ज़िंदगियों को रौशन करने वाले तारों की चमक / हरियश राय


नवारुण ने विलक्षण कहानीकार योगेंद्र आहूजा के वैचारिक लेखन को  टूटते तारों तले शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित किया है। उस पर एक अन्य लब्धप्रतिष्ठ समकालीन कथाकार हरियश राय की टिप्पणी :

———————————————————————–

योगेन्‍द्र आहूजा हमारे समय के संवेदनशील और दृष्टिसंपन्न कथाकार हैं जिनकी कहानियों में जितना कहा जाता है, उससे ज़्यादा अनकहा मिलता है। उनके वाक्यों में शब्‍दों की कई-कई परतें होती हैं जिन्हें खोलने के लिए पूरी परंपरा और समय का बोध होना ज़रूरी है। उनकी कहानियां उन लोगों की कहानियां होती हैं जिनके मन की भीतरी तहों में बहुत ख़ामोशी से हमारे समय की गहरी उथल-पुथल समायी रहती है। उनकी कहानियों को समझना अपने समय की ख़ामोशी को अपने में आत्मसात करता है

हाल ही में नवारुण प्रकाशन से उनकी कथेतर गद्य की किताब टूटते तारों तले प्रकाशित हुई है जिसमें उनकी कुछ टिप्‍पणियां, वक्‍तव्‍य, विवेचनाएं और उनसे की गयी बातचीत शामिल है।

योगेन्‍द्र आहूजा किस तरह सोचते हैं, किस तरह लिखते हैं, उनकी मानसिक बुनावट में कौन- कौन-से घटक काम करते हैं, यह जानना और समझना हो तो इस किताब के अलग-अलग अध्‍यायों से गुज़रना होगा। किताब में उसके बारे में एक लेख शामिल है। लेख का ‘वह’ एक ऐसा पात्र है जो विज्ञान का विधार्थी था और जिसे मैक्‍सवेल, गैलीलियो, केपलर, कॉपरनिकस, ब्रूनो, आइंस्‍टीन और मैक्‍स प्‍लांक की पूरी परंपरा से प्रेम है और मुक्तिबोध को पढ़ने के बाद उनके गद्य और कविताओं की तेजस्विता और शक्ति की एक बेजोड़ विपुल संपदा से उसकी आंखें चौंधिया गयीं और वह दोस्‍तायव्स्‍की के इस वाक्य पर पक्‍का यकीन करता है कि ‘सुंदरता ही संसार को बचाएगी।’

यही ‘वह’ ‘परे हट, धूप आने दे’ लेख में मौजूद है जो पूरे साल तक डायरी तो लिखना चाहता है लेकिन कुछ वाक्य ही लिख कर रह जाता है, जिनसे बहुत कुछ बदल गया था – जैसे ‘यू टू ब्रूटस,’ ‘दुनिया के मज़दूरो, एक हो,’ ‘टू बी, ऑर नॉट टू बी, दैट इज द क्‍वेश्‍चन,’ या ‘लेट देयर बी लाइट एंड देयर वाज़ लाइट’। ये वे वाक्‍य हैं जिन्‍होंने दुनिया का नक्शा बदल दिया। योगेंद्र आहूजा इतिहास और विज्ञान से जुड़ी घटनाओं और कालजयी रचनाओं में से कुछ ऐसे सूत्र वाक्य व अंश खोज निकालते हैं जिनके माध्‍यम से उस युग की तकलीफ़ों, दुखों, विचारों और अवधारणाओं को निहायत संवेदनशीलता के साथ समझा जा सकता है। ऐसे सूत्र वाक्यों में ‘लेकिन पृथ्वी तो घूमती ही है’(गैलीलियो का कथन), ‘सभी सुखी परिवार एक से सुखी हैं और हर दुःखी परिवार अपने ढंग से दुःखी है’ (अन्ना कारेनिना) तथा गोदान, ज्ञानरंजन की कहानी ‘जलना’ व आदि विद्रोही के कुछ अंश शामिल हैं।

विजय वर्मा स्मृति सम्‍मान के अवसर पर दिये गये अपने वक्‍तव्‍य में योगेंद्र आहूजा मुक्तिबोध के इस कथन को – ‘दुनिया जैसी है उससे बेहतर चाहिए, इसे साफ़ करने के लिए एक मेहतर चाहिए’ तथा मुन्ना भाई एमबीबीएस फ़िल्म के उस दृश्य को याद करते हैं जिसमें फ़िल्म का नायक फ़र्श साफ करने वाले एक कर्मचारी को गले लगाता है। रमाकांत स्मृति पुरस्कार के अवसर पर बोलते हुए लेनिन के इस वाक्‍य को भी याद करते हैं कि ‘कोई भी देश स्त्रियों के साथ कैसा बर्ताव करता है, इसी से पता चलता है कि उसकी समाज व्‍यवस्‍था की असलियत क्‍या है।’ अपने वक्‍तव्‍य में वे प्रबुद्ध महिलाओं और स्‍त्री विमर्शकारों से दो बातें कहते हैं: “1. पूंजीवादी समाज में प्रेम मुमकिन नहीं है। इसमें कहीं-कहीं जो और जितना प्रेम नज़र आता है, वह दरअसल… ‘नेति प्रेम’ है। पितृसत्‍ता और पूंजीवाद एक ही चीज़ नहीं लेकिन उनसे मुक्ति की लड़ाइयों को एक दूसरे से जुदा नहीं किया जा सकता।… 2. अगर आप समझते हैं कि आप अकेले अपनी मुक्ति पा लेंगे और साम्राज्यवाद के बारे में, वैश्विक पूंजी के आक्रमण बारे में, ‘सेज़’ के बारे में, आदिवासियों और आत्‍म‍हत्‍या करते किसानों के बारे में कोई और सोचेगा, तो यह भी मुमकिन नहीं है। या तो सब एक साथ मुक्‍त होंगे या कोई नहीं।”

