।
चरमज्ञानीः मूर्खों का।
परमज्ञानीः वे दूसरों की ऩकल करने लगे।
चरमज्ञानीः उनके घटिया ज्ञान को अपना ज्ञान समझने लगे।
परमज्ञानीः वो कहते थे हर मनुष्य समान होता है।
चरमज्ञानीः कितनी बेकार बात है। हर मनुष्य समान कैसे हो सकता है। ऊपर वाले ने ही किसी को ऊंचा बनाया है तो किसी को नीचा।
परमज्ञानीः नई पीढ़ी को यह सब बताना होगा कि हमारे ज्ञान से ही विश्व चल रहा है।
चरमज्ञानीः हम शुद्धीकरण करेंगे। इतिहास, विज्ञान, साहित्य जिस क्षेत्र में जो गलतियां हुई हैं, उन्हें सुधारेंगे। और अपने प्राचीन ज्ञान के सहारे चलेंगे।
परमज्ञानीः शासन-प्रशासन, खेती-बारी, उद्योग-धंधा, कार्यपालिका, न्यायपालिका सब कुछ प्राचीन ज्ञान से चलेगा।
परमज्ञानीः हमारे ज्ञान का डंका एक बार फिर दुनिया में बजेगा।
चरमज्ञानीः ज्ञान की ऐसी आंधी लाएंगे कि हमारे सारे विरोधी ढेर हो जाएंगे।
परमज्ञानीः हमारे पैरों में गिरकर दया की भीख मांगेंगे। क्यों चरमज्ञानी जी?
चरमज्ञानीः जी परमज्ञानी जी।
(वे गाते हुए जाते हैं-‘आई ज्ञान की आंधी रे…’। स्कूल की घंटी बजती है और कोरस छात्रों की तरह आकर बैठता है। परमज्ञानी शिक्षक के रूप में आता है।)
परमज्ञानीः बच्चो, आज हम प्राणिशास्त्र पढ़ेंगे। बताओ, ऐसा कौन सा प्राणी है जो ऑक्सीजन लेता भी है और छोड़ता भी है?
कोरस-1ः ऐसा कौन जानवर है?
परमज्ञानीः जानवर नहीं प्राणी बोलो।
कोरस-2ः हमें तो यही पढ़ाया गया है कि हर जीव ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डायऑक्साइड छोड़ता है।
परमज्ञानीः परंतु एक अपवाद भी है। वह है गाय। पवित्र गाय। वह ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। वातावरण को शुद्ध रखने में उसका बड़ा योगदान है।
कोरस-3ः सर अगर गाय ऑक्सीजन छोड़ती है तो फिर कोरोना के समय ऑक्सीजन की कमी से इतने लोग मर कैसे गए? गाय के पास जाकर सिलेंडर भर लेते।
(सब हंसते हैं)
परमज्ञानीः (ग़ुस्से से) मज़ाक करता है। गौ माता के लिए अपशब्द बोलता है। कान पकड़ के खड़ा हो जा।
(कोरस-3 कान पकड़कर खड़ा होता है)
परमज्ञानीः गोबर के लाभ बताओ।
कोरस-2ः गोबर से घर की सफाई होती है।
कोरस-1ः गोबर से उपले बनते हैं। उसका खाद बनता है।
परमज्ञानीः और कुछ…। गोबर का एक बहुत बड़ा गुण है जो किसी को पता नहीं है। गोबर से बने घर पर ऐटम बम के हमले का भी कोई असर नहीं होता।
कोरस-3ः सर, तब हमारा स्कूल गोबर से क्यों नहीं बनवाया गया है। सीमेंट से क्यों बना है?
परमज्ञानीः तुमको सज़ा मिली है न। बक-बक मत करो।
परमज्ञानीः वैसे यह बात जान लीजिए आप लोग। ये सब ताक़त केवल भारतीय देसी गाय के गोबर में है। जर्सी गाय के गोबर में नहीं है। जैसे ऑक्सीजन सिर्फ़ देसी गाय छोड़ती है, जर्सी गाय नहीं।
कोरस-4ः लेकिन हमने यह सब आज तक किसी किताब में नहीं पढ़ा।
परमज्ञानीः आप लोगों को ग़लत चीज़ें पढ़ाई गई हैं। बहुत कुछ छुपाया गया है। लेकिन अब जो हमारा असली ज्ञान है, वह बताया जाएगा। जान लीजिए, दुनिया के सारे जीव-जंतु भारत की पवित्र भूमि पर पैदा हुए हैं।
कोरस-1ः सारे जीव-जंतु… डायनासोर भी?
परमज्ञानीः बिल्कुल। क्या आपको पता है कि डायनासोर की खोज किसने की थी? बताइए।
कोरस-2ः नहीं पता है सर।
परमज्ञानीः ब्रह्मा जी ने। ब्रह्मा जी ने सबसे पहले डायनासोर ढूंढा था। उसका नाम था- राजासुर। राजासुर नाम का डायनासोर भारत में मिला था।
कोरस-3ः लेकिन जो फिल्म आई थी जुरासिक पार्क उसमें तो यह नहीं दिखाया गया था।
परमज्ञानीः ठीक कह रहे हो। बैठ जाओ। विदेशी फिल्में भारतीय ज्ञान को छुपाती हैं। विदेशी लोग हर चीज के बारे में झूठ बोलते हैं। वे झूठ बोलते हैं कि इंटरनेट अमेरिका में शुरू हुआ। जबकि इंटरनेट भारत में सबसे पहले शुरू हुआ। महाभारत युद्ध का हाल धृतराष्ट्र को संजय ने कैसे बताया? इंटरनेट से। आज जो बड़े-बड़े हथियार हैं, वे सब भारत में सदियों पहले बन चुके थे। प्राचीन काल में गाइडेड मिसाइलें थीं जो मंत्र से चला करती थीं। मंगल पर जाने की बात आज हो रही है। हमारे पूर्वज तो पहले ही कई ग्रह घूम आए हैं।
कोरस-2ः लेकिन सर किताब में तो लिखा है कि…।
परमज्ञानीः फेंक दो किताबें। आप सबके दिमाग में कचरा भर दिया गया है। जल्दी ही आप सबको नई किताबें मिलेंगी जिसमें अपना ज्ञान होगा, हमारा प्राचीन ज्ञान। बताइए। भौतिकी में क्या पढ़ना है?
कोरस-5ः सर, गुरुत्वाकर्षण नियम पढ़ना है।
परमज्ञानीः गुरुत्वाकर्षण नियम की खोज किसने की थी? हाथ उठाइए।
(कोरस-2 हाथ उठाता है)
परमज्ञानीः बताइए।
कोरस-2ः न्यूटन ने। वह सेब के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। तभी एक सेब गिरा। सेब को देखते ही उनके दिमाग में यह नियम आ गया।
परमज्ञानीः बिल्कुल ग़लत। दुनिया को यही पता है कि न्यूटन ने इसकी खोज की थी। पर हमें पता है इसकी खोज किसने की थी।
सभीः किसने सर?
परमज्ञानीः इसकी खोज भारत के एक महान ऋषि ने की थी। उनका नाम था आचार्य लूटन। और आचार्य लूटन सेब के पेड़ के नीचे नहीं आम के पेड़ के नीचे बैठे थे। एक आम के टपककर गिरते ही उनके दिमाग में यह नियम आ गया। उनकी इस खोज को विदेशियों ने चुरा लिया और आचार्य लूटन की जगह न्यूटन का नाम रख दिया। कोई गुरुत्वाकर्षण का नियम बता सकता है।
कोरस-4ः जी सर। मुझे तीसरा नियम याद है।
परमज्ञानीः बताओ।
कोरस-4ः प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
परमज्ञानीः कोई उदाहरण।
कोरस-4ः जैसे मैंने किसी लड़की को आंख मारी और उसने मेरी ओर चप्पल उठाकर फेंका। यही क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया है।
(लड़के हंसते हैं)
परमज्ञानीः मूर्ख, यह कोई उदाहरण है। चल मुर्गा बन। (कोरस-4 मुर्गा बनता है) क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया बहुत बड़ी बात है। मैं एक उदाहरण बताता हूं। अगर किसी ने प्राचीन ज्ञान पर सवाल उठाया, हमारी संस्कृति पर कोई सवाल उठाया तो हम शस्त्र उठाएंगे। उसका नाश करेंगे। यह होगी क्रिया की प्रतिक्रिया।

