कौशांबी हत्याकांड: पीड़ित को ही गुनहगार ठहराने की कला / बजरंग बिहारी तिवारी


राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल-दर-साल जाति आधारित हिंसा में कमी आने के स्थान पर बढ़ोत्तरी हो रही है। –सितंबर में हुए कौशांबी हत्याकांड पर बजरंग बिहारी तिवारी की तथ्य-संग्रह रिपोर्ट:

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पंद्रह सितंबर, 2023। सुबह 5 बजे का वक़्त। काली बरसाती (पॉलिथीन/पन्नी) से बने अपने मड़हा (झोपड़ी) के सामने होरीलाल सरोज (पासी) सोये हुए थे। वहीं उनके दामाद शिवसरन तथा बेटी बृजकली भी अपनी खाट पर नींद में थे। बेटी बृजकली सात महीने की गर्भवती थी। असलहों के साथ कुछ लोगों ने हमला किया। उन सबको गोली मार दी गयी। सबकी ठौर मृत्यु हो गयी। होरीलाल का अपना स्थायी निवास यहां से दो-तीन किलोमीटर आगे जोत खातून छबिलवा गांव में है। परिवार वहीं रहता है। परिवार में पत्नी संवारी तथा 3 बेटे हैं। दो बेटों की शादी हो चुकी है। उनके अपने बाल-बच्चे हैं। सबसे छोटे दिलीप (18) अभी अविवाहित हैं। होरीलाल की चार बेटियों (गुड्डी, सुमन, सूरजकली, बृजकली) में सबसे छोटी बृजकली की शादी 2020 में शिवसरन से हुई थी। बृजकली ग्रेजुएट थीं और एक स्थानीय अस्पताल में नर्स का काम करती थीं। शिवसरन जनसेवा केंद्र चलाते थे। जहां उनकी झोपड़ी थी, वह ज़मीन उन्होंने 3 साल पहले लालचंद धोबी से ख़रीदी थी। 2 बिस्वा ज़मीन तीन लाख रुपये में मिली थी। यह पंडा चौराहे के बिलकुल सामने है और इसकी क़ीमत इस बीच कई कारणों से उछल गयी है। गांव के लोग लालचंद धोबी को उस जगह पर बसने नहीं देना चाहते थे। जब उस ज़मीन का एक हिस्सा शिवसरन ने ख़रीदा और वहां रहने के लिए उस ज़मीन की मिट्टी डालकर पटाई करायी, तब यह गांव के ‘बड़े’ लोगों को बहुत नागवार गुज़रा। गांव मोहिद्दीनपुर गौसपुर उपरहार के इस हिस्से को पंडा चौराहा कहा जाता है। यहां मुख्यतः यादव और लोनिया जाति के लोग रहते हैं। यादव स्वयं को यदुवंशी ठाकुर कहते हैं और लोनिया अपने को चौहान राजपूत बताते हैं। अपने घर के निकट पासी और धोबी के बसने पर उन्हें सख्त एतराज़ है। उन्होंने कई बार लालचंद को और बाद में शिवसरन को आगाह किया था और नतीजे भुगतने की धमकी दी थी।

घटना के एक हफ़्ते बाद तथ्य-संग्रह हेतु मैं कौशांबी गया। मोहिद्दीनपुर संदीपनघाट थाना क्षेत्र के अंतर्गत है। घटना-स्थल पंडा चौराहा पर बड़ी संख्या में पुलिस की तैनाती थी। अलग-अलग टुकड़ियों में यह तैनाती छबिलवा गांव तक थी। यह कछार का इलाक़ा है। बारिश के दिनों में गंगा नदी बढ़ आती है। उपजाऊ मिट्टी छोड़ जाती है। धान-गेहूं तथा सब्ज़ियों की पैदावार अच्छी होती है। इस समय यहां धान लहलहा रहे थे। खेत उपजाऊ हैं तो उनके दाम आसमान छू रहे हैं। भूमाफिया भी उभर आये हैं। खेतों को हथियाने का धंधा चल रहा है। नदी किनारे होने के कारण बालू माफिया भी सक्रिय हैं। होरीलाल पट्टे में मिली ज़मीन हासिल करना चाहते थे। मोहिद्दीनपुर के 36 भूमिहीन परिवारों को 2009 में क़रीब बारह हेक्टेयर ज़मीन पट्टे पर दी गयी थी। तब यह गांव कुरई ग्रामसभा के अंतर्गत था। पट्टे का रक़बा दस बिस्वा से लेकर एक बीघे तक था। भूमिहीनों को पट्टा तो मिल गया लेकिन उस ज़मीन पर क़ब्ज़ा नहीं मिला। क़ब्ज़ा दिलाने में तहसील के अधिकारियों की रुचि भी नहीं थी। नतीजतन, भीतर-भीतर असंतोष बढ़ता गया। दबंग परिवार ज़मीनों पर क़ाबिज़ रहे।