योगेंद्र आहूजा बेहद सूक्ष्म मनोभावों को दर्ज करने वाले कथाकार हैं। वे जीवन के महीन से महीन स्‍पर्श में जीवन के विराट सच को तलाश करने में माहिर हैं – जिसे मिर्ज़ा ग़ालिब ‘क़तरा में दजला जुज़्ब में कुल’ दिखाना कहते हैं। वीरेन डंगवाल को बेहद आत्मीयता और प्रेम की गहराइयों से याद करते हुए अस्‍पताल के उस वाक़ि’आ को दर्ज करते हैं जब वे वीरेन के कमरे में सो रहे थे और किसी ने उन पर कंबल ओढ़ा दिया था। बाद में योगेंद्र सोचते रहे, उन्‍हें यह कंबल किसने ओढ़ाया, क्‍योंकि दरवाज़ा अंदर से बंद था। तब उन्‍हें लगा कि ‘वीरेन जी ने मुझे कंबल ओढ़ाने के लिए अपने हाथ से वह सुई सावधानी से अलग की होगी, ग्लूकोज वाला स्‍टैंड परे खिसकाया होगा, बिस्‍तर से उतर कर कुछ क़दम चल कर मुझ तक आये होंगे।’ एक आत्‍मीय मित्र-लेखक की स्‍मृतियां किस तरह अंतर्मन में छायी रहती हैं, योगेंद्र आहूजा के इस लेख को पढ़कर जाना जा सकता है।

‘टूटते तारों तले’ शीर्षक लेख में योगेंद्र आहूजा मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा की कहानियों पर अपनी राय देने से पहले हिन्‍दी कहानी के बारे में कहते हैं कि ‘हिन्‍दी की कहानी अब विश्‍वस्‍तरीय है और इतनी विविधता उसमें है कि जो पाना चाहें, वह आज की कहानियों में मिल सकता है।’

मुक्तिबोध अपनी कविताओं के माध्‍यम से अंधेरे और रौशनी के द्वंद्व से बनी जटिल दुनिया की ओर ले जाते हैं और एक ऐसी फैंटेसी रचते हैं जिसमें एक ओर समाज में व्‍याप्‍त खौफ़ के भयानक चित्र हैं तो दूसरी ओर इस खौफ़ से निजात पाने के, मुक्ति के रास्तों की तलाश है। योगेंद्र आहूजा ने अपनी इस किताब में मुक्तिबोध की कहानियों पर जामिया मिलिया विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली में छात्रों के सम्मुख दिये गये व्‍याख्‍यान को भी शामिल किया है जिसमें वे ‘अंधेरे में’ ‘क्‍लाइड ईथरली,’ ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य,’ ‘पक्षी और दीमक,’ ‘जलना’ जैसी मुक्तिबोध की कहानियों की गहरी पड़ताल करते हुए कहते हैं कि ‘मुक्तिबोध की कहानियों का नायक सिर्फ़ एक सचेत, संवेदनशील लेखक नहीं, एक बेचैन, प्रश्‍नाकुल लेखक है, वह विश्‍वचेता है।’ इसी तरह ज्ञानरंजन की कहानियों का विश्‍लेषण करते हुए योगेंद्र आहूजा ज्ञानरंजन की शुरुआती कहानियों में ‘विट और ह्यूमर’ के तत्व ज्‍़यादा  देखते है। ‘एक अदना, मामूली शब्‍द’  शीर्षक लेख में योगेंद्र आहूजा अपनी चिंताओं-दुश्चिताओं, उद्वेगों, भावनाओं और विचारों को एक वरिष्‍ठ कवि से संवाद के माध्‍यम से सामने रखते हैं। उनके सरोकारों में समय के भयावह अंधेरों से जन्‍मे गहरे विषाद और दुःख हैं।

योगेंद्र आहूजा की संवेदनाओं, भावों, अनुभूतियों, विचारों और सरोकारों को जानना हो तो इस किताब में शामिल उनके इंटरव्यू को बार-बार पढ़ा जाना चाहिए। इस इंटरव्यू में वे विश्व की अनेक कालजयी रचनाओं और फ़िल्मों – जैसे, दोस्‍तोयव्स्‍की की रचना हाउस ऑफ द डेड, स्‍टीफेन स्‍वाइग की किताब तीन उस्ताद, हावर्ड फ़ास्‍ट की रचनाएं  स्‍पार्टकस, माई ग्लोरियस बद्रर्स, सिटिजन टॉम पेन, मुक्तिबोध की किताब चांद का मुंह टेढ़ा है, जैक लंडन की कहानीमैक्सिकन’, फ़ैज़ की नज़्म ‘हम देखेंगे’ और मिलान कुंदेरा की रचनाओं के हवाले में अपने मन की बात को बेहद ईमानदारी और तटस्थता से कहते हैं।

योगेंद्र आहूजा की यह किताब अपने आप में कथेतर गद्य की एक विलक्षण किताब है। इस विलक्षणता का एहसास किताब में संकलित उनके लेख, भाषण, विचारों को पढ़ने पर होता है। जगह-जगह विश्व की क्‍लासिक कृतियों, लेखकों व फिल्‍मों को याद कर उन्‍हें अपनी स्‍मृतियों में पिरोकर प्रस्‍तुत करना किताब की बहुत बड़ी खूबी है।

(योगेंद्र आहूजा, टूटते तारों तले, नवारुण प्रकाशन, ग़ाजि़याबाद, पृष्ठ : 186, क़ीमत : रु. 260)                              

 hariyashrai@gmail.com

 

 


Leave a Comment