(घंटी बजती है। पूरा कोरस बैठा रहता है। परमज्ञानी जाता है। चरमज्ञानी आता है)

चरमज्ञानीः बच्चो, इतिहास की इस कक्षा में आज कौन सा अध्याय पढ़ना है?
कोरस-1ः आज शिवाजी पढ़ना है।
कोरस-2ः मैं शिवाजी पर लेख लिखकर लाया हूं।
चरमज्ञानीः सुनाओ।
कोरसः2 ( कॉपी खोलकर पढ़ता हुआ) शिवाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी और मां का नाम जीजाबाई था। शिवाजी बचपन से ही बहादुर थे। उन्होंने औरंगजेब के दांत खट्टे कर दिए।
चरमज्ञानीः किसके दांत खट्टे कर दिए?
कोरस-2ः औरंगजेब के।
चरमज्ञानीः बंद करो बकवास। तुम्हें शर्म नहीं आती यह घटिया नाम लेते हुए?
कोरस-2ः मैंने किताब से देखकर लिखा है।
चरमज्ञानीः अब इतिहास में मुगल शासन नहीं पढ़ाया जाएगा। किसी भी मुगल शासक का नाम नहीं लेना है अब। अपना लेख बदलो। लिखो कि महान सपूत शिवाजी ने अपने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए।
कोरस-2ः औरंगजेब की जगह दुश्मन लिख दूं?
चरमज्ञानीः फिर तुमने वो नाम लिया।
कोरस-2ः ठीक है। लिख देता हूं दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए।
चरमज्ञानीः अगला अध्याय क्या है?
कोरस-3ः महात्मा गांधी है सर। मैं उन पर लेख लिखकर लाया हूं।
चरमज्ञानीः सुनाओ।
कोरस-3ः (कॉपी खोलकर पढ़ते हुए) महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गुजरात से और वकालत की पढ़ाई लंदन से की। उन्होंने सत्य और अहिंसा का रास्ता अपनाया। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई की अगुआई की। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।
चरमज्ञानीः ग़लत, ग़लत। ठीक करो इसे। गांधीजी के बारे में भी आपलोगों को ग़लत पढ़ाया गया है। गांधीजी को गोडसे ने नहीं मारा था। गांधीजी की मौत ठंड से हुई थी। जनवरी में दिल्ली में कितनी ठंड पड़ती है। उन्हें ठंड लग गई थी फिर भी वे बिना गर्म कपड़े के घूमते रहते थे। दवा भी नहीं लेते थे। इसलिए उनकी मौत हो गई थी।
कोरस-3ः लेकिन सब जगह लिखा है कि गोडसे ने उन पर गोलियां चलाई।
चरमज्ञानीः गोडसे ने उन पर गोली नहीं चलाई थी। उसने तो चिड़ियों को भगाने के लिए फायर किया था। अब लोग प्रार्थना सभा में खाने-पीने की चीजें लेकर आ जाया करते थे। उसे झपटने के लिए कौवे और कई बार चीलें भी नीचे आ जाया करती थीं। इससे लोग परेशान हो जाते थे। उन्हीं को भगाने के लिए गोडसे ने फायर किया था। लेकिन एक साज़िश के तहत बताया गया कि गोडसे ने गांधीजी पर गोली चलाई थी।