24 सितंबर की सुबह अपने युवा साथी राजनीतिशास्त्र के छात्र मनीष के साथ इलाहाबाद से बाइक पर कौशांबी के मोहिद्दीन गांव पहुंचा तो आसमान में हलके बादल थे। धूप निकली हुई थी। पंडा चौराहे पर सन्नाटा पसरा हुआ था। 3-4 की झुंड में सिपाही यहां-वहां दिखायी दे रहे। एक सब-इंस्पेक्टर से घटना की बाबत जानना चाहा तो विफलता हाथ लगी। वह टुकड़ी किसी और थाने से यहां भेजी गयी थी। बताया गया कि इस मामले पर संबंधित विवेचनाधिकारी ही रोशनी डाल सकते हैं और जांच में हुई प्रगति से अवगत करा सकते हैं। पंडा चौराहे से एक मुख्य सड़क गुज़रती है। डबल इंजन सरकार ने इसे राम-वन-गमन मार्ग घोषित कर दिया है। प्रयागराज से चित्रकूट तक यह मार्ग नये सिरे से बनाया-संवारा जायेगा। इस घोषणा से सड़क के आस-पास की ज़मीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं। चौराहे पर ही एक राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आइटीआइ) बन गया है। इससे भी ज़मीन की क़ीमत में इज़ाफ़ा हुआ है। चौराहे से जो सड़क छबिलवा गांव की तरफ़ जाती है, उसी पर बायीं ओर होरीलाल का प्लाट है। मिट्टी की नयी पटाई है। मिट्टी को समतल करके झोपड़ी डाली गयी है। झोपड़ी कहीं से भी क्षत-विक्षत नहीं है। हमलावर चाहते तो उसमें तोड़फोड़ कर सकते थे, आग लगा सकते थे। झोपड़ी के बाहर तख़्त और एक फ़ोल्डिंग बेड रखा हुआ था। इन्हीं पर वे लोग सोये हुए थे। बिछावन पुलिस ने हटा लिया होगा। गोली लगने के बाद खून तो गिरा ही होगा। बेड या तख़्त पर खून के धब्बे नहीं थे। शायद बिछावन पर रहे हों। सड़क पार जो मकान हैं, उनमें एक पैटर्न है। सभी मकान पक्के हैं। अपेक्षाकृत नये बने हैं। दरवाज़े के साथ छप्पर या एबेस्टास/फाइबरी चादर डाले गये हैं। प्रायः चारा काटने की मशीन लगी है। इनमें हरा और सूखा चारा रखा गया है। हत्या वाली सुबह इन सबमें आग लगायी गयी। मुझे ऐसे अधजले आठ-दस छप्पर दिखे। अचरज की बात यह थी कि आग घर तक नहीं पहुंचने दी गयी थी। एबेस्टास को कोई नुक्सान नहीं पहुंचा था, लेकिन उसके नीचे रखे सूखे चारे – जैसे भूसा, डंठल आदि – जल गये थे। वे सभी घर खाली पड़े थे। पीछे की तरफ़ थोड़ी दूर पर भैंस चराते कुछ लड़के ज़रूर हम पर निगाह रखे हुए थे। बुलडोज़र की कार्रवाई के निशान भी वहां थे। एक दुकान का अगला हिस्सा बुलडोज़र से तोड़ा गया था तथा एक बाउंड्री वाल पर बुलडोज़र चला था। यह तुरंता-न्याय की नयी व्यवस्था है जो अब सामान्य या ‘न्यू नॉर्मल’ मानी जा रही है। वहां से गुज़र रहे कुछ लोगों से घटना का ब्योरा लेना चाहा तो उन्होंने असमर्थता जतायी और सलाह दी कि तफ़सील जानने के लिए मृतक होरीलाल के स्थाई निवास मजरा छबिलवा जाना ठीक रहेगा।

