बारह कविताएँ / संजीव कौशल


अपने संवेदनशील प्रेक्षण से कई बार चौंका देने वाले संजीव कौशल छोटी कविताओं के उस्ताद हैं। अपने आसपास की अतिसाधारण चीज़ें उनकी कविताओं में एक नये अर्थ-वैभव और गरिमा के साथ नमूदार होती हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के इंदिरा गाँधी शारीरिक शिक्षा एवं खेल विज्ञान संस्थान में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी में कविताओं के अनुवाद उन्होंने खूब किये हैं। दो कविता-संग्रह, ‘उँगलियों में परछाइयाँ’ और ‘घर ख्वाबों से बनता है’, प्रकाशित हैं। यहाँ जो कविताएँ आप पढ़ने जा रहे हैं, वे शीघ्र प्रकाश्य संग्रह ‘फूल तारों के डाकिए हैं’ से हैं।

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सैर

एक स्त्री से मैंने कहा
सैर पर जाया करो
स्वास्थ्य अच्छा रहता है

उसने कहा
बच्चे सुबह स्कूल जाते हैं
ये फैक्ट्री
मैं ऑफिस

चार बजे उठती हूँ
मगर काम नहीं निबटते
घर घेरे रहता है
हिलने ही नहीं देता

घर को सैर पर भेज दो
मैं भी चली जाऊँगी।

000

फ़िक्र

पार्क में लगे नल से
पानी की
एक एक बूँद गिर रही है
छोटी छोटी चिड़ियाँ आती हैं
और नल से लटक
गिरती बूँदों को उठा लेती हैं

नल अगर ठीक होता
तो पानी पर चिड़ियों का अधिकार
ख़त्म हो जाता
धूप में वे मारी मारी फिरतीं
प्यास से बेदम
उनका दम निकल जाता

इंसानों को न सही
चीज़ों को दुनिया की फ़िक्र है

चीज़ों का यूँ ख़राब होना
उनका ज़िंदा होना है।

000

चला गया

आँधी में एक पेड़ गिर गया
खिड़की के आगे
जहाँ धरती थी
वहाँ आकाश खुल गया

धूप तेज़ है अब
और बेरंग भी
धूप को जो रंगता था
वह रंगरेज चला गया।

000

मौसम

हवा चल रही है
और पत्तियाँ गिर रही हैं
धीरे धीरे डालियाँ ख़ाली हो रही हैं

मौसम बदलता है
तो जगहों से हमारा जुड़ाव बदल जाता है

ये वही पत्तियाँ हैं
जो तूफ़ानों में नहीं गिरतीं
शाखों के टूट कर गिर जाने पर भी
नहीं गिरतीं
यहाँ तक कि पेड़ों के गिर जाने पर भी
जुड़ी रहती हैं
छोड़कर नहीं जातीं
मगर मौसम का बदलना एक बला है

कोई रिश्ता ठंड बर्दाश्त नहीं कर पाता
इंसानों का हो
जानवरों का या पेड़ों का
ठंड गर्माहट छीन लेती है
रिश्ते की गोंद सुखा देती है
फिर वही होता है
जो पत्तियों के साथ हो रहा है
हवा के इशारे पर डालियों का बदन ख़ाली हो रहा है।

000

घोंसले

तैरते तैरते
बादल
जब थक जाते हैं
देवदारों की शाखों पर उतर आते हैं।

शाम तक
पूरा आसमान
घाटी में लौट आता है
और हरी चादर में लिपट कर सो जाता है।

पहाड़ों पर
परिंदे नहीं
बादल घोंसले बनाते हैं।

000

आख़िरी इच्छा

गाँव ले जाना
शहर में मत जलाना
खेत की मेड़ पर रख देना
मेरी चिता
जहाँ कलेवा करते थे
तुम्हारे पिता

नहीं, गंगा में नहीं
राख कुलावे में बुरक देना
मुझे सरसों भाती है
मुझे खेत में सुला देना।

000

ब्रशस्टैंड

लकड़ी के ब्रशस्टैंड में
दो टूथब्रश रखे हैं
एक दूसरे से सटे
एक दूसरे को सहारा देते
साँसों की ताज़गी से भरे हुए