(घंटी बजती है। कोरस नारे लगाता हुआ आता है-
‘मुगलई पराठा बंद करो। बंद करो, बंद करो, मुगलई पराठा बंद करो। मुर्दाबाद मुर्दाबाद मुग़लई पराठा मुर्दाबाद।’
विशाल गजपति सामने आता है)

विशालः साथियो, जो मुग़लई पराठा खाता है, वह हमारा दुश्मन है। वह हमारे धर्म और संस्कृति का दुश्मन है। वह मुग़लई पराठा खा रहा है, इसका मतलब है कि वह मुग़लों का सपोर्ट कर रहा है। हमें देश से मुग़लों का नामोनिशान मिटा देना है। देखो, चारों तरफ़ झांको। होटलों, रेस्टोरेंटों और ठेलों पर। कहीं मुग़लई पराठा तो नहीं बन रहा है। छापा मारो। ज़ब्त कर लो पराठा। चलो, संस्कृति की रक्षा के अभियान में आगे बढ़ो। इतिहास का शुद्धीकरण करो।
(सभी नारे दोहराते हुए एक-दो चक्कर लगाते हैं)
विशालः वो देखो, वह आदमी पराठा खा रहा है। ज़रूर मुग़लई पराठा होगा। मारो।
(सभी कोरस-5 को घेरकर मारते हैं। कोरस-5 गिर जाता है। सब उसे उठाकर ले जाते हैं। कोरस-1 न्यूज चैनल की माइक लिए आता है)
कोरस-1ः ब्रेकिंग न्यूज। अभी-अभी यूनिवर्सिटी के पास एक बुज़ुर्ग पर हमला हुआ है। भीड़ ने उन्हें बुरी तरह पीटा जिससे उनकी मौत हो गई। भीड़ का कहना है कि वह बुज़ुर्ग मुग़लई पराठा खा रहे थे। (जाता है।)

(परमज्ञानी, चरमज्ञानी और विशाल सामने आते हैं)

चरमज्ञानीः आज हम एक प्रखर और प्रतिभाशाली युवा का सम्मान कर रहे हैं।
परमज्ञानीः इस युवक ने जो किया है, उस पर हमें गर्व है। इसने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ दिया है और यह संदेश दिया है कि ग़ुलामी की हर निशानी को मिटा दिया जाएगा।
(विशाल, परमज्ञानी और चरमज्ञानी को झुककर प्रणाम करता है। परमज्ञानी और चरमज्ञानी मिलकर उसे एक शॉल ओढ़ाते हैं। तालियां बजती हैं)
चरमज्ञानीः आज इस नौजवान ने वह किया है जो कभी भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद ने किया था। है न परमज्ञानी जी?
परमज्ञानीः जी चरमज्ञानी जी। हमें ऐसे ही साहसी नौजवानों की ज़रूरत है।
विशालः बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरा यह पवित्र अभियान जारी रहेगा। मैं चाहता हूं कि खानपान, रहन-सहन और हर मामले में हम अपने प्राचीन ज्ञान को अपनाएं। अरे हमारे पास क्या नहीं है। एक से एक बेहतरीन खाना है हमारे पास। हमें ऐसा भोजन करना चाहिए जो हमारे दिल में देशप्रेम जगा दे। अपनी मिट्टी के लिए मर-मिटने का संकल्प पैदा कर दे। हम सब को घास की रोटी खानी चाहिए, वह रोटी जो राणा प्रताप खाते थे और जिसे खाकर उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा की।
( तालियां बजती हैं)
परमज्ञानीः क्या उच्च विचार हैं तुम्हारे। क्यों चरमज्ञानी जी?
चरमज्ञानीः हां परमज्ञानी जी। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।
(कोरस ‘आई ज्ञान की आंधी रे’ गाता हुआ आता है और सभी उसमें मिलकर चले जाते हैं। कोरस-1 आता है)
कोरस-1ः ब्रेकिंग न्यूज। बुज़ुर्ग की हत्या के मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। बुज़ुर्ग के परिवार का कहना है कि वह मुग़लई पराठा नहीं मूली पराठा खा रहे थे। पराठा वाले का कहना है कि वह तो मुग़लई पराठा बेचता ही नहीं है। कई संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वह एक कमिटी बनाए और इस बात की जांच कराए कि वह बुज़ुर्ग मुग़लई पराठा खा रहे थे कि मूली पराठा। आइए बात करते हैं युवा नेता विशाल गजपति से।
(विशाल सामने आता है)
विशालः देखिए, जो लोग ऐसा कह रहे हैं वे सब दिमाग़ी रूप से ग़ुलाम हैं। उनके डीएनए में ही ग़ुलामी है। उन्हें देश से कोई प्यार नहीं है। ऐसे लोगों ने ही हमारे प्राचीन ज्ञान को छोड़ दिया और पश्चिम की संस्कृति को अपना लिया। जबकि हमारी संस्कृति और हमारा साहित्य उनसे श्रेष्ठ है। उनके यहां कौन हुए? सेक्सपीयर। केवल सेक्स पर लिखते थे। हमारे यहां कौन हुए प्रेमचंद। प्रेम पर लिखते थे। प्रेम की कविता लिखते थे। उनका महाकाव्य गोदान बताता है कि एक किसान सच्चा गौसेवक होता है। वह गौ माता के लिए जान दे सकता है।
कोरस-1ः बहुत-बहुत शुक्रिया।

