“हूबनाथ पाण्डेय की कविताएँ ‘वर्गबोध’ की कविताएँ हैं”- प्रो. बजरंग बिहारी / जनवादी लेखक संघ, मुंबई


18 अगस्त 2024 को मुंबई विश्वविद्यालय में ‘राजनीतिक कविता की परंपरा व भूमिका’ विषय पर प्रोफ़ेसर हूबनाथ पांडेय की कविताओं के पाठ का आयोजन जनवादी लेखक संघ (मुंबई) और शोधावरी (बहुभाषी साहित्यिक पत्रिका) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एवं लेखक-कार्यकर्ता श्री बजरंग बिहारी तिवारी ने की।

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफ़ेसर बजरंग तिवारी ने हिन्दी काव्य में राजनीतिक लेखन की परंपरा को ऐतिहासिक संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हर सार्थक और यादगार कविता अपनी अंतर्वस्तु में राजनीतिक होती है; ऊपर से भले ही कुछ और नज़र आती हो। कालिदास के नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ के मंगलाचरण (नांदी पाठ) और मृच्छकटिक के समापन श्लोक (भरत वाक्य) का संदर्भ देते हुए उन्होंने अपनी स्थापना पुष्ट की। उन्होंने आगे कहा कि भक्ति के मुहावरे में देवसत्ता की कारगुजारियों पर ध्यान दिलाने वाले तुलसीदास जैसे कवि को आलोचक-प्राध्यापक राजनीति से उदासीन कहते हैं जबकि सच कुछ और है। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने दादू परंपरा के कवि रज्जब अली का उल्लेख किया। रज्जब ने विरक्त (योगी, फकीर) का बाना धारण किए ठगों की पहचान की है। क्रांतिकारी जनपक्षधर काव्य परंपरा के उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने प्रगतिवादी कविता की भूमिका पर बात की। अगर कोई कवि प्रकृति और पर्यावरण को लेकर चिंतित है तो उसे पूँजीवाद का क्रिटीक करना ही होगा। त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल की कविताएं यही बताती हैं। उन्होंने कहा कि हूबनाथ पाण्डेय की कविताएँ वर्गबोध की कविताएँ हैं। कविता का राजनीतिक चरित्र परखने का पैमाना यह है कि “कविता किसके पक्ष में खड़ी होती है, जनता के पक्ष में या सत्ता के पक्ष में, यही पक्षधरता उसकी राजनीति तय करती है।” हूबनाथ जी के पास विचार हैं, वे इन विचारों को कविताओं में पेश करने का हुनर रखते हैं। कवि अपने कविता कर्म में जुटा है। वह अभिव्यक्ति के वास्तविक ख़तरे उठाकर कविताएं रच रहा है। अब यह हम सब की ज़िम्मेदारी है कि जितनी जल्दी हो सके उनका कविता संग्रह मंज़र-ए-आम पर आए।

कार्यक्रम के आरंभ में परिदृश्य प्रकाशन के श्री रमन मिश्र ने कहा कि “वर्तमान समय में ‘राजनीति’ शब्द से भी परहेज़ किया जाता है लेकिन राजनिति में आपकी रुचि न होना भी एक राजनीति है। हूबनाथ पाण्डेय ने अपनी कविताओं के लिए एक विशेष फॉर्म गढ़ा है। सरल भाषा में गहरी अभिव्यक्ति काबिल-ए-तारीफ़ है” l

अपनी कविताओं को प्रस्तुत करते हुए हूबनाथ जी ने कहा कि वें अपने आपको एक मज़दूर समझते हैं l उनका मानना हैं कि आज़ाद हिंदुस्तान में अपनी राय लोगों तक पहुँचाना ज़रूरी है, अगर हम अपनी अभिव्यक्ति सामने नहीं लायेंगे तो एक दिन झूठ ही सच मान लिया जायेगा, क्योंकि झूठ परोसने वाली ताक़तें बड़े सुनियोजित ढंग से इस कार्य में जुटी है।

संक्षिप्त भूमिका के बाद उन्होंने अपनी कुछ पसंदीदा कविताएँ सुनाईं, जिन्हें श्रोताओं ने ख़ूब सराहा।

इसके बाद कार्यक्रम में विशेष तौर पर हूबनाथ पांडेय जी की मराठी और उर्दू में अनुदित कविताओं का पठन हुआl मराठी साहित्यकार प्रमोद नवार ने ‘लड़ाका लड़कियाँ’ का खूबसूरत मराठी अनुवाद विशेष मराठी शैली में प्रस्तुत किया। श्रोताओं ने इस प्रस्तुति को ख़ूब पसंद किया। वहीं वक़ार क़ादरी द्वारा उर्दू में रूपांतरित नज़्म ‘मुहर्रम’ को मुख्तार खान ने खास लब-व-लहजे में पेश किया।

आगे चर्चा में भाग लेते हुए वैज्ञानिक कृष्ण कुमार मिश्र जी ने कहा कि हूबनाथ पाण्डेय के यहाँ जीवन को देखने का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इनकी कविताएँ समाज की विसंगतियों, कपट, विद्रूपताओं पर सटीक प्रहार करती हैं।

डॉ. अवधेश राय ने इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हूबनाथ जी की कविताएं प्रतिरोध की कविताएं है। यह प्रतिरोध राजनैतिक, सामाजिक,धार्मिक व आर्थिक,सभी प्रकार की विसंगतियों के खिलाफ है।जहां ज्यादातर कवि प्रतीकों या बिंबों में अपनी बात कहते हैं वहीं हू्बनाथ जी में अपनी बात को खुलकर कहने का साहस है, जो सराहनीय है।

कार्यक्रम के संचालन की ज़िम्मेदारी ‘जलेस’ के मुख्तार खान ने बखूबी निभाई। उन्होंने युवा रचनाकारों और शोधार्थियों को ‘जनवादी लेखक संघ’ से जुड़ने तथा औरों को भी जोड़ने का आह्वान किया।

रविवार, अवकाश का दिन होने के बावजूद इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के रचनाकार साथी शामिल हुए। सभागृह में उपस्थित लेखकों, कवियों और सम्मानित अतिथियों के साथ-साथ बड़ी संखया में यूनिवर्सिटी के छात्र भी उपस्थित थे। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि हौशिला अन्वेषी, मराठी उपन्यासकार आनंद विंगकर, राकेश शर्मा जी, आर एस विकल जी, डॉ अंबरीश सिन्हा, डॉ मंगेश बंसोड़े, डॉ.प्रशांत जैन, रेखा बब्बल, किशोर सामंत, मुकेश रेड्डी, रमेश जेसवाल, जिग्नेश मनियार, मोहम्मद शाहिद के साथ-साथ शहर के कई रचनाकार साथी उपस्थित थे।

रागिणी कांबले, मुंबई


Leave a Comment