संविधान, क़ानून के शासन, साझी संस्कृति और सामाजिक सौहार्द की रक्षा करो!


आज जनवादी लेखक संघ मेरठ ने देश में संविधान, कानून के शासन और साझी संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब की बिगड़ी हुई हालात पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए भारत की राष्ट्रपति महोदया को जिलाधीश मेरठ के माध्यम से एक ज्ञापन दिया। ज्ञापन में भारत के संविधान, कानून के शासन, साझी संस्कृति और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की मांग की गई। इसके लिए लेखकों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए आगे आना पड़ेगा।

ज्ञापन में कहा गया है कि आज की हालत को देखकर भारत के अधिकांश लोग परेशान हैं। रोज-रोज संवैधानिक प्रावधानों और कानून के शासन का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया जा रहा है। अब तो कुछ अदालतें भी कानून विरोधी फैसले और आदेश देने पर उतर आई हैं। इसी के साथ सामाजिक शांति और सौहार्द को जान पूछ कर एक साजिश के साथ तोड़ा मरोड़ा जा रहा है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके लोगों में हिंदू मुस्लिम का बंटवारा करके नफरत का माहौल पैदा किया जा रहा है और मुसलमानों को निशाना बनाने की कार्यवाहियां की जा रही हैं जो एकदम ग़लत हैं।

ज्ञापन में कहा गया है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 की धारा 4 और 5 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को किसी भी धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी, उसने किसी को भी परिवर्तन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है और सीपीसी के आर्डर 7 और रूल 11 के अंतर्गत कानून के खिलाफ कोई भी अदालत कोई मुकदमा एंटरटेन नहीं कर सकती। इस प्रकार उपरोक्त दोनों स्पष्ट कानूनी प्रावधानों के तहत किसी भी धार्मिक स्थल को बदलने का कोई मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता। मगर सांप्रदायिक ताकतों की एक सोची समझी साजिश के तहत यह सब हो रहा है ताकि सरकार विरोधी नीतियों से और जनता के बुनियादी मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके और उसे भटकाया जा सके।

ऐसे में संविधान और कानून के प्रावधानों को धराशाई किया जा रहा है और यह सब जनता की एकता को तोड़ने और समाज में मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। इस कारण समाज में सांप्रदायिक नफरत फैलाकर सांप्रदायिक एकता, शांति, सुरक्षा और सौंदर्य को गंभीर खतरे पैदा किया जा रहे हैं। इस सब को रोकने के लिए संविधान, कानून के शासन और सांप्रदायिक सौहार्द एकता और अखंडता को बनाए रखना बेहद जरूरी हो गया है। ऐसे में जनता को एकजुट होकर इस आपराधिक नफरत की मुहिम का समुचित विरोध करना चाहिए।

ज्ञापन में राष्ट्रपति महोदया से मांग की गई है कि 1.धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदलने की हर कोशिश नाकाम की जाए, 2.संविधान के बुनियादी सिद्धांतों और कानून के शासन को हर स्थिति में लागू किया जाए, 3. हिंदू मुस्लिम एकता, साझी संस्कृति और गंगा जमुनी तहजीब को बनाए रखने के सभी कारगर उपाय अमल में ले जाएं, 4. सभी अदालतों को उपरोक्त कानूनों के तहत काम करने के जरूरी आदेश और निर्देश दिए जाएं, 5. उपरोक्त कानूनों के खिलाफ काम करने वाले सभी जजों, सरकारी अधिकारियों और सांप्रदायिक नफरत का जहर फैलाने वाली ताकतों के खिलाफ तुरंत सबसे सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

इस अवसर पर अध्यक्ष रामगोपाल भारतीय और जिला सचिव मुनेश त्यागी ने अपने विचार व्यक्त किये और उपरोक्त मांगों को स्वीकार करने की मांग की। उन्होंने कहा कि इस नाजुक मौके पर समस्त प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और जनवादी कवियों, लेखकों और शायरों को एकजुट होकर सांप्रदायिक नफरत की इस आपराधिक मुहिम का मुकाबला करना चाहिए और जनता को हिंदू मुस्लिम की साझी संस्कृति के असली हीरे-मोतियो और एतिहासिक तथ्यों से जनता को सही रूप से अवगत कराना चाहिए ताकि इस नफरती मुहीम का समुचित जवाब दिया जा सके और समाज में हिंदू मुस्लिम एकता, भाईचारा और सौहार्द कायम किया जा सके।

जिला सचिव मुनेश त्यागी ने बताया कि इस मामले में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से 26 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश को उपरोक्त तथ्यों का हवाला देते हुए एक पत्र यानी खत लिखा है और तुरंत सख्त कार्रवाई करने और समस्त न्यायिक अधिकारियों और जजों को सख्त निर्देश देने की मांग की है ताकि वे कानून के प्रावधानों के अनुसार काम करें और कोई जल्दीबाजी ना करें। ज्ञापन देने वालों में जनवादी लेखक संघ के रामगोपाल भारतीय, मुनेश त्यागी, मंगल सिंह मंगल, जी पी सलोनिया, फखरे आलम, जितेंद्र पांचाल, धर्म सिंह सत्याल, धर्मपाल सिंह मित्रा, आबिद राणा, तनवीर अहमद, नसीम अख्तर, सेवाराम केन, अफजाल चौधरी, संयम और विनेश जैन आदि शामिल थे।


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