(दोनों जाते हैं। कोरस के कलाकार रेलवे स्टेशन का दृश्य बनाते हैं। कोई ‘चाय गरम चाय गरम’ कहता हुआ जाता है। कोई ‘पूरी भाजी’ कहता चिल्लाता जाता है। कुछ अभिनेता भारी सामान लेकर इधर से उधर जाते हैं। गाड़ी की सीटी की आवाज़ आती है। परमज्ञानी रेलवे का काला कोर्ट पहने आकर इधर-उधर घूमता है। तभी कोरस-5 हड़बड़ाया हुआ आता है।)

कोरस-5ः भाई साहब, ग़ाजियाबाद वाली गाड़ी कितने नंबर प्लेटफारम से खुलेगी?
पमज्ञानीः आज कोई गाड़ी ग़ाजियाबाद नहीं जाएगी।
कोरस-5ः क्यों? क्या हुआ?
परमज्ञानीः आज पश्चिम दिशा में कोई गाड़ी नहीं जाएगी।
कोरस-5ः लेकिन क्यों?
परमज्ञानीः आपको मालूम नहीं। रेलवे में पंचांग सिस्टम लागू हो गया है।
करोस-5ः पंचांग सिस्टम।
परमज्ञानीः हां, अब हर गाड़ी पंचांग के हिसाब से चलेगी। देखो, सामने पंचांग टंगा हुआ है। आज शुक्रवार है। शुक्रवार और रविवार के दिन पश्चिम दिशा में दिशा शूल होता है। दिशा शूल मतलब उधर जाना ख़तरनाक है। इसलिए आज पश्चिम की ओर ट्रेन नहीं जाएगी।
कोरस-5ः ये क्या बात हुई।
परमज्ञानीः मान लीजिए, पश्चिम दिशा में गाड़ी चली गई और दुर्घटना हो गई तो….। यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह व्यवस्था की गई है।
कोरस-5ः लेकिन आज मेरा ग़ाजियाबाद पहुंचना ज़रूरी है।
परमज्ञानीः लखनऊ चले जाओ। पूरब की तरफ गाड़ियां चल रही हैं।
कोरस-5ः वाह। मुझे जाना है ग़ाजियाबाद और मैं लखनऊ चला जाऊं। भाई साहब ग़ाज़ियाबाद मेरी ससुराल है। कल मेरी साली की शादी है।
परमज्ञानीः तब तो एकदम नहीं जाना चाहिए। साली की शादी देखकर दिल में दर्द होता है।
(कोरस-3 आता है)
कोरस-3ः सर, ये दिल्ली वाली ट्रेन कितनी लेट है?
परमज्ञानीः ये कल सूर्योदय के पश्चात ही खुलेगी।
कोरस-3ः इस वक़्त दिल्ली के लिए कोई और ट्रेन है?
परमज्ञानीः आज कोई भी ट्रेन दिल्ली नहीं जाएगी। आज पश्चिम दिशा की ओर कोई गाड़ी नहीं जाएगी।
कोरस-3ः क्यों क्या हुआ?
परमज्ञानीः क्योंकि गाड़ियां अब पंचांग के हिसाब से चलेंगी।
कोरस-3ः ये क्या बकवास है। कल मेरा इंटरव्यू है। मेरी नौकरी का सवाल है। बहुत मेहनत की है मैंने।
परमज्ञानीः मैं कुछ नहीं कर सकता। (जाता है)
कोरस-3ः कैसे जाऊं। पता नहीं इस टाइम में कोई बस जाती है या नहीं। अगर इंटरव्यू छूट गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। इतनी मुश्किल से रिटेन निकला है मेरा। अफ़सर बनने का मेरा सपना चूर-चूर हो जाएगा।
(एक दो चक्कर लगाकर जाता है। कोरस-5 सामने आता है)
कोरस-5ः रॉल नं123।
(कोरस-3 आता है)
कोरस-3ः मैं हूं रॉल नंबर 123।
कोरस-5ः यहां खड़े हो जाइए। हाथ सामने कीजिए
कोरस-3ः लेकिन क्यों?
कोरस-5ः आपका हाथ चेक किया जाएगा।
कोरस-3ः हाथ। लेकिन क्यों? मेरा मेडिकल टेस्ट हो गया है।
(परमज्ञानी आता है)
परमज्ञानीः जय गणेश।
कोरस-5ः परमज्ञानी जी आपकी हस्तरेखा चेक करेंगे।
परमज्ञानीः अब प्रशासनिक सेवा में वही जा सकेगा, जिसके हाथ में प्रशासनिक सेवा की रेखा होगी। हम ऐसे लोगों के हाथ में प्रशासन नहीं सौंप सकते, जिनके भाग्य में अधिकारी बनना लिखा ही नहीं है। ऐसे लोग ख़राब अधिकारी बनते हैं। ऐसे ही लोगों ने देश के प्रशासन को बर्बाद कर रखा है। इसलिए अगर आपके हाथ में प्रशासनिक सेवा का योग होगा तभी आपको आगे इंटरव्यू के लिए भेजा जाएगा। चलिए दिखाइए।
