पांच अवधी कविताएं / अमरेंद्र अवधिया


1

कवन सपेरा बीन बजावै
न्याव, प्रसासन, बिधि-बिधायिका : सबका नाच नचावै
जाति-धरम चिनगी परचावै, धूं-धूं लपट उठावै
बेकारन क भांगिक गोला, टूका दयि बहलावै
बिल-बैठे फेटार कुलि निकसैं, लावा-दूध चढ़ावै
राग-जम्हूरी, पबलिक झूमै, ओट पै ओट गिरावै

 

2

 

मजहब हुवै वायरस गज्जब
एंटी-वायरस सबै लुल्लहयं, यहु एतना हय बेढब
पूरा सिस्टम करप्ट होइगा, फेलफार मेट करतब
ग्लोबल मौज – बजारू खेला, भकभेलर हयं हम सब

 

3

प्रभुजी, तुम भक्तन क कूटौ
सबद नगाड़ा खोपड़िया मा, पीटौ पीटौ पीटौ
उर भीतर के अंधकार पै दामिनि बनिके टूटौ
आंखन के जालन के ऊपर लिये खरहरा छूटौ

4

काहे?

काहे बात बुरी लागत है

काहे चुन्ना अस काटत है

काहे तोहरे मन कै बोली

काहे तुम्हरी अस चाहत है

राम दिहिन हमहू क भेजा

भेजा है तौ कुछ स्वाचत है

आफत कवन दिहे बा आखिर

जे केउ अलग राय राखत है

लियै’क यक न दियै’क दुइ है

फिर काहे आंती फाटत है

5

 

कइसे उपजा कोढ़ खाज मा

 

राम दुखी जउने समाज मा

आग लगै वहि रामराज मा

राम कै चोला ओढ़े रावण

बोलय रामै के अवाज मा

सबही करै परस्पर नफरत

बिख फैला है मनमिजाज मा

बाढ़े लंपट, खल, उत्पीड़क

धै धमके कुलि राजकाज मा

टैम मिले तौ तुमहू सोचेव

कइसे उपजा कोढ़ खाज मा

मो. 9971437319


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