मजरा छबिलवा में एक घर पटेल का है और 28-30 घर पासी के हैं। गांव में होरीलाल का घर संपन्नों में गिना जाता है। 7-8 दुधहा भैसें हैं। ट्रैक्टर-ट्राली है। डीज़ल इंजन, पंपिंग सेट है। पक्का मकान है। मकान के सामने नीम का पेड़ है। यहां दो तख्ते रखे हुए हैं। संवेदना व्यक्त करने आये कुछ सगे-संबंधी व इलाक़े के लोग बैठे हुए हैं। मृतक के तीन बेटों में दो घर पर ही हैं। एफ़आइआर दर्ज करानेवाले दूसरे बेटे सुभाषचन्द उर्फ़ संजीत कुमार (25) को पुलिस ने अपने क़ब्ज़े में ले रखा है। ताक़ीद कर रखी है कि वे किसी बाहरी व्यक्ति या मीडियाकर्मी से बात न करें। छोटे बेटे दिलीप (18) पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। हमारी बात उनसे हुई। नवीं कक्षा तक पढ़े हुए दिलीप ने दूध का कारोबार संभाला हुआ है। वे बेहद डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि हत्याकांड के तीन-चार दिन बाद पुलिस की पहल पर की गयी क्रॉस एफ़आइआर में उन्हें, उनके परिवार के शेष सदस्यों को कभी भी गिरफ़्तार किया जा सकता है। इस दूसरी एफ़आइआर में पीड़ित परिवार पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने और उनके द्वारा बुलायी भीड़ ने गांव में आगजनी की। दिलीप का कहना है कि उनके परिवार को पिताजी और जीजा-दीदी के मारे जाने की ख़बर देर से लगी। जब वे लोग पंडा चौराहा पहुंचे, तब तक पुलिस ने सभी लाशों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। पंडा चौराहे पर उस समय सुबह 10-11 बजे के बीच भीड़ जमा थी। अपने परिवारजनों के मारे जाने के कारण वे सब स्वयं बेहद खौफ़ज़दा थे। वे दबंगों के चाराघर में आग लगाने की सोच भी नहीं सकते थे। एफ़आइआर रजिस्टर करानेवाले दिलीप के मंझले भाई सहित पूरे परिवार को पुलिस ने अपनी निगरानी में ले लिया था। अगले दो-तीन दिनों तक उन्हें अलग-थलग रखा गया था। क्रॉस एफ़आइआर से हत्याकांड की गंभीरता कम होगी, यही सोचकर एक प्लानिंग के तहत उन लोगों ने अपने दरवाज़े पर रखे छप्परों/सूखे चारा भूसे आदि में आग लगायी होगी। इस बात की ताईद दिलीप के मंझले जीजा रामचंद्र (32) ने भी की। रामचंद्र से होरीलाल की दूसरी बेटी सुमन (28) की शादी हुई है। इस समय वे परिवार के भावनात्मक संबल बनकर खड़े हैं।

