समीना ख़ान की कहानी ‘बयाज़’ पर चर्चा / जनवादी लेखक संघ, लखनऊ


जनवादी लेखक संघ लखनऊ द्वारा 15 अगस्त को समीना ख़ान की कहानी ‘बयाज़’ का पाठ रखा गया। इस वर्ष समीना ख़ान की दो कहानियाँ ‘हंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। यह दूसरी कहानी है जिस पर जनवादी लेखक संघ लखनऊ ने समीना ख़ान का कहानी पाठ आयोजित किया तथा बाद में इस कहानी पर गंभीर चर्चा भी हुई।

कहानी पाठ के बाद चर्चा का आरंभ करते हुए अनिल श्रीवास्तव ने कहा कि यह कहानी हमारे समय को अभिव्यक्त करती है। कहानी में घटनाएँ नहीं हैं। दृश्यों के माध्यम से कथानक आगे बढ़ता है और कहानी पाठक को झकझोर कर रख देती है। ज्योति नंदा ने समीना की कहानी को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्हें बधाई दी और कहा कि कहानी हमारे समय के सच को उघाड़ कर रख देती है। किस तरह से एक धर्म के लोग डर के साथ जीते हुए अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं, इस कहानी से समझा जा सकता है। नाइश हसन ने कहा कि हमारे समय में जो लेखिकाएँ लिख रही हैं, समीना ख़ान उनसे अलग इस तरह से हैं कि उनकी कहानी आज की राजनीति पर भी अपनी निगाह रखती है और समय से जुड़े तमाम विषयों को प्रश्नांकित करती है। सीमा सिंह ने कहा कि कहानी लिखने और बनने की प्रक्रिया में वे शामिल थीं।

जलेस दिल्ली से आए अतुल सिंह ने कहानी के विषय में बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने कहा कि बहुत पहले से ऐसी कहानियाँ लिखी जा रही हैं। जिस तरह कहानी में आर्थिक तंत्र का दो जगह ज़िक्र आया है, वह बेहद विचारणीय पहलू है। कहानी में यद्यपि संवाद नहीं हैं फिर भी कहानी अपनी कहन में कहीं से भी कमज़ोर नहीं पड़ती। नूर आलम ने कहानी के कुछ पक्षों का उदाहरण देते हुए कुछ जिज्ञासाएँ जताईं। शालिनी सिंह ने सभी के विचारों से सहमति जताई।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नलिन रंजन सिंह ने कहा कि कहानी अच्छी है, कहानी का अंत प्रभावी है लेकिन आपको और कहानियाँ भी पढ़नी चाहिए ताकि लिखी जा रही अन्य कहानियों से आपकी कहानी न टकराए। उन्होंने शुभकामना देते हुए कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में हमें आपकी अन्य अच्छी कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी।

कार्यक्रम का संचालन सचिव ज्ञान प्रकाश चौबे ने किया।

कार्यक्रम के बाद अक्टूबर में होने वाले कार्यक्रम ‘कविता की ज़मीन’ के आयोजन के संबंध में बैठक हुई।

संगठन ने एक प्रस्ताव पारित करके शालिनी सिंह को कार्यकारी सचिव के कार्यभार का उत्तरदायित्व दिया।


1 thought on “समीना ख़ान की कहानी ‘बयाज़’ पर चर्चा / जनवादी लेखक संघ, लखनऊ”

  1. समीना, तुम जियो हज़ारों साल साल के दिन हों पचास हजार।

    Reply

Leave a Comment