(परमज्ञानी अपने कुर्ते की जेब से मैग्नीफाइंग ग्लास निकालकर कोरस-3 के हाथ की रेखाएं देखता है)
परमज्ञानीः सूर्य रेखा से निकलने वाली शाखा रेखा यदि वृहस्पति पर्वत की ओर जाती है तो ऐसा व्यक्ति उच्च अधिकारी बनता है लेकिन तुम्हारी यह रेखा वृहस्पति की ओर नहीं जा रही है। अगर वृहस्पति पर्वत पर खड़ी रेखाएं होतीं तो भी काम चल सकता था। पर ऐसा नहीं है। तुम एक अच्छे अधिकारी नहीं बन सकते। तुम किसी और क्षेत्र में प्रयास करो। कोई व्यवसाय करो। तुम्हारी मस्तिष्क रेखा टूटी-फूटी है। इसलिए बड़े व्यापारी तो तुम नहीं बनोगे। पान की दुकान खोल लो।
कोरस-3ः मैंने दिन-रात अफ़सर बनने के लिए मेहनत की है। इतिहास, भूगोल, साहित्य, विज्ञान, जेनरल नॉलेज क्या नहीं पढ़ा है मैंने।
परमज्ञानीः वो तो सब पढ़ते हैं। लेकिन यह सेवा तुम्हारे चरित्र से मेल नहीं खाती। तुम्हारी रेखाएं यही कह रही हैं।
कोरस-3ः मैं अपना भाग्य खुद लिखने में विश्वास रखता हूं।
परमज्ञानीः ये सब बेकार की बात है। तुम जो ऊपर से लिखवा कर लाए हो वही होगा। तुम्हारा इंटरव्यू नहीं होगा।
कोरस-3ः क्यों नहीं होगा?
कोरस-5ः चलिए बाहर निकलिए। रॉल नंबर 124।
कोरस-3ः ये क्या मज़ाक चल रहा है।
कोरस-5ः आपको परमज्ञानी जी ने फेल कर दिया है। बाहर चलिए।
कोरस-3ः यह ग़लत है, यह अन्याय है।
(कोरस-5, कोरस-3 को धक्का देता है। कोरस-3 जाता है)
कोरस-5ः रॉल नंबर 124
(कोरस-4 आता है। परमज्ञानी उसका हाथ देखता है।)
परमज्ञानीः वाह बहुत अच्छा हाथ है। वाह।
कोरस-4ः मैं अफ़सर बन सकता हूं न?
परमज्ञानीः नहीं।
कोरस-4ः नहीं। क्यों?
परमज्ञानीः क्योंकि तुम्हारे पास प्रचंड प्रतिभा है।
कोरस-4ः क्या कह रहे हैं।
परमज्ञानीः तुम्हारे पास अपना दिमाग़ है। जबकि अच्छा अफ़सर वह होता है जिसके पास अपना दिमाग न हो।
कोरस-4ः तो मैं क्या करूं?
परमज्ञानीः ऐसी चीज़ बनो कि बड़े-बड़े अधिकारी तुम्हारी परिक्रमा करें। मंत्री तुम्हारे पैर धोयें।
कोरस-4ः मैं समझा नहीं।
परमज्ञानीः तुम बाबा बन जाओ।
कोरस-4ः मैं कैसे बाबा बन सकता हूं।
परमज्ञानीः मैं बनाऊंगा। मेरे बाबा कोचिंग सेंटर में आ जाओ। बस तीन महीने का क्रैश कोर्स है। मात्र एक लाख रुपये फीस है। एक बार इन्वेस्ट करो करोड़ों कमाओगे।
कोरस-4ः लेकिन उसमें क्या-क्या पढ़ना होगा।
परमज्ञानीः पहले फेस रीडिंग सिखाई जाएगी। फिर थोड़ी बहुत हाथ की सफ़ाई। कुछ मंत्र रटाए जाएंगे। रामचरितमानस की चार-पांच चौपाई रटाई जाएगी। महाभारत के कुछ किस्से बताए जाएंगे। बस हो गया।
कोरस-4ः लेकिन मैं इस लायक …।
परमज्ञानीः तुम यंग हो स्मार्ट हो। दाढ़ी वाले बूढ़े बाबाओं के दिन गए। अब चॉकलेटी बाबाओं की डिमांड है। देखना तुम्हारे पास कितनी लड़कियां शादी का ऑफर लेकर आएंगी। सारी पॉलिटिकल पार्टियां तुम्हें अपने साथ लेना चाहेंगी। तुम्हें टिकट देना चाहेंगी। मिनिस्टर बनने का चांस रहेगा। चाहो तो अपने ऊपर फिल्म बनवा लेना। सोचो मत। एक सुनहरा भविष्य तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। चलो।

