मणि मोहन हिन्दी के जाने माने कवि और अनुवादक हैं। अभी तक छः कविता संकलन और चार अनुवाद की पुस्तकें प्रकाशित। देश की अनेक भाषाओं में कविताओं के अनुवाद प्रकाशित। अखबार और पत्रिकाओं में अनुवाद के नियमित ब्लॉग।
शायद
दुःख और निराशा के क्षणों में
हम बार बार लौटते हैं
इस एक छोटे से शब्द की तरफ
जिसे ” शायद ” कहते हैं
भाषा के आसमान का
यह एक टूटा हुआ सितारा है
सुना है
किसी टूटते हुए तारे को देखकर
मन में जो भी इच्छा करो
वह पूरी हो जाती है
यह एक छोटा सा शब्द
जो महाप्राण की कविता में
कभी नीलकमल बन जाता है
तो कभी बदल जाता है
कमल-नेत्र में
दुनिया की तमाम भाषाओं के अंधकार में
मौजूद है यह शब्द
जुगनू की तरह
बुझता-चमकता
यह एक छोटा सा शब्द
जो बारिश, हवा और बर्फ़बारी के बीच
ओ हेनरी की कथा में
चिपका हुआ है
आइवि की लता से
गहरे हरे रंग का पत्ता बनकर!!
स्मार्ट सिटी
शहर को स्मार्ट बनाया जा रहा है
खदेड़ा जा रहा है
फल , फूल और सब्जी बेचने वालों को
खोमचे और रेहड़ी वालों को
सुर्ख़ लाल टमाटर
या हरी पालक से भरी
किसी डलिया के लिए
अब कोई जगह शेष नहीं
इस धरती पर
कैसे मान लूँ
कि यह धरती टिकी हुई है
शेषनाग के फन पर!!!
रुकना
रुकना भी
कम खौफ़नाक क्रिया नहीं है हिन्दी की
जबकि सामने मौजूद हों
जाने के तमाम विकल्प
ओ, मेरे प्रिय कवि!
सुनो कवि
इस लगातार यात्रा से
कविता थक गयी होगी ….
एक उत्सव से दूसरे उत्सव
एक शहर से दूसरे शहर
एक होटल से दूसरे होटल….
कुछ दिन अब
अब आराम भी करो
बहुत थकी-थकी सी लग रही है
तुम्हारी कविता!
सुबह की सैर
दिन भर जो हम दौड़ते भागते रहते हैं
उससे एकदम अलग है
सुबह की सैर
अपनी धुन में
चलते, जॉगिंग करते, दौड़ते
बस अपनी धुन में
किसी से आगे निकलने की कामना से रहित
किसी से पीछे रह जाने के दुःख से मुक्त
सृष्टि को निहारते
परिंदों के संगीत से गुजरते हुए
सुबह की सैर….
काश कि यह पूरा दिन
कुछ इसी तरह गुजरे!
विमोचन की एक तस्वीर देखकर
अपनी सिंहासननुमा कुर्सी पर
लगभग पसरे पड़े थे महामहिम
उनके ठीक बगल में
एक तरफ़ उनके एडीसी
तो दूसरी तरफ़ हमारे एक लेखक
किसी रस्म अदायगी के बाद की तस्वीर है यह
महामहिम के हाथों में एक किताब दिख रही है
लेखक के हाथों में भी एक किताब है
और चेहरे पर विनय मिश्रित दैन्य
अब बेचारे महामहिम भी क्या करें
वज़न थोड़ा कम होता
और दोनो घुटने बेकार नहीं होते
तो वे ज़रूर खड़े होकर ही
किताब विमोचित करते
इस पूरे दृश्य में
या कहूँ तो इस तस्वीर में
मुझे लेखक से ज़्यादा
महामहिम के एडीसी पसन्द आये
सतर्क, तने हुए
पूरे स्वाभिमान के साथ
अपनी गर्दन पर
अपना सिर उठाये।
कम्फर्टेबल
बहुत कम्फर्टेबल हो गया हूँ
पाखंड के साथ
पाखंडी आते हैं
उन्हें चाय पिलाता हूँ
वाह वाह करता हूँ
उनके पाखंड को सराहता हूँ
उन्हें पता है
मैं उनकी तरह पाखंडी नहीं हूँ
पर उनकी मुस्कराहट तस्दीक करती है
कि मैं बहुत कम्फर्टेबल हो गया हूँ
अब पाखंड के साथ…
बच्चे मारे जा रहे हैं
बच्चे मारे जा रहे हैं
हर दिशा में
और आप उस जगह का नाम पूछ रहे हैं
मैं फिर कह रहा हूँ
मासूम बच्चे बच्चे मारे जा रहे हैं
हर दिशा में….
