क्वारंटाइन सेन्टर : कोरोना काल की त्रासद गाथा / डा. अली इमाम ख़ाँ
“ये लघुकथाएं एक संक्षिप्त काल की हैं, फिर भी लेखक ने परिस्थितियों, विचारों और बयान करने की कला को दोहराने
“ये लघुकथाएं एक संक्षिप्त काल की हैं, फिर भी लेखक ने परिस्थितियों, विचारों और बयान करने की कला को दोहराने
“सोफ़ोक्लीज़ की कृति यह बताने नहीं आती कि शोकांतिका केवल भाग्य का खेल है; वह हमें यह दिखाती है कि
‘भाषा के साथ इस अद्भुत तादात्म्य को दस्तावेज़ के रूप में दर्ज करती ‘इन अदर वर्ड्स’ भाषा के साथ होने
नात्सी अत्याचार का भयावह दौर… अपने बेटे से दूर नात्सियों के यातना शिविर में फँसी अन्ना सेम्योनोव्ना… शिविर के अँधेरे
कुछ लोगों की राय है कि दमन के दौर लेखन को व्यंजना शक्ति की ओर अधिकाधिक उन्मुख करते हैं और
‘इतिहास में अधीनस्थ होने का अर्थ मूक होना या अशक्त होना नहीं है। संघर्ष हुआ है, इसे स्वीकार करने की
सुभाष राय की किताब ‘अक्क महादेवी’ की यह छोटी और सघन समीक्षा डॉ. रूपा सिंह ने की है जिन्हें हम
‘ ‘द कॉन्ट्रैक्ट्स ऑफ फ़िक्शन’ हमें याद दिलाती है कि साहित्य एक गहरा अभ्यास है जिसके सहारे हम अपने नैतिक
‘अच्छे साहित्य की एक पहचान यह भी होती है कि वह हमारी चेतना को उन्नत करता है और परम्परागत प्रगति-विरोधी