कविता की ज़मीन-6 कार्यक्रम में ‘ज़मीन की कविता-1’ का लोकार्पण, अंधेरे समय में उम्मीद का दीया जुगनुओं की तरह वातावरण को रोशन करता रहा।
– मज़कूर आलम/आकाश केवट
शनिवार 22 फरवरी को नयी दिल्ली के सुरजीत भवन में ‘कविता की ज़मीन-6’ का आयोजन जनवादी लेखक संघ दिल्ली के तत्वावधान में हुआ। कार्यक्रम का आग़ाज़ प्रेम तिवारी के संपादन में आये कविता संग्रह ‘ज़मीन की कविता-1’ से हुआ। इस संग्रह में वक़्त के बदलाव को रकम करने वाले 45 कवियों की 140 कविताओं को स्थान दिया गया है। पुस्तक का लोकार्पण विशिष्ट अतिथि डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, प्रो. नित्यानंद तिवारी, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और इब्बार रब्बी, मदन कश्यप, दुर्गा प्रसाद गुप्त, देवेंद्र चौबे, हीरालाल नागर, रेखा अवस्थी, बली सिंह, नलिन रंजन समेत कई दिग्गज साहित्यकारों ने किया। इस अवसर पर स्वागत वक्तव्य देते हुए श्याम सुशील जी ने अपनी कविता, ‘रंग है उसका नीला’ का सुंदर पाठ किया।
पुस्तक लोकार्पण के बाद डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा, “पत्थर के टुकड़ों की सार्थकता कविता होने, और कविता की सार्थकता पत्थर का टुकड़ा होने में है।” वहीं प्रो. नित्यानन्द तिवारी ने दौरे हाज़रा को लेकर चिंता करते हुए कहा कि हिंसा और आक्रामकता बढ़ी है और इस पुस्तक में हिंदुस्तान के दौरे हाज़रा की पूरी तस्वीर बहुत स्पष्ट ढंग से उभरी है। कहीं आम जनता के शोषण, ग़रीबी, अन्याय और उत्पीड़न आदि की चर्चा है, तो कहीं सत्ता के प्रति कवि के आक्रोश की अभिव्यक्ति!
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में मुरली मनोहर प्रसाद ने कार्यक्रम और ज़मीन की कविता-1 पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए और इस तेवर की किताबें भी आती रहनी चाहिए।
कार्यक्रम का आग़ाज़ करते हुए दिल्ली जलेस सचिव प्रेम तिवारी ने कहा, “इतिहास में जब यह दौर दर्ज होगा तो उसमें यह बात याद की जायेगी कि तीन पीढ़ियों के इंक़लाबी कवियों ने एक साथ मंच साझा किया।”
उत्तर प्रदेश जलेस के सचिव और कवि नलिन रंजन सिंह ने कहा, झूठ के दौर में सच का पक्ष लेना है तो ख़तरा तो उठाना ही होगा। मुक्तिबोध के शब्दों में कहें तो अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाने ही होंगे। दौर का खलनायक बड़ा है तो नायक को भी सशक्त होकर खड़ा होना पड़ेगा और यह काम हमारे दौर के कवि बखूबी कर रहे हैं।
जलेस दिल्ली के कार्यकारी अध्यक्ष बली सिंह का धन्यवाद ज्ञापन गागर में सागर की तरह था। उन्होंने ख्वाबों की ऐसी ताबीर बतायी कि वहाँ मौजूद लोग देश-दुनिया के हाल को लेकर सभी स्तब्ध हो गये। लेकिन अपने उसी रोचक अंदाज़ में इस नाउम्मीद दौर में सपनों के बदलते रूप-रंग में कंपकपाता सा ही सही उन्होंने उम्मीद का एक दिया भी जला दिया, भले वह टिमटिमा रहा था, लेकिन उसकी रोशनी उन्मुक्त उड़ने वाले जुगनुओं का एहसास दिला रही थी।
इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के कवियों ने दिल्ली के श्रोताओं के सामने अपनी कविताएं सुनायीं। कार्यक्रम का संचालन दिग्गज कवि संजीव कौशल ने किया। यह कौशल जी की सहज और समीचीन टिप्पणियों का ही कमाल था कि उत्तर प्रदेश के कवियों के तीखे तेवर को और धार मिल गयी।
कवि सम्मेलन की खास बात यह थी कि अधिकतर कवियों के तेवर बागियाना थे। वसंत में कवि सम्मेलन होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के कवियों की कविताएं इंक़लाबी स्वर लिये हुए थीं और उनकी ज़मीन में विविधता भी थी। कविताओं के कुछ शीर्षकों से समझा जा सकता है कि कवि सम्मेलन का मिज़ाज कैसा रहा होगा। नूर आलम ने छह दिसंबर, माधव महेश ने पत्थर का देवता, लोकतंत्र में विश्वास, लक्ष्मण प्रसाद ने शांत पथ, तालाबंदी, सलमान खयाल ने खबर और वारिस, अंतर्द्वंद्व ज्ञानप्रकाश चौबे ने सलीका, थोड़ा-सा खिसक जाएं, मतदान, बुशरा खातून ने मोहब्बत का दरख़्त, खूबसूरत अलमारी, विशाल श्रीवास्तव ने मलबा, बसंत के बारे में बयान, फासिस्ट की कविता कैसे पहचाने, बेदखली, सीमा सिंह ने कितना गिरना शेष है, यह प्रेम कविता नहीं, धर्मराज ने कुंभ, मोनालिसा, गजब हुआ पतझड़, नलिन रंजन सिंह ने प्रूफरीडर, तुम कहां हो नजीब और नारे, शालिनी सिंह ने धूप के बंद दरवाजे, यात्राओं के अनुवाद, कथावाचक, शालू शुक्ला ने स्त्री की अभिलाषा, सुनो कवि, हाउस वाइफ, बसंत त्रिपाठी ने दो मिनट का मौन, ज्यादा उत्सव, नए तंत्र में रामदास, आभा खरे ने प्रतिरोध के स्वर, हम समझदार बेटियां, महेश आलोक ने किसी दिन पत्थरों की सभा होगी, अंततः एक आदमी, साठ के बाद प्रेम कविताएं सुनायीं।
चार घंटे से भी ज़्यादा समय तक चले इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि किसी भी समय हॉल की कुर्सियाँ खाली नहीं हुईं। यहाँ तक कि इस सुरजीत भवन के बड़े से हॉल में कुछ लोग खड़े होकर भी कविताओं का रसास्वादन करते रहे।
इस मौक़े पर हरियश राय, विमल कुमार, जगदीश पंकज, ज्योतिष जोशी, जसवीर त्यागी, जगतार जीत सिंह, राकेश रेणु, सत्यनारायण, श्याम सुशील, गजेंद्र रावत, आनंद क्रांतिवर्धन, बजरंग बिहारी, बलवंत कौर, सुमित तँवर, प्रमोद सिंह, रानी कुमारी, सुलदीप, बजरंग बली, कहाँर, मज़कूर आलम आदि अनेक लेखक, शोधार्थी, पत्रकार सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। स्वास्थ्य कारणों से जलेस दिल्ली के मशहूर शायर नसीम अजमल साहब उपस्थित नहीं हो सके, हालाँकि दिल से वे साथ थे- एक जुगनू तसव्वुर में चमका किया / एक आवाज़ आती रही रात भर।
इस सार्थक आयोजन हेतु सभी को शुभकामनाएं।
विमल चन्द्राकर
संयोजक: जलेसं कानपुर दे०
बहुत अच्छी रपट है। यह पहली बार है कि उत्तर प्रदेश से आए जनवादी लेखक संघ से जुड़े कवियों ने दिल्ली जनवादी लेखक मंच पर कविताएं पढ़ीं।
अगली बार राष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और पंजाब तथा अन्य प्रदेश से आए कवियों की भी कविताएं सुनी जाएं। प्रख्यात आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी के इस कथन को कविता की सार्थकता उसके पत्थर के टुकड़े बनने में है तो कि उसे गुलेल का पत्थर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। इस वक्त चुनौती बड़ी और सघन है उसका खुलकर सामना करना जरूरी
। धन्यवाद।