‘महाराज’ : अंधभक्ति, अविवेक और धर्म-सत्ता (भाग-1) / जवरीमल्ल पारख
उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य का महाराजा लाइबेल केस यों तो भली-भांति दस्तावेज़ीकृत है, पर इतिहास का सामान्य ज्ञान रखने
उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य का महाराजा लाइबेल केस यों तो भली-भांति दस्तावेज़ीकृत है, पर इतिहास का सामान्य ज्ञान रखने
‘लेखक सिनेमा को सिर्फ़ मनोरंजन का ज़रिया नहीं बल्कि उसे अपने समय और समाज का बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज़ समझते हैं
कला कौशल की किताब ‘फ़ेसबुक तुक’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। संस्मरण और समीक्षा जैसी विधाओं को समेटती 772
चंचल चौहान की किताब साहित्य का दलित सौंदर्यशास्त्र पर जनवादी लेखक संघ और दलित लेखक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में
“हर रचनाकार अपनी ‘वस्तु’ का चुनाव अपनी संवेदनक्षमता के आधार पर करता है, तो आलोचक को अपनी रुचि के अनुसार
अपनी किताब के आमुख में परकाला प्रभाकर कहते हैं, ‘निकट भविष्य में एक चुनावी जीत ज़ाहिर तौर पर गणराज्य को
‘सचाई तो यह है कि 1970 के दशक तक दुनिया के स्तर पर ही स्त्री कलाकारों के पर्याप्त नामलेवा नहीं
2007 की ‘एडवोकेट’ पर, दस्तावेज़ी फ़िल्मों के बारे में अपनी जानकारी को अद्यतन रखनेवाले संजय जोशी की टिप्पणी: —————————————————————- दक्षिण
जवरीमल्ल पारख की किताब ‘साहित्य कला और सिनेमा’ पर हरियश राय की संक्षिप्त टीप ——————————————————————– साहित्य, कला और सिनेमा जवरीमल्ल