झारखंड में मतदान के पहले चरण की पूर्वसंध्या पर भाजपा के बहकाऊ और भड़काऊ नारे की पड़ताल कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास। श्रीनिवास जी लंबे समय तक ‘प्रभात ख़बर’ के शीर्ष पदों पर रहे। अवकाश-प्राप्ति के बाद भी जनसरोकार के मुद्दों पर लिखते रहते हैं। युवावस्था में वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के सक्रिय सदस्य रहे और जे पी आंदोलन के दौरान जेल में भी रहे।
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देश में इन दिनों ‘घुसपैठिया’ शब्द की बहार है, झारखंड में विशेष। प्रमुख कारण विधानसभा चुनाव! भाजपा के बड़े से लेकर छोटे– सभी नेताओं का यह शब्द तक़िया कलाम बन गया है। हालांकि झारखंड में ‘स्थानीय’ या ‘मूलवासी’ बनाम बाहरी या ‘बहिरागत’ के नाम पर भी गोलबंदी का इतिहास रहा है। ‘बाहरी’ लोगों के लिए एक गालीनुमा शब्द है- दिकु। हालांकि इसका अर्थ ‘दिक्कत’ देनेवालों से है; और यह सच भी है। सूदखोरी, महाजनी और रंगदारी बाहर से आये लोग ही करते रहे हैं। शिबू सोरेन की ख्याति भी सूदखोरों महाजनों के ख़िलाफ़ आंदोलन के कारण ही रही है। अलग राज्य बनने के बाद इसका सूत्रपात भी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने किया था, जो कुछ वर्षों के ‘वनवास’ के बाद पुन: भाजपा में लौट आये हैं। झारखंड में पहली बार 2015 में एक ‘बहिरागत’ और ग़ैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बना था– रघुवर दास; और उनके पूरे कार्यकाल में बाबूलाल विपक्ष में रहे। 2019 में रघुवर दास खुद चुनाव हारे और भाजपा को पूरे पाँच वर्ष विपक्ष में बैठना पड़ा। तब बाबूलाल की ‘घर वापसी’ हो गयी। मुख्यमंत्री के रूप में ‘बाहरी’ का मुद्दा उछालने वाले मारांडी जी भी अब ‘राग घुसपैठिया’ गा रहे हैं! ऐसा लगता है कि भाजपा के पास और कोई मुद्दा ही नहीं बचा! वैसे हेमंत सरकार की विफलताओं का गाना भी गाया जा रहा है, उनके पुराने वायदों की दिलायी जा रही है, झूठे वायदों की चर्चा हो रही है। मगर घुमा-फिरा कर ‘घुसपैठिया’ वाला ट्रैक ही बजता रहा है।
इस अभियान का नेतृत्व हिमंता जी कर रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन सारा समय झारखंड में घूम-घूम कर लगातार ‘घुसपैठिया घुसपैठिया’ चिल्लाते रहे हैं। ज़ाहिर है, पूछने पर हिमंता सहित ये सभी कह देंगे कि यह ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ के लिए कहा जा रहा है; लेकिन जब वह कहते हैं कि झारखंड में मुस्लिम आबादी इतनी बढ़ गयी कि डेमोग्राफी असंतुलित हो गयी, तो क्या वे यह कहना चाहते हैं कि इतने घुसपैठिये आ गये? नहीं, उनका संकेत मुस्लिम आबादी बढ़ने की ओर होता है। उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में ‘बंटेंगे, तो कटेंगे’ के मंत्र का क्या मतलब है? कौन काट देगा हिंदुओं को?
उल्लेखनीय है कि यह नारा भी बांग्लादेश में हुए तख्ता पलट के बाद ही बना है। यदि बांग्लादेश में हिंदू काटे भी जा रहे हैं, तो क्या इसलिए कि वे बंट गये हैं? उसके पहले नहीं काटे जा रहे थे? उसके पहले वहां हिंदू सुरक्षित थे?
एक सवाल यह भी है कि कथित घुसपैठ क्या हेमंत सरकार के दौरान ही हुई? भाजपा/एनडीए सरकार के समय नहीं?
उनके पूरे अभियान का टारगेट मुसलमान है; और झारखंड में उसका लक्ष्य मुस्लिम-आदिवासी के बीच दरार डालना है, जिनकी एकजुटता इनके विजय अभियान के आड़े आ सकती है।
वैसे भी सवाल है कि यदि बांग्लादेशी घुसपैठिये झारखंड में भर गये हैं, तो वे सीमा पार कैसे कर रहे हैं? पहले तो वे बंगाल में प्रवेश करते होंगे। सीमा पर उनको रोकने की जवाबदेही केंद्र की है। तो झारखंड सरकार क्या कर सकती है? झारखंड से लगने वाली हर राज्य की सीमा पर निगरानी करे? राज्य में आने वाले हर आदमी (औरत) के काग़ज़ात की जांच करे कि कहीं कोई पाकिस्तानी या श्रीलंकाई या किसी अन्य देश का तो नहीं है? यह तो सब समझ रहे हैं कि उनका मक़सद क्या है? जब देश का प्रधानमंत्री भी वही भाषा बोल रहा है तो औरों की बात क्या करें?
