पांच अवधी पद / विवेक निराला


1

माधौ! असंसदीय मत बोलो।

भजन-कीर्तन जाप करौ जब, राम कहे मुंह खोलो।।

जुबां-केसरी फांक के, सच बोलै से पहिले तौलो।

जिसका देखौ पलड़ा भारी, उसी के बस तुम हो लो।।

कोरस के दिन बीते केशव, बैठ गाइये सोलो। 

जहां भी ख़तरा दीखै साथी, तुरत वहां से पोलो।।

पंक से पूरित हाथ तुम्हारे, गंगा जल से धो लो।

दुसह दुक्ख दक्षिण में देखे, मन हल्का हो, रो लो।।

एक छोड़ सब हैं प्रतिबंधित, कौन रंग को घोलो।

नक्सल समझे जैहौ माधव, मधुबन में मत डोलो।।

 

2

ऊधौ  पत्रकार  टी.वी.  के। 

नहीं  कबहुं  मनभावन  मीठे,  ये  हैं फल  कीवी के।।

अलग धजा  धारे शोभित हैं,  न्यूज  रूम  के   एंकर।

ज्यों सड़कन का रौंदत आवत, वे डीजल  के टैंकर।।

टी.वी.  पै   डिबेट   करवावैं,  चार   मनइ   बइठाये।

औरन का बोलन नहिं देहैं, अपनिन  आप  चलाये।।

कुछ सच्चाई दाब के राखैं,  कुछ  झूठन  का  भाखैं।

सब करुवाहट हमैं परोसैं,  स्वयं  मधुर  फल चाखैं।।

चीख के बोलैं, नक्शा मारैं,  भेजें   तगड़ा   सी. वी.।

बुद्धि-बिबेक ताख पर  रक्खे, नाम  के  बुद्धीजीवी।।

 

3

ऊधौ!  अंध-समर्थक  आये।

सब बिसराय डार, द्रुम, पल्लव, जड़ देखे मुस्काये।।

तर्कातीत,  बुद्धि  सब  त्यागे,  ऐसों  निपट  अभागे।

सब  स्वतंत्र  ह्वै नाचत  भूले,  बंधे  भये   हैं  धागे।।

अति  उजड्ड,  उडगन  की नाईं  पिछवाड़ा चमकावैं।

जो  इनसे  शास्त्रार्थ  करै  सोइ, लै  लाठी धमकावैं।।

तारी   दै   दै,  गारी   दै  दै,  जब  मीडिया  मं  आवैं।

तब   जानौ   पूरे  त्रिभुवन  मं,  भारी  भक्त  कहावैं।।

हाथ    धोय   के   पीछे   परिगे,  इनसे  राम  बचाये।

सूधी  राह  कबहुं  नहिं इनकी, कुटिल  राह पर धाये।

 

4

साधो! अब सब हाट बिकैहैं।

अब  गौरव नवरतन हमारे, निजी हाथ  मां जैहें।।

बजट-सजत सरकारी घाटा, एअर इंडिया टाटा।

कर्ज़ा काटा तब घर लाये, तेल, नून  और आटा।।

महंगाई की आग लगी है, कइसेव जियइ  न  देय।

अपनइ मांस हमारो खाना, अपनइ रकत है पेय।।

मुश्किल   में   हैं  प्राण  हमारे, कइसे  जान बचैहें।

जे  निरदोष,  निरपराध   हैं,  वे   सब  मारे  जैहें।।

 

5

ऊधौ! कर दी खाट खड़ी। 

एक समस्या को हल करिहैं,  दुसरी  आन  पड़ी।।

तुम  तौ आये जनता  सौं  करि,  बातैं  बड़ी-बड़ी।

अच्छे दिन कब तक आवैंगे, दिल मं  फांस गड़ी।।

महंगाई  को  छुट्टा छोड़्यो,  मुश्किल  आन  पड़ी।

सांस लेन मं टैक्स अब परिहै, जिनगी भई कड़ी।।

स्विस  बैंक  मं  रूपया बढ़िगौ,  सूची  नयी खड़ी।

तुम तौ पूरा विश्व भ्रमण करि, मारत छड़ी-छड़ी।।

पूंजीपतियन  के  पालक  हौ, परजा आंखि गड़ी।

हिंदू  राष्ट्र  बनै   कब भारत,  देखत घड़ी-घड़ी।।

मो.94152899529


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