तानाशाह अपनी मुस्कान बिखेर रहा था
मूंछें होतीं तो तन गयी होतीं
पेंट कमीज़ पहन रहा होता
तो उसकी मसकें बाहर उभर जातीं
जिंस की शक्ल चुस्त हो जाती
कुल मिला कर
वह हत्यारा ही दिखता
विरोध करने वाले
धाराओं के अंदर गिरफ़्तार थे
कुछ बेरहमी से पीटे जा रहे थे
कुछ सड़कों पर घसीटे और
कुछ के कॉलर पुलिस के हाथ में थे
ऐसा वातावरण
केवल आपात समय में दिखता था
कि पुलिस एवं महकमे के लोग
ही सड़क पर थे
सबकी निगरानी में
दीवारें गिरायी जा रही थीं
जिन्होंने क़सम ली थी
सेवा करने की
वे दरिंदगी से खुशी में झूम रहे थे
तानाशाह एक नया प्रयोग करता है
मशीन का प्रयोग आदमी के ख़िलाफ़
नियम और क़ानून का प्रयोग
लोगों के विरूद्ध जाकर
एक ऐसे क़ानून का हवाला देता है
जो कभी अस्तित्व में न था
लोगों के खून खौल तो रहे थे
पर जैसे हमेशा चुप रहते हैं
आज भी चुप थे
पूरी सड़क
पुलिस के उच्च अधिकारियों से लगायत
शहर के सभी आला अफ़सरान से भरी थी
ये सभी बुलडोज़र का कार्य कर रहे थे
हवा में दीवारों के टूटने से
धूल भर चुकी थी
बच्चे घरों को टूटते हुए
विस्फारित नज़रों से निहार रहे थे
घरों के मालिक सिर पकड़े
इधर उधर टहल रहे थे
कुछ बुजुर्ग आंसू टपका रहे थे
औरतें रोज़ की तरह खाना निपटा कर
अपने घर वाले को बुला रही थीं
औरतें गुस्से में थीं
लेकिन हमने उन्हें केवल
खाना बनाने तक ही सीमित रखा
वे टूट चुकी थीं
और घरों के पर्दे ठीक कर रही थीं
व्यवसायी अपनी दूकानों में तब्दीली कर रहे थे
हम कह सकते हैं तोड़ने के लिए निमंत्रण
अपनी दूकान संवारने में लगे थे
खोमचे वाले, ठेले वाले सभी
बहुत पहले से निष्कासित थे
निश्चिंत लग रहे थे
अपना सामान बेचने में मशगूल
हो सकता है आज तोड़ने वाले भी
कुछ सामान खरीद ही लें
भीख मांगने वाले रोज़ की तरह
आज भी गीत गा रहे थे
आज लगता है कुछ पैसे ज़्यादा ही मिल गए
दुआएं और प्रार्थनाएं
आज भी चल रही थीं
जब आदमी ही आदमी का दुश्मन है
तो इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता
स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी बंद कर दिए थे
लड़के घरों में कैद थे
जिन लड़कों के घर टूट रहे थे
वे इसलिए खुश थे कि
दूसरों के भी जल्द ही टूटेंगे
लड़कियां परेशान थीं
उनका वाइवा होने वाला था
वे पढ़ नहीं पा रही थीं
मोबाईल कनेक्ट नहीं हो रहा था
टीचर, प्रोफेसर कुछ भी करने में असमर्थ थे
प्रतिरोध जहां सिखाया जाता है
वहीं पर दण्डात्मक कार्य पैदा होने लगा
आखिर क्या बात है
कोई सूरत नहीं सूझ रही
हमारी पढ़ाई हमारे काम नहीं आ रही
कितनी अजीब बात है
पढे हुए लोग ही
कहर ढाने में आगे हैं
इसीलिए पढ़ाई काम नहीं आ रही
मुझे याद है
पूरे देश की बिजली पांच मिनट
लोगों ने बंद कर दिया
यह भी याद है
रोज़गार पैदा करने के लिए
लोगों ने थाली पीटा था
मैं बखूबी जानता हूं
मंदिर पर हमले की आशंका में
लोगों ने घरों पर
ईंट पत्थर बालू इकट्ठा कर लिया था
लोग अनायास ही छतों पर जागने लगे
कॉलोनियों में पहरा देने लगे
लोगों को लाठियां मुहैया कराई गयीं
लोगों ने यह नहीं समझा
वे क्या कर रहे हैं
क्यों कर रहे हैं
किसके लिए कर रहे हैं
जबकि सेब बेचने वाला
रोज़ कॉलोनी में आ रहा है
चाट वाले से लोग रोज़ चाट खा रहे हैं
खोमचे वाले कौन है
मैं तो नहीं जानता
लेकिन चाट बहुत चटखारे लेकर खाया जाता है
बल्कि और तीखा करके लोग खाते हैं
देश की जो तीसरी धुरी है
उसका एक पहिया टूट चुका है
एक पहिया राजनीति के दल-दल फंस चुका है
एक पहिया उधार दे दिया गया है
अब जो अनपढ, गंवार, अशिक्षित जुड़े हैं
उनकी समस्या यह है कि
ढलती उम्र में कहां जाएं
क्या करें
समस्या यह है कि धतूरे की तरह
बीच रास्ते में वे खड़े हैं
हवा के साथ हिल रहे हैं
कभी कभी ज़मीन तक झुक भी जाते
जिसका मतलब केवल उनके अस्तित्व से है
भोपूं रोज़ बजता है
कहां बजता है
कोई नहीं जानता
घंटा रोज़ हिलता है
कौन हिलाता है
कोई नहीं जानता
हम अंधकार में ज़िंदा रहने को
शापित हैं
लेकिन नहीं
हम बोलना नहीं छोड़ेंगे
हम लिखना नहीं छोड़ेंगे
यह बोलना और लिखना ही
तानाशाह की नींद उड़ा देगा
00
vedprakash1263@gmail.com
लंबी कविता को बांधे रखना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। कविता कई जगहों पर इस जिम्मेदारी से चूक गई है। कई जगह कवि अपनी ही बातों को खारिज करते नजर आ रहे है। कई जगह ऐसे तथ्य, बिम्ब घुसेड़े गये है जिसकी उपस्थिति कविता को बोझिल बना रही है।
लोगों का दर्द बयां करती, ताकत देता रचना. बधाई हो.