पटना राइटर्स रेज़िडेंसी जैसे मामले में सर्वाइवर क्या करें / ज्योति कुमारी


क्या पटना राइटर्स रेज़िडेंसी, यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के तहत ‘कार्यस्थल’ के दायरे में आता है? इस क़ानून के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के क्या प्रावधान हैं? जानकारी दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता ज्योति कुमारी
 

हिंदी के कवि और पूर्व दूरदर्शन अधिकारी कृष्ण कल्पित पर पटना में फ़ेलोशिप आयोजन के दौरान महिला कवि के साथ कथित दुर्व्यवहार और यौन प्रताड़ना का आरोप लगा है। इसके बाद से लोग ये बातें कर रहे हैं कि आयोजक चुप क्यों है। अगर ऐसी किसी स्थिति में सर्वाइवर फंस जाए और वह कानूनी कार्रवाई चाहती हो तो वह क्या कर सकती है। उसे मैं यहां सहज शब्दों में रख रही हूं, ताकि भविष्य में नियोक्ता/आयोजक कभी इसी तरह की चुप्पी साध ले तो सर्वाइवर को पता रहे कि उसके लिए उपलब्ध क़ानूनी प्रावधान क्या हैं। अगर उसे यह पता होगा तो वह डिगनिटी ऑफ लाइफ़ को मेंटेन कर सकेगी और कोई मीडिया/सोशल मीडिया ट्रायल करे तो वह उससे निबटने में सक्षम रहेगी।

सार्वजनिक स्थल पर यौन उत्पीड़न से निबटने के लिए 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में विशाखा गाइडलाइंस स्थापित की थीं। ये गाइडलाइंस 2013 में यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) लागू होने तक रही। अब, POSH Act ने इसकी जगह ले ली है। इसमें विशाखा गाइडलाइंस की मूल भावना और सिद्धांत अब भी शामिल हैं।

राइटर्स रेज़िडेंसी जैसे मामले में, जहां दो मेहमान एक फेलोशिप प्रोग्राम के तहत एक साथ रह रहे थे, सबसे पहले यह सवाल उठता है कि क्या यह ‘कार्यस्थल’ के दायरे में आता है? POSH Act के तहत ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा काफ़ी व्यापक है और इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
• विस्तारित कार्यस्थल : कोई भी स्थान जहां कर्मचारी अपने काम के सिलसिले में जाता है, जिसके तहत नियोक्ता द्वारा प्रदान पैकेज प्रदान की गयी है। इसमें आवास सुविधा और परिवहन भी शामिल हैं।
• इस आयोजन की बात करें तो निश्चित रूप से संगठन द्वारा आयोजित/प्रायोजित था। रेज़िडेंसी एक साहित्यिक संस्था द्वारा आयोजित की गयी थी, इसलिए उसे POSH Act के तहत कार्यस्थल के रूप में गिना जायेगा।
• विशाखा गाइडलाइंस और POSH Act दोनों ही यौन उत्पीड़न को इस तरह परिभाषित करते हैं- अवांछित यौन व्यवहार, शारीरिक संपर्क, यौन टिप्पणियां या कोई अन्य यौन प्रकृति का ऐसा व्यवहार इसमें शामिल है, जो कार्यस्थल पर असुरक्षित माहौल बनाता है।

POSH Act के तहत, यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के प्रावधान

आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) :
• जिस संगठन द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया है, अगर वहां 10 या अधिक कर्मचारी हैं, तो उस संगठन को POSH Act के तहत एक ICC गठित करना अनिवार्य है।
• ICC को शिकायत की जांच करने और समयबद्ध तरीके से (आमतौर पर 90 दिनों के भीतर) अपनी सिफ़ारिशें प्रस्तुत करने की ज़िम्मेदारी होती है।
• समिति में कम से कम आधे सदस्य महिलाएं होनी चाहिए, और एक बाहरी सदस्य।

