डिप्टी कलेक्टरी: एक पाठकीय नज़र / माधव महेश
कथाकार अमरकांत के इस जन्मशती वर्ष में आप पहले ‘ज़िंदगी और जोंक’ पर चंचल चौहान का लेख पढ़ चुके हैं।
कथाकार अमरकांत के इस जन्मशती वर्ष में आप पहले ‘ज़िंदगी और जोंक’ पर चंचल चौहान का लेख पढ़ चुके हैं।
‘एक भ्रांति है कि किसी नामचीन आलोचक के फ़तवे से कोई कहानी महान हो सकती है। वह कालजयी तो अपनी
‘द बुक थीफ़ ‘ को अक्सर ‘एक युद्ध में फँसी बच्ची की कहानी’ समझा जाता है, लेकिन यह भाषा की
इसे सचमुच लेख नहीं, मसौदा ही समझिए! मसौदे को सुझावों-संशोधनों के लिए सार्वजनिक किया जाता है। यहाँ भी उद्देश्य वही
साहित्य-दृष्टि वस्तुतः जीवन-दृष्टि का ही विस्तार है, यह बात चेखव पर लिखी गई महेश मिश्र की इस छोटी और गहरी
“राष्ट्र-राज्य की अवधारणा किस तरह सांस्कृतिक शुद्धता की अवधारणा से जुड़कर अंध-राष्ट्रवाद की ओर बढ़ती है, इसे कृष्णा सोबती अपने
‘रामेश्वर प्रशांत की कविताओं में प्रकृति की कठोरता चित्रित है तो प्राकृतिक उपादानों के माध्यम से दुराचारियों-अत्याचारियों की करतूतों का
2022 में हरित साहित्य/ग्रीन लिटरेचर पर केंद्रित एक ऑनलाइन फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में इस विषय पर बोलने का मौक़ा मिला
‘समाज की तश्कील-ए-नौ (नया आकार देना) एक मंसूबे पर मुन्हसिर है और इसके लिए एक तंज़ीम की ज़रूरत है।’– तरक़्क़ी