आधुनिक भारतीय चित्रकला और स्त्री की उपस्थिति / मनोज कुलकर्णी
‘सचाई तो यह है कि 1970 के दशक तक दुनिया के स्तर पर ही स्त्री कलाकारों के पर्याप्त नामलेवा नहीं
‘सचाई तो यह है कि 1970 के दशक तक दुनिया के स्तर पर ही स्त्री कलाकारों के पर्याप्त नामलेवा नहीं
2007 की ‘एडवोकेट’ पर, दस्तावेज़ी फ़िल्मों के बारे में अपनी जानकारी को अद्यतन रखनेवाले संजय जोशी की टिप्पणी: —————————————————————- दक्षिण
जवरीमल्ल पारख की किताब ‘साहित्य कला और सिनेमा’ पर हरियश राय की संक्षिप्त टीप ——————————————————————– साहित्य, कला और सिनेमा जवरीमल्ल
अंग्रेजी के ख्यात कवि, कला-समीक्षक, कला-सिद्धांतकार, और लल द्यद का अंग्रेजी में अनुवाद करनेवाले रणजीत होसकोटे ने इंटरनेशनल सेंटर गोवा
जवरीमल्ल पारख की किताब जीवन की पाठशाला पर विष्णु नागर की टिप्पणी ——————————————————————- जवरीमल्ल पारख प्रतिष्ठित साहित्य आलोचक होने के
नवारुण ने विलक्षण कहानीकार योगेंद्र आहूजा के वैचारिक लेखन को टूटते तारों तले शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित किया है। उस
युवा कवि वरुण प्रभात के प्रथम कविता-संग्रह, अंतहीन रास्ते से गुज़रना प्रीतिकर भी है और आश्वस्तिपरक भी। प्रीतिकर इस अर्थ
हिंदी में दो तरह के फ़िल्मकार हैं। एक वे जिनका मकसद सामाजिक बदलाव से प्रेरित सोद्देश्य फ़िल्म बनाना है, और
अली मदीह हाशमी की किताब प्रेम और क्रांति : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी (अनुवाद : अशोक कुमार, 2021, सेतु