प्रथम सूचना रिपोर्ट में आठ लोगों को नामज़द किया गया था- गुड्डू यादव, अमर सिंह (लोनिया), अमित सिंह (लोनिया), अरविंद सिंह (यादव), अनुज सिंह (लोनिया), राजेंद्र सिंह (लोनिया), सुरेश और अजीत (यादव)। तहक़ीक़ात के बाद पुलिस ने तीन नाम और जोड़े- जयकरन यादव, तीरथ निषाद और अनूप। अभी नौ आरोपी जेल में हैं और दो फ़रार हैं। घटनास्थल से थाना संदीपनघाट 12 किलोमीटर दूर है। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 302, 34, 7 के अंतर्गत मामला दर्ज किया है। इसके साथ ही अजा/अजजा अट्रोसिटी प्रिवेंशन अधिनियम 1989, संशोधित 2015 की धारा 3(2)(v) भी लगायी गयी है। 15 सितंबर को दोपहर सवा बारह बजे दर्ज एफ़आइआर संख्या 0227 में सुभाषचंद कहते हैं कि जब हत्या की ख़बर पाकर वे पंडा चौराहा मोहिद्दीनपुर गौस पहुंचे, तब वहां पुलिस के आला अधिकारी मौजूद थे। तीनों लाशें पड़ी हुई थीं। आस-पास के दहशतज़दा लोग कुछ बताने को तैयार नहीं थे। इस तहरीर में वादी ने पुलिस से कड़ी कार्यवाही करने की याचना की है।

मृतक की पत्नी संवारी देवी (56) का दुःख बयान नहीं किया जा सकता। मैं दिल्ली से आया हूं, यह जानकर उन्हें कुछ सांत्वना मिली। इंसाफ़ की गुहार जितनी दूर पहुंचे, अच्छा है। भरे गले से उन्होंने बताया कि परिवार चाहता था, अंतिम संस्कार ठीक से हो। पुलिस ने हमें लाश ही नहीं दी। उनके पति, बेटी, दामाद को ‘गोरू’ (मवेशी/पशु) की तरह मिट्टी में दबा दिया गया। यहां से पांच किलोमीटर दूर पुलिस लाश ले गयी| गंगा के कछार में उन तीनों को गाड़ा गया। ज़मीन खोदने के लिए जेसीबी मशीन लायी गयी। मरने वालों की बड़ी बेकद्री हुई। अंतिम समय मुंह भी नहीं देख पाये। श्रीमती संवारी की दारुण व्यथा सुनकर वहां एकत्र लोगों की प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं- “यह सरकार हमारी नहीं सुनती।” “पुलिस का रवैया ठीक नहीं है। उन्होंने हमें चौबीस घंटे नज़रबंद रखा।” “मीडिया बिकी हुई है। सब सरकार के प्रवक्ता हो गये हैं। ये विपक्ष से सवाल करते हैं। जो सच में पत्रकारिता कर रहे हैं, उन्हें फंसा दिया जा रहा है। जेल में डाला जा रहा है।” “पुलिस ने उनकी बाउंड्री वाल का एक हिस्सा गिराकर, फिर उसे 24 लोगों को दिखाकर जता दिया कि न्याय हो गया।” “इंसाफ़ मिलना कठिन है। दिखावा ही दिखावा हो रहा है।” “हमारे स्थानीय नेता वीरेंद्र पासी हैं। आप सोचेंगे कि उन्होंने हमारी मदद की है। हक़ीक़त यह है कि उन्होंने नेगेटिव भूमिका अदा की है। वे मूरतगंज के चेयरमैन हैं। भाजपा के नेता हैं। कथनी-करनी में बड़ा फ़र्क है।” “इस पुलिस से हमें कोई उम्मीद नहीं है।” “वे (ऊंची जाति वाले यदुवंशी, चौहान) पहले से चेतावनी दे रहे थे। अगर हम भी लोनिया या यादव होते तो वे कोई बखेड़ा न खड़ा करते। हमारा पासी होना उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उन्होंने कह रखा था कि 54 बीघा ज़मीन में कोई पासी नहीं रहेगा।” ‘क्या आपको एससी/एसटी एक्ट के तहत मिलने वाला मुआवज़ा मिला?’ मेरे इस सवाल पर रामचंद्र जी ने बताया कि मुआवज़े की शुरुआती राशि (चार लाख रुपये) मिल गयी है।

