ललन‌ चतुर्वेदी की कविताएं


इस बार ललन चतुर्वेदी की कविताएँ :

मैं मिट्टी का

मैं मिट्टी का बना हूं
रौंदो मुझे और खुश हो जाओ
धूल बन जाऊंगा पर चरण-रज नहीं
हवा का संग पा शीश पर बैठ जाऊंगा
यह कोई दंभ नहीं, घमंड नहीं
कैसे छूट पाएगा अपना गुण-धर्म

सब नहीं समझ पाते मिट्टी का मर्म

मैं मिट्टी का बना हूं
पड़ते ही अंजुरी भर जल, हो जाता हूं नम
चिड़िया के चोंच से छिटक कर आ गिरा कोई बीज
जहां बदल जाता है वृक्ष में
जिसकी छाया में बस सकता है पूरा परिवार
क्या समझ सका है मिट्टी की महिमा यह संसार

मुझे मिट्टी में मिलने का है सतत एहसास
इसलिए कोशिश होती है कि ढल जाऊं उस शक्ल में जिसमें ढालना चाहता है कुम्हार
घड़ा बन जाऊं तो अहोभाग्य
नदियों से होता रहेगा साक्षात्कार
हांड़ी भी बनूं तो चढ़ूंगा चूल्हे पर
कुछ समय मिलेगा खेलने का आग से
जलूँ क्यों किसी के सौभाग्य से

सोना भी तो बार-बार जलता है
तब जाकर गले का हार बनता है

कोई फ़िक्र, परवाह नहीं
मृत्यु से कोई अलगाव नहीं
जीवन की तरह मृत्यु राग गाऊंगा
मिट्टी का हूं, मिट्टी में मिल जाऊंगा।

*****

मुझे भय है

वे बार-बार जतलाते हैं कि उन्हें मेरी बहुत फ़िक्र है
गोया इस दुनिया में कोई दूसरा मेरी फ़िक्र नहीं करता
या मैं खुद ही बेख़बर हूं और अपना भला करना चाहता
उनकी भलमनसाहत पर भला क्यों न हो कुर्बान
वे बतलाते हैं ठगों, बटमारों से रहो सावधान
उस कालरात्रि को याद करो जब लुट ली गई थी तुम्हारी अस्मिता
तुम्हारी बोलती हो गई थी बंद

हम तुम्हें स्वच्छ-स्वच्छंद करने आए हैं
उनके सिपहसालार बार-बार उनके आगमन की घोषणा कर रहे हैं
सज ग‌ए हैं मंच, स्वागत के निमित्त तोरणद्वार
हो रहें हैं यशोगायन, हो रहे हैं मंत्रोच्चार
वे अतिरिक्त विनम्र होते जा रहे हैं
उनकी विनम्रता मुझे भयभीत कर रही है
वैसे भी ठगा जाता ही रहा हूं
हमारी कौम ही लुटती-पिटती क़ौम है
जहां कोई समृद्धि के उत्तुंग शिखर पर आसीन हैं
और किसी की मुफ़लिसी पर्दानशीं है
जहां अपना ही भाई धकेलता है हमें गर्त में
और उसी का मायावी दोस्त निकालने के लिए हाथ बढ़ाता है
कैसा है यह गठजोड़ जो कभी नहीं टूट पाता है
हमें ताक़तवर बतलाकर एक दूसरा ताक़तवर क़ायदे से सब कुछ लूट ले जाता है
यह अंतहीन सिलसिला टूटता ही नहीं

वे जब भी आते हैं, हम भयग्रस्त हो जाते हैं
उनके आगमन पर सड़कें चौड़ी की जायेंगी
और कितने घर उजड़ जायेंगे
कितने पेड़ कट जायेंगे
कितने घोंसले बिखर जायेंगे
कुछ लोगों को दस रोजा मेला का रोजगार मिल जाएगा
फिर जस का तस बस्ती में वीरानी पसर जाएगी
उनका आना कृत्रिम प्राकृतिक आपदा है
जिससे कभी कोई राहत नहीं है।
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रोबोट

यह कोई नया आश्चर्यजनक आविष्कार नहीं है
यह सदियों से सूक्ष्म रूप में दौड़ रहा है हमारी शिराओं में
आजकल यह स्थूल रूप में है हमारे सामने
पर अभी भी इसके अपरूप सूक्ष्म रूप से दौड़ रहे हैं हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं में
जब भी कोई इस्तेमाल करता है इसका अकेले में खुश होता रहता है

रोबोट भी हो इससे वाकिफ न हो ऐसा हो नहीं सकता
जैसे आदमी दुखी है रोबोट के बढ़ते प्रचलन से
वैसे रोबोट भी दुखी है आदमी के अधोपतन से
वह आंसू तो नहीं बहा सकता लेकिन एक उदास

चुप्पी तारी हो जाती है उसके कृत्रिम चेहरे पर
जब एक आदमी दूसरे को रोबोट की तरह इस्तेमाल
करता है।
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संपर्क : 202,असीमलता अपार्टमेंट ,
मानसरोवर इन्क्लेव ,हटिया ,रांची-834003
Email: lalancsb@gmail.com
Mob:9431582801

 

 


4 thoughts on “ललन‌ चतुर्वेदी की कविताएं”

  1. उनका आना कृत्रिम प्राकृतिक आपदा है । सबकुछ कह रही है ये अकेली पंक्ति ।
    बहुत अच्छी कविताएं 💐💐

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