(परमज्ञानी कोरस-4 का हाथ पकड़कर घूमता है। कोरस गाता है-)

आओ सिखाएं बाबागीरी का फंडा,
कर ले भेजे को थोड़ा और भी ठंडा।

सबकी नज़र में छा जाएगा बेटा,
खाना है तुमको भक्तों का चंदा।

बातों की खेती पे नोटों की फसलें,
है बड़ा प्यारे ये फ़ायदे का धंधा।

नेता और अफ़सर लोटेंगे चरण में,
फेरते रहना उन पर जादू का डंडा।

आओ सिखाएं बाबागीरी का फंडा।

( परमज्ञानी और कोरस-4 जाते हैं। कोरस-1 आता है)

कोरस-1ः बुजुर्ग की मौत के मामले में आज जांच कमिटी ने युवा नेता विशाल गजपति को पूछताछ के लिए बुलाया है। विशाल के समर्थक बड़ी संख्या में जमा होकर नारेबाजी कर रहे हैं।

(कोरस-1 जाता है। नारे लगते हैंः
‘विशाल गजपति ज़िदाबाद, विशाल तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।‘ परमज्ञानी और चरमज्ञानी जांच अधिकारी के रूप में आकर बैठते हैं। विशाल गजपति उनके सामने खड़ा होता है)

परमज्ञानीः विशाल गजपति जी, आप घटना के दिन वहां क्या कर रहे थे?
विशालः मैं युवाओं को जागरूक कर रहा था।
चरमज्ञानीः किस तरह से जागरूक कर रहे थे?
विशालः मैं उन्हें समझा रहा था कि हमें मानसिक ग़ुलामी से बाहर निकलना है। उस हर चीज़ को छोड़ देना है जो हमें ग़ुलामी की याद दिलाती है।
परमज्ञानीः जैसे।
विशालः जैसे मुग़लई पराठा।
चरमज्ञानीः मुग़लाई पराठा से आपको क्या समस्या है?
विशालः जिन मुग़लों ने हमें ग़ुलाम बनाया हम उनका बनाया हुआ पराठा नहीं खा सकते। बिल्कुल नहीं।
परमज्ञानीः जब आप युवाओं को जागरूक कर रहे थे तो क्या हुआ?
विशालः वहां हमने देखा कि एक आदमी खड़ा होकर मुग़लई पराठा खा रहा है।
चरमज्ञानीः आप कहां खड़े थे?
विशालः यूनिवर्सिटी कैंपस में पार्किंग के पास।
चरमज्ञानीः लेकिन कैंपस में तो खाने-पीने की दुकान है नहीं।
विशालः हां, वो कैंपस के बाहर खा रहा था। सड़क के दूसरी ओर।
परमज्ञानीः सड़क के दूसरी ओर। मतलब वह जगह वहां से कम से कम 100 मीटर दूर तो होगी ही। 100 मीटर दूर से आपने जान लिया कि वह आदमी मुग़लई पराठा ही खा रहा है?
गजपतिः हां, मैंने जान लिया।
परमज्ञानीः कैसे?
चरमज्ञानीः कपड़ों से।
परमज्ञानीः कपड़े से यह कैसे पता चलेगा कि वह क्या खा रहा है?
विशालः वो लोग कपड़ों से ही पहचान लिए जाते हैं। मैंने उसके कपड़े से ही पहचान लिया कि यह शख़्स ज़रूर मुग़लई पराठा खा रहा है। ये लोग मुग़लों को महान मानते हैं। अपना आदर्श मानते हैं।
परमज्ञानीः तो आपने उसे देखते ही भीड़ से कहा मारो उसे?
गजपतिः जी नहीं। मैंने तो उसकी ओर उंगली उठाई और ज्यों ही मेरे मुंह से निकला मुग़ल, लोग दौड़ पड़े।
चरमज्ञानीः और उन्होंने उस बुजुर्ग पर हमला कर दिया?
विशालः जी नहीं।… वे सब हाथ जोड़कर उनके सामने बैठ गए और कहा चचा, फेंक दीजिए पराठा। और उसके साथ ही फेंक दीजिए अपनी ग़ुलाम मानसिकता।
परमज्ञानीः अच्छा। तो चचा ने पराठा फेंक दिया?
गजपतिः मुझे नहीं मालूम। क्योंकि मैं जागरूकता फैलाने के लिए आगे निकल गया था।
चरमज्ञानीः ठीक है, अब आप जा सकते हैं।
गजपतिः बहुत-बहुत धन्यवाद।

