पांच कविताएं / माधव महेश


हमारे समय के एक सजग युवा की चिंताएं, अवसाद और खुशियां माधव महेश की कविताओं में गहरी संवेदना के साथ व्यक्त हुई हैं। पढ़िए, विषयों का एक विस्तृत दायरा घेरती उनकी पांच कविताएं :

——————————————————————

धमाका 

सुना जाता है
पांच शताब्दी पहले आए
एक तुर्क ने ढहा दिया था
हमारे आस्था के मंदिर को

धीरे धीरे यह हवा ज़र्रे ज़र्रे से निकल
समा गई हमारे फेफड़ों में
फेफड़ों में भरी हवा का
दबाव इतना इतना बढ़ गया
कि ढह गया एक और आस्था का मंदिर

कुछ दशकों बाद एक बार फिर से
बढ़ने लगा था फेफड़ों में भरी हवा का दबाव
लेकिन इस बार हवा सिर्फ फेफड़ों में ही नहीं
बल्कि भरी थी सिंहासन में भी
जिसका असर इस कदर हुआ कि
आस्था का मंदिर ही नहीं
बल्कि लोगों के मंदिर भी टूटने लगे
किसी का छत गया
तो किसी की ज़मीन

लोग बहुत रोए बिलखे
बताने की कोशिश की
कि उनके फेफड़ों में भी भरी है हवा
उन्होंने जांच कराने की गुज़ारिश भी की
पर उनकी एक न सुनी गई
सिंहासन किसकी सुनता है

सुना है अभी वहां के लोगों ने एक धमाका किया है ।

_________________

सलाम नमस्ते 

दोस्त के अभिवादन के जवाब में
नमस्कार की जगह सलाम करने लगा हूं

ऐसा नहीं है कि
इस्लाम के प्रति आस्थावान हो गया हूं
ऐसा भी नहीं कि
इस्लाम ने अपनी श्रेष्ठता साबित कर दी है
और ऐसा भी नहीं कि
दोस्त पर बहुत प्रेम उमड़ आया है

दरअसल
वह सलाम की जगह
नमस्कार करने लगा है।
_______________

तरक्की 

पत्नी कहती है
देखो कुत्ते रो रहे हैं
मैं नींद में ही कहता हूं
ठंड बहुत है सो जाओ

कुछ देर बाद फिर कहती है
देखो बिल्ली भी रो रही है
मैं अर्ध निद्रा में ही कहता हूं
भूखी होगी, सो जाओ तुम
कल मुझे आफिस भी जाना है
किसी अनिष्ट की आशंका में
वह रात भर बदलती रही करवट।

सुबह पड़ोस के जनरल स्टोर से लौटकर कहता हूं
तुम बेकार ही रात भर बैठी रही
आशंका के बादल लिए
देखो सब ठीक ठाक है
वह मुझे चाय देकर
लग जाती है रसोई में।

चाय की पहली घूंट के साथ
पलटता हूं अखबार का पहला पन्ना
गांधी व अंबेडकर की प्रतिमा तोड़ दी गई
चाय के अगले घूंट के साथ
बढ़ता हूं अगले पन्ने पर
अमेरिका में नौकरी से निकाले गए हज़ारों भारतीय ।

हजारों साफ्टवेयर इंजीनियर्स का
भार लिए पहुंचता हूं आफिस
पहली ही मेल में देखता हूं
रिलीज़ कर दिया गया है प्रोजेक्ट से
यह कहते हुए “क्लाइंट के पास बजट कम है”
रिसोर्सेज कम करने हैं।

गीले टाइल्स की फिसलन से वाक़िफ
जाता हूं लिंक्डइन पर
जहां दिखती है टी एल की एक पोस्ट
“वांट अ जाब फार एनी लोकेशन”
उसकी डी पी से निकलकर
यूनिफॉर्म में खिलखिलाती उसकी बेटी
आ जाती है मेरे सामने

मनहूसियत को दूर करने जाता हूं कैफेटेरिया
जहां पहले से ही एक कलीग
भर रहा है कॉफी की ताज़गी अपने भीतर
वह सुनाता है क़िस्से
कैसे पटा रखा है उसने एक जूनियर को
अगले हफ़्ते दोनों जा रहे हैं ट्रिप पर

उसके क़िस्सों से बचते बचाते
दाखिल होता हूं लिफ्ट में
जहां टकराती है मेरी एक्स
हेलो हाय के बाद, बातों बातों में बताती है
उसे करनी है शॉपिंग एक ट्रिप के लिए
कुछ देर मेरी तरफ़ देखते हुए कहती है
दुनिया कितनी बदल गई है
तुम्हें भी बदल जाना चाहिए।

पूरे दिन की थकान, चिंता व ईर्ष्या को
चाय की चुस्कियों से दूर करते
बैठा हूं पत्नी के साथ
टीवी देखते हुए दागती है एक सवाल
देश दुनिया कितनी तरक्की कर रही है
तुम्हारी तरक्की कब होगी।
___________________

न्याय

सभी को मरना है एक दिन
यह जानते हुए भी
मैं किसी के मरने की कामना नहीं करता
कम से कम बीमारी से तो बिल्कुल नहीं
फिर चाहे वह अपराधी ही क्यों न हो

