बसंत भाषा और शिल्प के प्रति सचेत कवि: राजेश जोशी


भोपाल। “ये सम्प्रेषणीयता की बेचैनियों और भाषा की सैद्धांतिकी की बारीक समझ से भरी कविताएं हैं। आत्म और संसार की खोज करती ये कविताएं तसल्लियों को पाते हुए भी उन्हें प्रश्नांकित करती हैं। संवेदनाओं की महीन पड़ताल करती इन कविताओं में कवि का समग्र उपस्थित होता है। एक ऐसे समय में जब स्पेस और स्मृतियां ग़ायब हो रही हैं, हमारी संवेदनाएं संशय के दायरे में हैं, तब कवि की बड़ी और ख़ास ज़िम्मेदारी इन्हें बचाने की है, जो ये कविताएं  करती हैं।”
       इस आशय के विचार गत रविवार शाम कवि-आलोचक बसंत त्रिपाठी के नये कविता संग्रह घड़ी दो घड़ी  पर चर्चा के दौरान मायाराम सुरजन भवन में व्यक्त किये गये। जनवादी लेखक संघ, भोपाल ईकाई के बैनर तले मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सहयोग से आयोजित इस अविस्मरणीय कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने कहा कि बसंत त्रिपाठी की इन कविताओं में अतिरिक्त बिंब, प्रतीक और शिल्प गढ़ने की क़वायद बिल्कुल नहीं है बल्कि ये भाषा की सैद्धांतिकी की बारीक समझ से भरी कविताएं हैं। एक ऐसे समय में जबकि भाषा के साथ लगातार अत्याचार हो रहा है, बसंत भाषा और शिल्प के प्रति सचेत नज़र आते हैं। कवि होने के साथ बसंत त्रिपाठी आलोचक भी हैं और अध्यापन का कार्य करते हैं। बावजूद इसके इन कविताओं में अतिरिक्त आलोचकीय प्रयास एवं अध्यापन कर्म हावी नहीं है। वे बिल्कुल सहज ढंग से कविता में आते हैं। इन कविताओं में संप्रेषणीयता की बेचैनियां साफ़ दिखायी देती हैं।
       अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अध्यापक और सुपरिचित आलोचक ईश्वरसिंह दोस्त ने घड़ी दो घड़ी  की कविताओं को आत्म और संसार की खोज बताते हुए कहा कि इनमें विरूपित या बेदख़ल समय में मुहावरा ढूंढने की तलाश भी परिलक्षित होती है। एक ऐसे समय में जबकि आज कविता में टूटन और उदासीनता के उत्सव मनाये जा रहे हैं, जब कामनाओं को मेन्युप्लेट कर दिया गया है, ऐसे में बसंत त्रिपाठी भीतर की शिनाख़्त की तरफ़ मुड़ते नज़र आते हैं और तसल्लियों को पाते हुए भी उन्हें प्रश्नांकित करते हैं। ये आधुनिक प्रश्नेयता की कविताएं हैं।
       इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अस्टिटेंट प्रोफेसर कवि लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता के अनुसार, इस संग्रह की कविताओं में विसंगतियों की पड़ताल और समय से टकराहट सुस्पष्ट दिखायी देता है। धुंधली तस्वीरों को साफ़ करना, ग़ायब हो रहे स्पेस और स्मृतियों को सहेजना और बचाये रखना भी कवि की एक बड़ी ज़िम्मेदारी है जो संग्रह की छोटी-छोटी कविता में बखूबी नज़र आती है। हमारे समय से ओझल हो रही असली तस्वीरें इतिहास अथवा सरकारी फ़ाइलों में नहीं बल्कि हमारे समय में दर्ज हो रही कविताओं में मिलेंगी।आज हमारी संवेदनाएं किस क़दर संशय के दायरे में हैं, इसे कविता संध्या राग के अलग-अलग शेड्स में देखा-परखा जा सकता है।
       युवा कवि अरुणाभ सौरभ ने कहा कि इस संग्रह में बसंत त्रिपाठी की कविता का एक नया फ्रेम तैयार होता है। जो भव्य और विराट न होकर साधारण रचने का बहुत मानीख़ेज़ उपक्रम है। यहां बहुत सहज-सरल शब्दों में संवेदनाओं की बारीक पड़ताल के साथ आम जीवन की पीड़ा और गड़बड़ियां देखने को मिलती हैं। इस पड़ताल को वाजिब जगह तक ले जाती इन कविताओं में कवि का समग्र उपस्थित होता है।
       शुरू में बसंत त्रिपाठी ने घड़ी दो घड़ी  संग्रह से चुनिंदा कविताओं का पाठ किया।
       इस अवसर पर रामप्रकाश त्रिपाठी, डॉ.विजयबहादुर सिंह, शशांक, कुमार अंबुज, हरि भटनागर, रेखा कस्तवार, नीलेश रघुवंशी, पलाश सुरजन, सविता भार्गव, अनिल करमेले सहित अन्य साहित्यकार उपस्थित थे।
       मंच संचालन जलेस भोपाल के अध्यक्ष वसंत सकरगाए ने किया। जलेस भोपाल की सचिव संध्या कुलकर्णी ने आभार व्यक्त किया।
                        प्रस्तुति: वसंत सकरगाए

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