श्वेत
थक जाओ जब रंगों के शोर से
जब ऊब जाओ
इन रंगों की वाचालता से
तो लौट आना चुपचाप
इस रंग के क़रीब
यह रंगों की अनुपस्थिति का रंग है
संसार की तमाम कलाओं का आदिम रंग है
यह जीवनदायी स्तन्य का रंग है
हाँलाकि भौतिक विज्ञान की नज़रों में
यह एक निर्वासित रंग है…
सपने
नींद खुली और टूट गया
फिर कोशिश की सोने की
कि शायद जुड़ जाए फिर वही सपना
एक अधूरे सपने के साथ
फिर सुबह हुई…
बीमार
एक बूढ़ी स्त्री ने
जब अपनी दवा की पर्ची के साथ
अपने बेटे की तरफ
एक मुड़ा – तुड़ा नोट भी बढ़ाया
तो अहसास हुआ
कि ये दुनिया
वाकई बीमार है !!
माँ
गहरी नींद से जगाकर
कहा माँ ने
सुबह हो गयी…
ऐसा रोज़ होता है
रोज़ करती है माँ
सुबह होने का ऐलान
और रोज़
सुबह हो जाती है
पिता
सीने में जो आग है
जो पानी है आँखों में
और जो गति है पैरों में
आखिर कहाँ से आये यह सब ?
कहने को
कुछ भी नहीं लिया मैंने
अपने पिता से ….
बिटिया के लिए
ज़िन्दगी के बीहड़ में
जब कभी हो जाये
दुःख या दुर्दिनों से सामना
तो पीछे हट जाना
हट जाना
तन जाना
प्रत्यंचा की तरह!
छुटकी
आठ साल की छुटकी
अपने से दस साल बड़े
अपने भाई के साथ
बराबरी से झगड़ रही है
छीना-झपटी
खींचा-खाँची
नोचा -नाँची
यहाँ तक की मारा-पीटी भी
उसकी माँ नाराज़ है
इस नकचढ़ी छुटकी से
बराबरी से जो लडती है
अपने भाई के साथ
वह मुझसे भी नाराज़ है
सर चढ़ा रखा है मैंने उसे
मैं ही बना रहा हूँ उसे लड़ाकू
शायद समझती नहीं
कि ज़िन्दगी के घने बीहड़ से होकर
गुज़रना है उसे
इस वक़्त
खेल-खेल में जो सीख लेगी
थोड़ा बहुत लड़ना भिड़ना
ज़िन्दगी भर उसके काम आयेगा
धरती
जब कभी
टूटता है कोई सितारा
दूर आसमान में
यह धरती ही है
जो पसार देती है
अपना आँचल
और शोक में डूब जाती है
profmanimohanmehta@gmail.com
ये दर्जन भर कविताएँ साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि कवि निष्णात है।
वह किसी भी दृश्य से काव्यतत्व निकालकर कविता बना देता है।
लेकिन, कवि के लिए वाहवाही बटोरने वाला यह हुनर बड़ी और बेचैन कविता की राह में अनुल्लंघ्य प्रतीत होती बाधा भी है।