पांच कविताएं / पंकज कुमार


नियंत्रण

जो समझता है आपकी भाषा
वही आपके नियंत्रण में आता है

चींटी नहीं समझती मनुष्य की भाषा
इसलिए वह मनुष्य के नियंत्रण में नहीं रहती

अगर होना है किसी के नियंत्रण से दूर
तो पहले उसकी भाषा से दूर होना होगा

 

आप माफ़ किये जा सकते हैं

आप माफ़ किये जा सकते हैं
आपने एक हत्या के बदले
कई लोगों की जान बख़्शी है

चाहते तो आप पूरी नाव डुबो सकते थे
आप गला सकते थे कई मासूम चेहरों को
तेज दुर्गंध मारते तेज़ाब से
खंभों में बांधकर पीट सकते थे उन मासूम मजलूम मजूरों को
जो खेत तक आते–आते हज़ार बातें कर लेते हैं
आप उन सैकड़ों ज़िंदगियों को गुल कर सकते थे
जो सांस पाती रहीं आपकी चिमनियों से निकलते धुंए से

आप मेट सकते थे
अन्याय के ख़िलाफ़ लिखी सारी इबारतें
आप स्थगित कर सकते थे लोगों की चलाचली
जंग छेड़ सकते थे आप
संहार कर सकते थे अल्पजीवी पुण्यात्माओं का
आप खड़ी करवा सकते थे जेल की मोटी–मोटी दीवारें

लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया
इस सभ्यता पर आपने बहुत बड़ा एहसान किया
लाख–लाख नामुराद ज़िंदगियों पर दया करके
सिर्फ़ एक की हत्या की

इसलिए आप माफ़ किये जा सकते हैं

 

जो मारे जा रहे जंग में

वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में
बंदूक का मतलब भी समझते होंगे
जानते होगें कि हवाई हमले क्या होते हैं
फिर भी मारे जा रहे जंग में

स्कूल भी गये होंगे
दोस्त भी बना पाये होंगे दो-चार से ज़्यादा
सबक के रूप में कोई कहानी या कविता याद हुई होगी उन्हें
जो मारे जा रहे जंग में

दशक भी नहीं गुज़रा होगा उनके जन्म का
अभी टूटे भी नहीं होंगे दूधिया दांत
भूले भी नहीं होंगे मां के स्तनों के कच्चे दूध का स्वाद
हज़ार से ज़्यादा सूर्योदय देख भी नहीं पाये होंगे
वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में

कौन बहस करे इस बात पर
उन्हें याद भी होगा कि नहीं
किसी फ़िल्म का कोई पसंदीदा दृश्य
मन को उमगा देने वाला कोई जादुई गीत
या किसी डांस का कोई फेमस स्टेप
सपने देख भी पाये होंगे
जद्दोजहद कर पाये होंगे कि नहीं
किसी चीज़ को पाने के लिए
वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में

रात तो देख पाये होंगे
पर आसमान के सभी तारे नहीं देख पाये होंगे
उनकी कम रौशनी वाली नयी आंखों को
झिलमिला कर भाग जाते होंगे तारे
एकदम नीला या लाल भभक्का
शायद ही देख पाये होंगे आसमान
वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में

जंग कितनी क्रूर है
सीधे कर ही पा रहे होंगे अपना पांव
ज़मीन पर मनमाफ़िक डग भर भी नहीं पाये होंगे
बिन अपराध क्यों सजा पा रहे
वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में

दुनिया के हितैषियो!
शांति के पक्षधरो!
मूकदर्शक-सा चुपचाप तुम्हें देख
घूर रहे हैं
फिलिस्तीन के
वे बच्चे
जो मारे जा रहे जंग में

 

नग्नता का दर्शन

नग्नता को भव्य कहने का प्रचलन इतना बढ़ा है
कि वह हुआ जा रहा है नंगा
और समेट रहा है अपनी भुजाओं में
कोई नंगी आदम प्रतिमा

वह उन तस्वीरों पर कुर्बान होना चाहता है
जिनमें जान डालती है नग्नता
उस कला को ख़ारिज कर देता है
जिसके पास नहीं है
नग्न होने का सुंदर विधान

वह गीत ग़ज़ल दोहा सब कुछ चाहता है
बस नग्नता को बढ़ाने के लिए
उसे बनाने के लिए सौंदर्य का सबसे ऊंचा प्रतिमान
वह तोड़ देना चाहता नदी का बांध
एक बार देख लेने को पृथ्वी की नग्नता

वह सनकी पागल मदारी नहीं है
वह इस युग का सबसे अच्छा गुणग्राहक है
वह उसी घर में रहना पसंद करता है
जिसकी दीवार में लगी हो नंगी तस्वीरें
इस ज़माने की सुप्रसिद्ध अभिनेत्रियों की

वह अपना रौब जामाता है
खुले आम उतरवाता है शरीर से कमीजें
जो ढंके रहने की करता रहा असफल कोशिश
उसे खूब समझाता है
नग्न होने का सफल दर्शन

 

जिन्होंने मुझे बचपन में प्यार किया

ढूंढने पर भी अब नहीं मिलेंगी
वे लड़कियां
जिन्होंने मुझे बचपन में प्यार किया

वे ब्याह दी गयीं
बाप और भाई के मनमाफ़िक घर-वर देख
दूर-दराज़ के गांवों और शहरों में
उन्हें गये इतने-इतने दिन हो रहे हैं
कि वे भूल गयी होंगी मायके

प्रतिभावान थीं
वे लडकियां
तमाम रोक-टोक के बाद भी
भरपूर जीने का प्रयास कर रही थीं
कई तो स्कूलों में सालों पुरस्कृत होती रहीं
कई ने तो विधि-विधान के हर गीत याद कर रखे थे
वे पूरी रात माइक पर गाते हुए बारातियों का खूब स्वागत करतीं
वे कार्तिक मास में अधरात तक खेलतीं जट-जटिन का खेल
पूरे उन्माद में गातीं प्रेम गीत
सुबह मुंह अंधेरे ही कार्तिक स्नान करतीं

वे लडकियां
पढ़-लिख ज़्यादा नहीं पायीं
किसी ने मैट्रिक तो किसी ने इंटरमीडिएट ही किया
ज़्यादातर तो मिडिल से आगे नहीं बढ़ पायीं
क्योंकि वे पढ़ लेतीं तो बिगड़ जातीं
जैसे बिगड़ गयी थी कायस्थ टोले की सोनिया
जो नौकरी पाते ही
निकल भागी घर से अपने अज़ीज़ प्रेमी के संग

वे सभी लडकियां
अब देखती होंगी घरों में बच्चे
बच्चों के बीच पनप रहा दुधिया प्यार
याद आता होगा अपना बचपन
बचपन में किया गया प्यार
जिसे वे मन में घोंट देती होंगी
या अपने को ही झुठला देती होंगी

आज कितनी भी प्रतीक्षा कर लूं
आस लगा लूं कितनी भी
लौट कर अब नहीं आयेंगी
वे लड़कियां
जिन्होंने मुझे बचपन में प्यार किया

शोध-छात्र, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय

pankajmaheshpur13397@gmail.com

 


1 thought on “पांच कविताएं / पंकज कुमार”

  1. अच्छी कविताओं के लिए भाई पंकज जी को साधुवाद, आपने जहां प्रेम के एक पक्ष को पकड़ने की कोशिश की वही समाज में व्याप्त कुछ व्याधि पर भी लिखने का प्रयास किया, अच्छा प्रयास है

    Reply

Leave a Comment