(कोरस नारे लगाते हुए आता है और तीनों उसमें मिलकर जाते हैं। फिर परमज्ञानी और चरमज्ञानी सामने आते हैं।)

परमज्ञानीः हमारी जांच पूरी हुई।
चरमज्ञानीः हमने हर पहलू से जांच की है। हर सबूत को खूब खंगाला है। हर गवाह के दिलो-दिमाग़ में घुसकर देखा है।
परमज्ञानीः हमें भटकाने की कोशिश हुई पर हम भटके नहीं।
चरमज्ञानीः हम पर दबाव डालने की कोशिश हुई पर हम दबाव में नहीं आए।
परमज्ञानीः पहले तो कहा गया कि वह सज्जन मुग़लई पराठा खा ही नहीं रहे थे। वो तो मूली पराठा खा रहे थे। यह बिल्कुल ग़लत है। पोस्टमार्टम में उनके पेट में मूली के टुकड़े ज़रूर पाए गए। लेकिन वह मूली, पराठा की नहीं थी। वो बुढ़ऊ मुग़लई पराठा के साथ सलाद भी खा रहे थे। पराठा वाले ने ख़ुद स्वीकार किया है कि वह मुग़लई पराठा बनाता है। पहले वह इस बात से इनकार कर रहा था। उसने माना कि उसे कुछ लोगों ने दबाव डालकर उससे मूली वाली बात कहवायी थी। तो इस तरह मूली पराठा वाली थ्योरी फेल हो गई।
चरमज्ञानीः और यह भी ग़लत है कि किसी भी तरह की मारपीट हुई। डॉक्टर की रिपोर्ट बताती है कि बुज़ुर्ग की मौत हृदयगति रुकने से हुई है। मतलब हार्ट फेल।
परमज्ञानीः जब विशाल गजपति ने कहा मुग़ल, तो भीड़ उनकी तरफ़ मुड़ी। लोग उनसे अनुरोध करने लगे कि पराठा फेंक दीजिए लेकिन तभी बुज़ुर्ग लड़खड़ाकर गिर गए। लोगों ने तत्काल उन्हें उठाया और अस्पताल ले गए। जहां डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें कुछ देर पहले दिल का दौरा पड़ा था। इस बात की पुष्टि पराठा वाले ने भी की है। उसने कहा कि वो बुज़ुर्ग अकसर पराठा खाने आया करते थे। और उस दिन उनकी तबीयत पहले से ख़राब लग रही थी। उसने कहा भी कि चचा घर लौट जाइए।
चरमज्ञानीः तो इस तरह हमने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।

(‘विशाल भाइया ज़िदाबाद’ के नारे लगाते हुए कोरस आता है। परमज्ञानी और चरमज्ञानी कोरस में मिलकर जाते हैं। कोरस-1 सामने आता है)

कोरस-1ः बुज़ुर्ग की मौत मामले में सारे आरोपी बरी हो गए हैं। विशाल गजपति को क्लीन चिट मिल गई है। लेकिन वह एक नई मुसीबत में फंस गए हैं। उनकी पत्नी ने उनके ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा की शिकायत की है। विशाल गजपति का कहना है कि यह उनके विरुद्ध साज़िश है।
(कोरस-1 जाता है। चरमज्ञानी जज के रूप में और परमज्ञानी वकील के रूप में आता है)
चरमज्ञानीः मुक़दमा पेश किया जाए।
परमज्ञानीः आज का मुक़दमा है विशाल गजपति बनाम ज्योति देवी।
चरमज्ञानीः दोनों को उपस्थित किया जाए।
कोरस-4ः विशाल गजपति और ज्योति देवी हाज़िर हों।

(ज्योति और विशाल आते हैं)