23 सितंबर को इलाहाबाद के नागरिक समाज का विरोध प्रदर्शन हुआ। बैठक की शक्ल में हुए इस प्रदर्शन की जगह थी पत्थर गिरजा। रेलवे स्टेशन के पास स्थित यह पुराना चर्च सिविल लाइंस क्षेत्र में है। इस विरोध सभा में कई लोगों ने अपने विचार रखे। इससे कौशांबी हत्याकांड को समझने का एक परिप्रेक्ष्य मिला। बोलनेवाले मुख्यतः वाम-सोशलिस्ट-आंबेडकरवादी रुझान के लोग थे। नागरिक समाज की विरोध सभा के ठीक बगल में ‘डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय एकता मंच’ की प्रतिरोध सभा चल रही थी। विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता राजवेंद्र सिंह की पहल पर दोनों विरोध सभाएं एकजुट हो गयीं। प्रमुख वक्ता आशीष मित्तल ने कहा कि इस घटनाक्रम में मुख्य भूमिका दशरथ की है, लेकिन वह साफ़ बच निकला है। एफ़आइआर में उसका नाम ही नहीं है। दूसरा व्यक्ति पथराहा गांव का बालू माफिया अमर सिंह है। यह ग्राम प्रधान भी है। इसे पुलिस गिरफ़्तार कर चुकी है। ऐसे तो इस इलाक़े के पासी बहुत ग़रीब हैं, लेकिन होरीलाल की आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी है। उनका दामाद शिवसरन (मूल निवासी काकराबाद) भी कमाई करने लगा था। बृजकली एक निजी अस्पताल में नर्स का काम करने लगी थी। इलाक़े में इस परिवार की अच्छी पहचान बनने लगी थी। इन्हें कुचलकर अपनी जातीय श्रेष्ठता बनाये रखनेवाले लोग इससे परेशान हो गये थे। दमन हेतु उन्हें मौक़े की तलाश थी। आशीष मित्तल के बाद अपनी बात रखते हुए विनोद कुमार तिवारी ने कहा कि इस हत्याकांड को जातिवादी अत्याचार के रूप में न देखा जाये। यह ज़मीन क़ब्ज़ाने का मामला है। राम वन गमन मार्ग घोषित होने के कारण उस जगह की क़ीमत चढ़ गयी है। बड़े भूमाफिया स्वयं आगे नहीं आते। वे अपने छोटे भाइयों को आगे कर देते हैं। पुलिस चाहती तो आवंटित पट्टों पर क़ब्ज़ा दिला सकती थी। रेलवे की ज़मीन पर अडाणी का क़ब्ज़ा होता जा रहा है। बनारस में विनोबा भावे के मकान और सर्व सेवा संघ भवन पर बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया गया है। अपनी तक़रीर में सीमा आज़ाद ने कहा कि ज़मीन लूटने का दौर तो चल ही रहा है, साथ ही यह जाति-उत्पीड़न का मामला भी है। ज़मीन की लूट में सरकार शामिल है। बुलडोज़र उसका अस्त्र है। निशाने पर दलित की ज़मीन है। खिरियाबाग का आंदोलन चल रहा है। दलित लड़ रहे हैं। ज़मीन की लूट का केस है। इसमें मुझसे पूछताछ की गयी। ‘दस्तक’ पत्रिका के बारे में पूछा गया। राजनीतिक बंदियों के बारे में पूछा गया। राजवेंद्र सिंह ने कहा कि फाफामऊ में पिछले साल एक दलित परिवार को ज़मीन के लिए मार दिया गया (‘कथादेश’ जनवरी 2022 अंक में इस घटना की विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी है)। पुलिस उनके साथ है। भूमाफिया सत्ताधारी दल का झंडा लगाये घूम रहे हैं। लोग (इलाहाबाद के समीप स्थित) नैनी में कच्चे घर बनाकर सैकड़ों वर्षों से रह रहे थे। इलाहाबाद विकास प्राधिकरण (एडीए) तो बहुत बाद में बना है। ये तो इसके बनने के पहले से रह रहे हैं। अब इन घरों पर बुलडोज़र चलाया जायेगा। उजड़ने वालों को मुआवज़ा भी नहीं मिलेगा।

अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (AIKMS) से जुड़े महिला और पुरुष कार्यकर्ता हंसिया-हथौड़ा अंकित लाल झंडे के साथ किंचित देर से विरोध सभा में शामिल हुए। वे कौशांबी के गांवों से इस प्रदर्शन में सम्मिलित होने पहुंचे थे। उनके आने से सभा के रूप और कंटेंट दोनों में परिवर्तन आ गया। वे जो नारे लगा रहे थे, उनमें ज़मीन पर मालिकाना हक़ की मांग और न्याय मिलने तक लड़ाई जारी रखने का संकल्प मुख्य था। कौशांबी की चायल तहसील से आये AIKMS के प्रतिनिधि कार्यकर्त्ता ने कहा कि हमारी लड़ाई 2009 से चल रही है। हम गांव के भूमिहीन किसान हैं। पार्टी (सीपीआइ-एमएल) ने हमारा साथ दिया है। हम पार्टी के प्रति समर्पित लोग हैं। 432 बीघा ज़मीन क़ब्ज़ायी गयी थी। हमने मुक़दमा लड़ा। हमारी जीत हुई। इसके बावज़ूद हमें क़ब्ज़ा नहीं मिला। हमारी ज़मीन कॉर्पोरेट के सुपुर्द की जा रही है।

डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय एकता मंच के संयोजक अधिवक्ता डॉ. भास्कर ने एससी/एसटी एक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उत्पीड़ित परिवार को इसमें आठ लाख मुआवज़े का प्रावधान है। सरकारी नौकरी का भी। सीपीआइ के वरिष्ठ साथी नसीम ने कहा कि सारी दौलत अडाणी की ओर ठेली जा रही है। केरल की कम्युनिस्ट सरकार की उपलब्धियों का स्मरण कराते हुए उन्होंने बताया कि यहां दलितों को लैंड रिफॉर्म के तहत ज़मीन आवंटित की गयी थी। उन्होंने कहा कि ज़मीन की लूट हो रही है और लूट का राज चल रहा है। कौशांबी से आये फूलचंद जी ने कहा कि आप लोग जो धरना यहां दे रहे हैं, वह घटनास्थल पर चलकर दीजिए। मरने से न डरिए। डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय एकता मंच के मनोज चौधरी ने कहा कि दलित और किसान दोनों प्रताड़ित हैं। दोनों मिलकर लड़ेंगे। परेशान सब हैं। ये लोग क्राइम के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस का वायदा करके आये थे। हक़ीक़त देखिए। केशवप्रसाद मौर्य का लड़का कौशांबी में ज़मीन क़ब्ज़ा करने में लगा हुआ है। आइसा के प्रदेश संयोजक, भाकपा (माले) की राज्य समिति के सदस्य सुनील मौर्य ने बताया कि दलित विद्यार्थियों के लिए बने छात्रावास ध्वस्त किये जा रहे हैं। वह ज़मीन माफिया को सौंपी जा रही है। दहशत का माहौल है। जिन छात्र नेताओं ने फ़ीस वृद्धि पर सवाल उठाया था, वे जेल में डाल दिये गये हैं। विरोध सभा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समाजकर्मी कॉम. हरिश्चंद्र द्विवेदी ने कहा कि इस मुल्क की नींव धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर रखी गयी थी। डॉ. आंबेडकर ने आर्थिक समानता पर बल दिया था। धन्ना-सेठों की सरकार उन्हीं सेठों के हित में काम करेगी। उससे दलितों-मज़दूरों का हितैषी होने की उम्मीद नहीं कर सकते। लड़ाई फ़ैसलाकुन होनी चाहिए। किसान आंदोलन का उदाहरण हमारे सामने है। सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखा गया। एकजुटता और संघर्ष जारी रखने वाले नारे लगाते हुए सभा समाप्त हुई।