मेरी दुआओं में हमेशा रहेगा
यदि कोई अपराधी मरे
तो उसे सूली पर लटकाया जाए
या किसी दंड संहिता के फलस्वरुप
सज़ा दी जाए।

मैं नहीं चाहता
कोई सड़क पर मरे
अगर वह अपराधी है
तो ठोकर लगने से कतई न मरे
गर उसकी मौत सड़क पर ही होनी है
तो जनता के हाथों ही हो
जैसे मुसोलिनी की।

मैं नहीं चाहता
घर में कोई एकाएक ही मर जाए
लेकिन वह अपराधी है
तो पैर फिसलने से कतई न मरे
यदि उसकी मौत घर में ही होनी है
तो वह अपनी ही गोली से मार के मारे
जैसे हिटलर।

मैं चाहता हूं
हर अपराधी को याद किया जाए
अपराध के साथ साथ सजा के लिए भी
न कि उसकी मौत के लिए।
___________________

पृथ्वी को खेल का मैदान होना चाहिए

ज़मीन के नीचे दबे हमारे पुरखे
बच्चों को खेलता देख मुस्काएंगे
उनकी मुस्कानों से
मुस्काएंगे फूल
झूम उठेंगी सारी दिशाएं
हमारी बेरंग दुनिया
रंगों से भर जाएगी।

बच्चे भरेंगे उड़ान खुले मैदान में
उनके साथ तितलियों से तोते तक
बिखेरेंगे अपने रंग
मोर को नाचता देख
नाचते नाचते
खिलखिला पड़ेंगे बच्चे
उनकी खिलखिलाहट से
खिलखिला उठेगी
पूरी की पूरी पृथ्वी।

वर्षों से इंतज़ार कर रहे हमारे पुरखे
चूमेंगे बच्चों के पांव
भर जाएंगी उनकी नसें
उम्मीदों और खुशियों से
उनकी खुशी देख
छलछला पड़ेंगे बादल
भिगो देंगे रोम – रोम
हमारे पुरखों का
वे भी शामिल होंगे
बच्चों की घुड़दौड़ में
वे फिर से जी उठेंगे।

mmm.madhav@gmail.com


8 thoughts on “पांच कविताएं / माधव महेश”

  1. माधव हमारे समय के बेहद सजग युवा हैं। वैचारिक रूप से उनकी परिपक्वता हमें प्रभावित करती है। ये कविताएँ भाषा, संवेदना, अनुभव और विचार के योग का शानदार प्रतिफलन हैं। अच्छी कविताओं के लिए साथी माधव महेश को हार्दिक बधाई।

    Reply
  2. बहुत अच्छी और सजग कविताएँ,माधव हमारे समय के एक सजग युवा है उनके विचार और भाषा दोनों स्पष्ट है कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं ,उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ ।

    Reply
  3. कविताएँ वही अच्छी हैं ,जिसमें हमारा समय बोलता है..माधव की वैचारिकी जितनी स्पष्ट है ,उतनी ही कहन में ये कविताएँ स्पष्ट हैं..सीधे सीधे अपनी बात संप्रेषित तो करती हैं लेकिन कविता के शिल्प को नहीं छोड़तीं.माधव यूँ ही लिखते रहें ,उनके लिखने से लेखन के प्रति आश्वस्ति बनी रहती है..

    Reply
  4. “ज़मीन के नीचे दबे हमारे पुरखे
    बच्चों को खेलता देख मुस्काएंगे
    उनकी मुस्कानों से
    मुस्काएंगे फूल
    झूम उठेंगी सारी दिशाएं
    हमारी बेरंग दुनिया
    रंगों से भर जाएगी।”
    स्वार्थपरक सियासत और नफरतों की फसल काटते वक़्त में इतनी सुन्दर और सुकून देती कामना को उकेरती पंक्तियों के लिये माधव भाई को बहुत बहुत साधुवाद। माधव की कविताएँ चिंतन मनन को प्रेरित करती है। आप यूँ ही सृजनशील रहें। हार्दिक शुभकामनाएँ आपको। 💐

    Reply
  5. माधव महेश को इन कविताओं के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। उनकी कविता का परिसर विस्तार लेगा, कविताएं इसका उदाहरण है।

    Reply
  6. माधव की हर कविता लाजवाब है। इनमे इतिहास, तकनीक और मासूमियत के साथ जो तंज़ है वह माधव के डाइमेंशन की अक्कासी करता है।

    बेहद सरल शब्दों की अदायगी के साथ जिस तरह से छोटे और बड़े मुद्दों को समेटा है उसने रचना और रचनाकार को कामयाब किया है।

    हर कविता अलग-अलग समीक्षा की दरकार करती है।

    इसी सरलता और सादगी के साथ ये तेवर बरक़रार रहें।
    भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।

    Reply
  7. माधव की ये कविताएं अपने कथ्य और कहिन से प्रभावित करती हैं।कितनी सहजता से सलाम नमस्ते की व्यंजना अपना असर छोड़ती है।सभी कविताएं अच्छी लगीं।तरक्की बेहतरीन है। कवि को बहुत शुभकामनाएं।

    Reply

Leave a Comment