परमज्ञानीः ज्योति देवी ने विशाल गजपति के विरुद्ध अनुचित व्यवहार की शिकायत की है और कहा है कि वह विशाल गजपति से अलग होना चाहती हैं। अदालत उनकी सहायता करे।
चरमज्ञानीः ज्योति जी क्या यह सही है?
ज्योतिः जी हां।
चरमज्ञानीः आख़िर क्यों?
ज्योतिः क्योंकि मैं बहुत परेशान हूं। यह आदमी हर रोज़ रात में शराब पीकर आता है और मेरे साथ गाली-गलौज़ और मारपीट करता है। मेरे सुख-दुख की इसे कोई परवाह नहीं है।
चरमज्ञानीः क्या यह सही है विशाल गजपति जी?
विशालः देखिए, पति-पत्नी के बीच कभी-कभार झगड़े होते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि…
ज्योतिः छोटा-मोटा झगड़ा होना अलग बात है। लेकिन रोज़-रोज़ की मारपीट। मेरा जीवन नरक हो चुका है। मैं इस आदमी के साथ एक पल नहीं रह सकती।
परमज्ञानीः विशाल जी आपको क्या कहना है?
विशालः देखिए। ये मेरे ख़िलाफ़ साज़िश है। किसी ने इसे भड़का दिया है।
परमज्ञानीः कौन भड़का सकता है?
विशालः वही जो राष्ट्रविरोधी हैं। वे नहीं चाहते कि जनता को जागरूक करने के अभियान में मैं सफल हो सकूं। इसलिए वे मुझे इस मामले में फंसा देना चाहते हैं। और ये उन लोगों का साथ दे रही है।
ज्योतिः यह बिल्कुल ग़लत है। मैं वयस्क हूं। शिक्षित हूं। अपना भला-बुरा समझती हूं। मुझे कोई भड़का नहीं सकता। आप चाहें तो मेरे मोहल्ले को लोगों से पूछ सकते हैं। सबको पता है ये आदमी मेरे साथ किस तरह का बर्ताव करता है।
विशालः देखो मेरा मुंह मत खुलवाओ। तुमने भी एक बार मुझे करछी फेंककर मारा था।
परमज्ञानीः कैसी औरत हैं आप। अपने पति पर हाथ उठाती हैं। शर्म नहीं आई आपको?
ज्योतिः क्यों शर्म आएगी? ये आदमी रोज़-रोज़ मुझे मारता है। इसे कोई शर्म नहीं आती तो मुझे क्यों आनी चाहिए? क्या मुझे अपने बचाव का अधिकार नहीं है?
परमज्ञानीः विशाल जी क्या आप रोज़ शराब पीते हैं?
विशालः नहीं नहीं मंगल और गुरुवार को बिल्कुल नहीं पीता। और हां, मैं शराब पर पैसे बिल्कुल बर्बाद नहीं करता। अब मेरे शिष्य, मेरे भक्त मुझे प्यार से पिला देते हैं तो पी लेता हूं।
परमज्ञानीः क्या आप वचन देते हैं कि आगे से नहीं पियेंगे?
विशालः हां, मैं वचन देता हूं।
ज्योतिः ऐसा वचन ये पचासवीं बार दे रहा है। मुझे इस पर ज़रा भी भरोसा नहीं है। मैं अब एक पल इसके साथ नहीं रह सकती। यह कभी भी मेरी जान ले सकता है।
परमज्ञानीः तो आप चाहती क्या हैं?
ज्योतिः मैं इससे अलग होना चाहती हूं। मैं अपनी ज़िंदगी अलग जीना चाहती हूं। मैं अदालत से अनुरोध करती हूं कि वह इसमें हमारी सहायता करे।
चरमज्ञानीः ज्योति देवी, आप यह भूल रही हैं कि यह ज्ञान अदालत है। हम कोई भी निर्णय प्राचीन ज्ञान के आधार पर करेंगे। लगता है आपने मनु स्मृति नहीं पढ़ी। मनुस्मृति के अध्याय-5 श्लोक नंबर 154 में लिखा हैः
विशीलः कामवृत्तो वा गुणैर्वा परिवर्जितः
उपचार्यः स्त्रिया साध्व्या सततं देववत्पत्तिः
मतलब यह कि पति यदि कामी हो, शील और गुणों से रहित हो तो भी पतिव्रता स्त्री को उसे ईश्वर के समान मानकर उसकी सदा सेवा-शुश्रुषा करनी चाहिए। समझ गयीं न? विशाल गजपति आपका देवता है। उसे भगवान मानिए। जाइए। उसके साथ ख़ुशीपूर्वक जीवन बिताइए।
ज्योतिः मैंने कहा न कि इस आदमी के साथ मैं नहीं रह सकती। अरे आप समझ क्यों नहीं रहे। यह कभी भी मुझे जान से मार सकता है।
चरमज्ञानीः वह आपको नहीं मार सकता। और मारेगा भी तो आपके शरीर को मारेगा आपकी आत्मा को नहीं। शरीर तो मिट्टी है। असल चीज़ तो है आत्मा। आत्मा अजर है अमर है, अविनाशी है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।
मतलब आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
ज्योतिः बचाओ, बचाओ।
परमज्ञानीः क्या हुआ?
चरमज्ञानीः क्या हुआ?
विशालः क्या हुआ?
ज्योतिः मुझे आपलोग इंसान नहीं आत्मा नज़र आ रहे हैं। बचाओ, बचाओ। मुझे आत्माओं से बचाओ।

( वह ‘बचाओ-बचाओ’ करके दौड़ती है। उसके पीछे-पीछे परमज्ञानी, चरमज्ञानी और विशाल गजपति हाथ पैर सिकोड़ कर भूत बने हुए चलते हैं फिर दो-तीन चक्कर लगाकर सभी फ्रीज्ड होते हैं।)

संपर्कः ए-701, जनसत्ता अपार्टमेंट, सेक्टर-9, वसुंधरा, गाजियाबाद-201012 (उप्र)
मोबाइलः 9910257915

 


3 thoughts on “आयी ज्ञान की आँधी / संजय कुंदन”

  1. आज के समय की राजनैतिक धूर्तताओं को उजागर करता हुआ बहुत शानदार नाटक है। साथी संजय कुंदन जी को हार्दिक बधाई।

    Reply

Leave a Comment