अगर हम इस मामले में मान लेते हैं कि दो ही लोग विस्तारित कार्यस्थल पर थे, तब भी POSH Act लागू होगा, क्योंकि POSH Act में न्यूनतम संख्या अनिवार्य नहीं है। यह अधिनियम यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर लागू होता है, चाहे वहां कितने भी लोग क्यों न हों, बशर्ते कि वह स्थान कार्यस्थल की परिभाषा में आए। हालांकि, आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन केवल उन संगठनों के लिए अनिवार्य है, जिनमें 10 या अधिक कर्मचारी हैं।

• ऐसे में आंतरिक शिकायत समिति संगठन के पास नहीं हो सकता है। इस स्थिति में सर्वाइवर स्थानीय शिकायत समिति (LCC) के पास जाकर कम्प्लेन दे सकती है, जो जिला स्तर पर गठित होती है।
• सर्वाइवर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 74 या धारा 79 या ऐसी ही अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत थाने जाकर एफआईआर दर्ज करा सकती है।
• सबसे महत्वपूर्ण बात, आयोजन संस्था शिकायतकर्ता का समर्थन करने और POSH अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है। अगर सर्वाइवर आयोजन संस्था के सामने अड़ जाए कि उसे कार्रवाई चाहिए ही तो उसे उचित कानूनी कार्रवाई कराना ही होगा।

सर्वाइवर के लिए बेहद आवश्यक टिप्स

सर्वाइवर को इस बात की विशेष सावधानी बरतनी चाहिए कि वह अपना बयान आधिकारिक प्लेटफॉर्म पर ही दे। यानी आईसीसी, एलसीसी, थाने और अदालत। किसी अन्य व्यक्ति, संस्थान, अनधिकृत समिति आदि के सामने बयान न दे। क्योंकि इससे बयान विरोधाभासी होने का ख़तरा रहता है और मीडिया ट्रायल शुरू हो सकता है। बयान विरोधाभासी होने पर सर्वाइवर का केस ख़ारिज होने की आशंका अधिक रहती है।

अमूमन हम समझते हैं कि मीडिया में बातें आने से कार्यवाही जल्दी होगी। कुछ हद तक बात सही है, लेकिन दूसरे ख़तरे ज़्यादा हैं। अगर ऐसा करना भी है तो जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और अपने वकील से सलाह लेकर ही एक-एक शब्द बोलना चाहिए, क्योंकि थोड़ी-सी भी नादानी से पूरा केस बिगड़ सकता है।

सोशल मीडिया पर कोई पहचान उजागर करे तो सर्वाइवर ये करे

यौन उत्पीड़न या अन्य संवेदनशील मामले में पीड़िता की पहचान (नाम, फोटो, या अन्य व्यक्तिगत जानकारी) उजागर करता है, तो यह भारत में एक गंभीर कानूनी अपराध माना जाता है।

धारा 228A (IPC) / धारा 72 (BNS) : यह धारा यौन अपराधों (जैसे बलात्कार, यौन उत्पीड़न) की पीड़िता की पहचान उजागर करने पर रोक लगाती है। पीड़िता का नाम, फोटो, या कोई भी जानकारी जो उसकी पहचान ज़ाहिर कर सकती है, बिना अनुमति के प्रकाशित करना अपराध है।

सजा : 2 साल तक की कैद और/या जुर्माना।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act) : धारा 66E : किसी व्यक्ति की निजी छवियों (जैसे फोटो, वीडियो) को उनकी सहमति के बिना सार्वजनिक करना, जो उनकी निजता का उल्लंघन करता हो।

सजा : 3 साल तक की कैद और/या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना।

धारा 67 : अश्लील सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करना या प्रसारित करना।

सजा : पहली बार में 3 साल तक की कैद और/या 5 लाख रुपये तक का जुर्माना, दोबारा अपराध पर 5 साल तक की कैद और/या 10 लाख रुपये का जुर्माना।

यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) : यदि घटना कार्यस्थल (जैसे राइटर्स रेज़िडेंसी) से संबंधित है, तो POSH Act लागू हो सकता है। यह पीड़िता की गोपनीयता की रक्षा करता है और शिकायत की जांच के लिए आंतरिक शिकायत समिति (ICC) या स्थानीय शिकायत समिति (LCC) को अनिवार्य करता है।

यदि कोई व्यक्ति पीड़िता की पहचान उजागर करता है, तो यह POSH Act के तहत गोपनीयता उल्लंघन माना जा सकता है, और संगठन को कार्रवाई करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों में पीड़िता की पहचान को पूरी तरह से गुप्त रखने का आदेश दिया है, और यह नियम मीडिया, सोशल मीडिया, और व्यक्तियों पर लागू होता है।

क्या क़दम उठाये जा सकते हैं?

यदि कोई सोशल मीडिया पर पीड़िता की पहचान उजागर कर रहा है, तो निम्नलिखित क़दम उठाये जा सकते हैं :

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शिकायत दर्ज करें : अधिकतर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर/एक्स, यूट्यूब) में सामग्री को रिपोर्ट करने का विकल्प होता है। पीड़िता या कोई अन्य व्यक्ति निम्नलिखित कर सकता है। उस पोस्ट, फोटो, या वीडियो को रिपोर्ट करें, जिसमें पीड़िता की पहचान उजागर की गई है।

साइबर क्राइम सेल में शिकायत : स्थानीय पुलिस स्टेशन या साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करायी जा सकती है। धारा 228A (BNS), धारा 66E, और धारा 67 (IT Act) के तहत FIR दर्ज की जा सकती है।

राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल : ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने के लिए www.cybercrime.gov.in पर जाएं। यह विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों के लिए बना है।

लीगल नोटिस भेजें : एक वकील के माध्यम से उस व्यक्ति को क़ानूनी नोटिस भेजा जा सकता है, जो पीड़िता की पहचान उजागर कर रहा है। यह नोटिस भविष्य में क़ानूनी कार्रवाई के लिए सबूत के रूप में भी काम करता है।

नागरिक या आपराधिक मुक़दमा : पीड़िता निजता के उल्लंघन, मानसिक पीड़ा, या प्रतिष्ठा को नुकसान के लिए हर्जाने की मांग करते हुए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकती है। यदि उजागर की गई सामग्री में बदनामी (defamation) शामिल है, तो धारा 356 (BNS) (पहले IPC धारा 499/500) के तहत आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया जा सकता है।

सजा : 2 साल तक की कैद और/या जुर्माना।

यदि सामग्री में छेड़छाड़ की गई तस्वीरें या अश्लील सामग्री शामिल है, तो धारा 354C (BNS) (voyeurism) या धारा 79 (BNS) (महिला की लज्जा भंग करना) लागू हो सकती है।

महिला आयोग या अन्य संगठनों से संपर्क

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) : पीड़िता NCW से संपर्क कर सकती है, जो इस तरह के मामलों में सहायता प्रदान करता है और पुलिस या अन्य प्राधिकरणों को कार्रवाई के लिए निर्देश दे सकता है।

गैर-सरकारी संगठन (NGO) : कई NGO, जैसे कि Software Freedom Law Centre (SFLC) या अन्य महिला अधिकार संगठन, कानूनी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

साइबर क्राइम सेल में शिकायत दर्ज करें।

आयोजक संगठन (रेजिडेंसी के संदर्भ में) से ICC या LCC के माध्यम से शिकायत करने का अनुरोध करें।

अपवाद

यदि पीड़िता स्वयं लिखित अनुमति देती है।

यदि पीड़िता नाबालिग, मृत, या मानसिक रूप से अक्षम है, तो उसके निकटतम रिश्तेदार की लिखित अनुमति हो।

जांच के लिए पुलिस अधिकारी की ओर से लिखित अनुमति हो, बशर्ते यह जांच के उद्देश्य से हो।


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