फैक्ट-फ़ाइंडिंग के बाद इस रिपोर्ट की तैयारी में मुझे तीन रिपोर्टों/दस्तावेज़ों से सहायता मिली- (i) भाकपा माले की जांच रिपोर्ट, (ii) प्रयागराज के नागरिक समाज का ज्ञापन, और (iii) अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा की विस्तृत रिपोर्ट। भाकपा माले की रिपोर्ट में, जो घटना के चौथे दिन 18 सितंबर को घटना-स्थल का दौरा करने के बाद जारी की गयी थी, कहा गया है कि हत्यारोपियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। अगर प्रशासन चाहता तो पट्टाधारकों को उनकी ज़मीन पर क़ब्ज़ा दिलवा सकता था। इतने बड़े हत्याकांड के बाद भी यहां कोई मंत्री हालचाल जानने नहीं पहुंचा जबकि यह प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य का चुनाव क्षेत्र है। इस जांच रिपोर्ट में हत्यारोपियों के घरों में आग लगाये जाने के विरोधाभासी दावों की चर्चा है। पीड़ित परिवार का कहना है कि हमलावरों ने हत्याकांड के ठीक पहले अपने बचाव में अपने घरों में आग लगा दी ताकि उल्टा केस बनाया जा सके, जबकि प्रशासन कह रहा है कि हत्याकांड से गुस्साई भीड़ ने आगजनी की। माले जांच दल ने सभी अपराधियों को गिरफ़्तार करने (इस समय तक 2 आरोपी ही गिरफ़्तार किये गये थे), पीड़ित परिवार को एक करोड़ का मुआवज़ा व पुनर्वास करने, परिवार के दो सदस्यों को सरकारी नौकरी देने, लापरवाही बरतनेवाले प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों को दंडित करने और पट्टे की ज़मीन पर ग़रीबों का क़ब्ज़ा दिलाने की मांग की है। प्रयागराज नागरिक समाज के द्वारा तैयार और मंडलायुक्त को 23.09.2023 को सौंपे ज्ञापन में दबंगों के ज़मीन क़ब्ज़ाने की प्रक्रिया पर बात की गयी है। इसमें पुलिस और तहसील के अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका की चर्चा है। ज्ञापन में मांग की गयी है कि मृतकों के शेष परिजनों को 20-20 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाये और परिवार के सभी वयस्कों को सरकारी नौकरी दी जाये। होरीलाल के पुत्र सुभाषचन्द को पुलिस की हिरासत से तुरंत आज़ाद कराया जाये। घटना की न्यायिक जांच करायी जाये। अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा, कौशांबी ज़िला कमेटी के द्वारा 18-19-20 सितंबर को इलाक़े में घूमकर तथ्य-संग्रह के बाद तैयार जांच रिपोर्ट में भी यही मांगें दर्ज हैं। इसमें पुलिस प्रशासन के व्यवहार को लेकर शंका व्यक्त की गयी है। एफ़आइआर में मुख्य कर्ताधर्ता दशरथ (यदुवंशी) का नामोल्लेख न होना, सुभाषचन्द को किसी से बात करने की अनुमति न देना और घटना के 4 दिन बाद आगजनी वाली एफ़आइआर रजिस्टर कराया जाना इस शंका के आधार हैं। अभाकिम सभा के तथ्यान्वेषी दल द्वारा तैयार रिपोर्ट में यह सूचना भी दर्ज है कि तनाव और खूनख़राबे की पृष्ठभूमि पुरानी है। इन्हीं आरोपितों ने सात साल पहले 2016 में होरीलाल के 6 साल के बेटे को गन्ना चुराने के नाम पर पीट-पीटकर मार डाला था।

राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल-दर-साल जाति आधारित हिंसा में कमी आने के स्थान पर बढ़ोत्तरी हो रही है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। लोकतंत्र बंधनयुक्त है। ऐसे में लगता नहीं कि कौशांबी के पीड़ित परिवार को न्याय मिल सकेगा। फिर भी, इंसाफ़ की आवाज़ उठनी बंद नहीं होनी चाहिए।

bajrangbihari@gmail.com


2 thoughts on “कौशांबी हत्याकांड: पीड़ित को ही गुनहगार ठहराने की कला / बजरंग बिहारी तिवारी”

  1. आपने रिपोर्ट पढ़कर अपनी राय दी। आपका बहुत धन्यवाद।

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