संसदीय चुनावों के समय से वे पूरी मुस्लिम आबादी को घुसपैठिया कहते रहे हैं! कमाल यह कि कभी संघ प्रमुख भागवत भारत में रह रहे हर नागरिक को हिंदू कह देते हैं; यह तो कहते ही रहे हैं कि भारत में जो मुसलमान हैं, उनके पुरखे हिंदू ही थे, उनका धर्मांतरण हो गया– लालच में या धोखे से। तो 90 से 95 फ़ीसदी मुसलमान अगर हिंदू से मुसलमान बने हैं, इसका मतलब वह कहीं से नहीं आये। उनकी आप ‘घर वापसी’ भी करना चाहते हैं, यानी उनको फिर से हिंदू बना लेना चाहते हैं तो प्रधानमंत्री ‘घुसपैठिया’ किनको और किस आधार पर कहते हैं? खुले मंच से एक पूरी 15 या 20% आबादी को टारगेट किया जाता है, उनके ख़िलाफ़ उन्माद भड़काने की कोशिश होती है और इसे चुनाव आयोग हेट स्पीच नहीं मानता है! शिकायत करने पर पार्टी के अध्यक्ष के पास नोटिस भेजी जाती है! झारखंड में चुनाव आयोग के प्रभारी ने ‘सख्त चेतावनी’ जारी कर दी कि आचार संहिता का उल्लंघन होने पर कार्रवाई होगी। किसके खिलाफ़ कार्रवाई करेंगे? जिस पार्टी का नेता उल्लंघन करेगा, उसके अध्यक्ष को नोटिस भेजेंगे। सीधे कार्रवाई तो कर नहीं सकते, क्योंकि केंद्रीय मुख्य आयुक्त ने उदाहरण पेश कर दिया है कि शिकायत मिलने पर पार्टी के अध्यक्ष से जवाब तलब किया जायेगा! राहुल गांधी की शिकायत होने पर खरगे जी को नोटिस भेजी गयी, क्योंकि मोदी जी के खिलाफ़ भी शिकायत हो चुकी थी; लगे हाथ नड्डा जी को भी नोटिस भेज दिया, क्योंकि चुनाव आयोग को मोदी जी से पूछने का साहस नहीं था! तो आयोग का राज्य प्रभारी किसी के खिलाफ़ कार्रवाई कैसे करेगा, यह तो स्पष्ट होना चाहिए!
प्रधानमंत्री तो यहां रोटी से आगे बेटी तक पहुंच गये– ये (कांग्रेस और झामुमो आदि) आ गये तो घुसपैठिये आपकी बेटी तक ले जायेंगे। घुमा-फिरा कर वही बात अन्य नेता भी करते रहे हैं। वैसे ‘बाहरी’ लोगों द्वारा आदिवासी लड़कियों से शादी कर यहां ज़मीन हथियाने की बात पहले भी होती रही है। ‘झारखंड नामधारी’ दलों के लोग भी करते रहे हैं। मगर अब आदिवासियों की अस्मिता, जंगल-ज़मीन और बेटियों को सिर्फ़ ‘घुसपैठियों’ से ख़तरा है। लगता है, इनका फंडा यही है कि कोई सजातीय, कोई स्वधर्मी, कोई स्वदेशी, कोई अपना प्रांतीय लफंगा हमारी बेटी-बहन के साथ कुछ भी करें, यह हमारा आंतरिक मामला है; लेकिन वही काम कोई ‘घुसपैठिया’ करे तो बर्दाश्त नहीं करेंगे।
झारखंड में लगभग आधी सीटों पर मुखर प्रचार अभियान बंद हो चुका है। कल 13 नवंबर को मतदान होना है। अब भाजपा का घुसपैठियों का कार्ड कितना चलेगा, इसका पता तो बाद में चलेगा, लेकिन कोई जीते, यह नफ़रती अभियान बहुत दिनों तक झारखंड को कष्ट देता रहेगा। जितना भी यह ज़हर बोया जा चुका है, वह झारखंडी समाज में परस्पर संदेह और अविश्वास फैलाने में तो सफल हुआ ही है।
बाहरी भीतरी का मुद्दा तो पहले से था. इसी का फायदा उठा कर भाजपा ने इसका रुख मुसलमानों की तरफ कर दिया है ताकि मुस्लिम और आदिवासी की दशकों से बनी एकता दरक जाय क्योंकि भाजपा को 24 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी इलाकों में एक भी सीट नहीं मिली थी. ये रणनीति इसी को लेकर है लेकिन आदिवासी और मुसलमान इनकी विभाजनकारी नीति अच्छे से समझ गए हैं. अब ये इनके मायाजाल में नहीं फंसेंगे। ये मुद्दा सिर्फ मीडिया में दिखाई दे रहा है,जमीन पर इसकी कोई हकीकत नहीं.