इतने बड़े घर में
यही एक जगह है
जहाँ हम साथ साथ रहते हैं।

000

मरुस्थल

आदमी इस करवट है
औरत उस करवट

बीच में
मरुस्थल है

हज़ार साल से
जहाँ
बारिश नहीं हुई।

000

हाल-चाल

तुम्हारे मौहल्ले में गया था
किसी काम से आज
तुम नहीं दिखीं
तुम्हारे अहाते में झूमते नीम दिखे

मुझे देख
बाउंड्री पर आ बैठीं
कुछ डालियाँ लचकती हुईं
मैंने उन्हीं से
तुम्हारा हाल-चाल लिया
अपना कहा
और नीम के फूलों सा महकता
मैं चला आया।

000

मैट्रो में प्रेम

जैसे जैसे बढ़ती गयी भीड़
वैसे वैसे मिलती गयी जगह
उन्हें मिलने की
क़रीब आने में
अब नहीं थी कोई दिक्क़त

साँसें मिल रही थी साँसों से
नजरें गुथी थीं नज़रों से
बदन बदन नहीं थे
खुशबू थे
बागीचे में हँसते
फूलों से महकते हुए
लोग लोग नहीं थे
पेड़ थे
कुछ न देखते, कुछ न सुनते हुए।

000

मौन

वे संदेश भेजते हैं
बात नहीं करते
ऐसा नहीं
बात करना नहीं चाहते

आपस में कोई लड़ाई नहीं
बस,
मौन चाहते हैं
कुछ देर

शरीर आवाज़ों से थक गए हैं।

000

बाईपास

मेरे शहर की राह
जो तेरे शहर से गुजरती थी
एक बाईपास बन गया है वहाँ
जैसे चाँद की एक खाँप
दराँती से कटी हुई

तख्तियों पर टंगा तुम्हारा शहर
कँपकँपाता  रहता है हर वक़्त
बहुत तेज़ गुज़रती हैं अब गाड़ियाँ
पलक झपकते ही छूट जाता है पुराना शहर
छूट जाती हैं
पहचानी हुई जगहें
पहचाने हुए चेहरे
मिठाई की दुकानें
चाट के ठेले
सदियों का जमा सारा स्वाद
छूट जाता है

और वह तारा
तुम्हारी लौंग के मोती-सा टिमटिमाता
वह तारा भी
अब दिखाई नहीं देता
बाईपास में सब ओझल हो गया।

sanjeevkaushal23@gmail.com

9958596170


8 thoughts on “बारह कविताएँ / संजीव कौशल”

  1. वाह, सीमित शब्दों और बेहद सादा अंदाज़ में चौंका देने वाली पेशकश।

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  2. मैंने संजीव कौशल के पहले के संग्रह पढ़े हैं।
    इन कविताओं को पढ़ते हुए लग रहा है कि कवि की यात्रा रुकी नहीं है।
    वे चीजों, स्थितियों और भावनाओं को जिस क्रम और जिस रोशनी में देखते हैं वह अर्थ की नई संभावनाएँ खोलता है।

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  3. संवेदित करतीं भावपूर्ण और मार्मिक कविताएँ। कम शब्दों के छोटे कलेवर में गुंथी सभी कविताएँ मानवीय संवेदना के विस्तृत फलक के बिन्दुओं को स्पर्श करते हुए सहजता और सफलता से व्यक्त कर रही हैँ । बधाई संजीव कौशल की सर्जना को ! –जगदीश पंकज

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  4. बहुत अच्छी कविताएँ छोटे कलेवर में कविता को साधना उसे अलग ही आयाम देता है ।संजीव जी को बधाई

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  5. यही बात मैंने संजीव जी से कई बार कहीं कि वे छोटी कविताएं लिखने में सजग और सिद्ध हैं। चुनिंदा पंक्तियों बेहद खूबसूरत और संदेश दे सकने वाली कविताएं लिखते हैं संजीव कौशल। इस तरह किसी कवि को एक साथ पढ़ना उसे समझने के लिए भी बेहद जरूरी है। नयापथ की यह पहल खूबसूरत है और जरूरी भी। बहुत बधाई।

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  6. छोटी मगर अपने कथ्य में लाजवाब कविताएँ। बहुत बधाई संजीव जी को💐

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  7. मितकथन में बड़ा कथन
    चुपचाप बिना शब्दाडंबर, सीधा संप्रेषण ,आज के आधुनिक रीतिकालीन चमत्कारिक कविताओं की भीड़ में ठंडक सी ये कविताएं
    बहुत सुंदर
    बहुत बधाई

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