इब्बार रब्बी की यह कविता एक रची जा रही शृंखला की पहली कड़ी है, इसलिए ‘पहला छापा’। दूसरे, तीसरे और चौथे छापों की दास्तानें भी आएंगी। पिछले दस सालों में जिस-जिस तरह के छापे पड़े हैं, उनकी ख़बर लेती हुई लिखी गई और लिखी जा रही इन कविताओं के बगैर हिन्दी कविता अधूरी रहती।
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पहला छापा
पहला छापा रजक राम के यहां
अंदर प्रर्वतन वाले बाहर आयकर, केन्द्रीय अन्वेषण
और सीमा सुरक्षा बल के अग्निवीर
झोपड़ी में मिले खंडित भग्न मृद भाण्ड
किलो भर बेझड़, मडु़आ के बीस दाने और आधा कुल्हड़ ताड़ी
जर्जर झिंगोले पर रोगिणी गृहणी और बूढ़ा गर्दभ ‘धैर्य धन’
न स्वर्ण मुद्रा न रजत न कोई आभूषण या मणिमाणिक्य
न लक्ष लक्ष कोटि कोटि आरक्षित बैंक प्रचारित भोज पत्र भंडार
कुछ मिले या न मिले हमारे पास प्रमाण हैं कृष्ण धन के
साक्ष्य हैं धन शोधन के
जारी है प्रवर्तन का प्रश्न व्यूह निरुत्तर अभिमन्यु
फिर आयकर करेगा। प्रतीक्षारत है केन्द्रीय अन्वेषण विभाग
चार हुई अष्ट हुई घंटिकाएं दस से द्वादश हुईं
जारी है शोध अन्वेषण अर्थात पूछताछ
स्विस बैंक में या किस बैंक में खाता है
अधेड़ है पर सुंदर है धोबन क्यों?
तुम लंबे वह नाटी क्यों?
तुम गौरवर्ण पुत्र श्याम क्यों?
पुत्री का कद छोटा क्यों?
काट कर सेवन करते हो या चूसकर अम्ब का?
कहां से आता है ‘धैर्य धन’ का तृणमूल यानी शुष्क शस्य?
त्सिन ? पवित्र स्थान? या आंगलिस्तान से?
दुर्बल है ‘धैर्य धन’ पर उदर फूला क्यों है?
उसका एक्स रे होगा तो बरसेंगे डालर और येन
साक्ष्य नष्ट किये तुमने चलेगा वाद
खोदो खोदो मिलेंगी स्वर्ण मुद्रा रजत मुद्रा
प्रस्वेद प्रस्वेद जांच दल
कुछ तो मिले दाल तो गले
ढहा दो झोपड़ी उलट दो छप्पर तोड़ दो कवेलू
तृण तृण छानो शुष्क शस्य का
रक्षा प्रयोगशाला जायेगी संदिग्ध मृदा
अग्रहीत चिथड़ा चीर की लीर लीर
बाइस धाराएं लगाओ दंड संहिता की
क्या तृतीय डिग्री पर उगलोगे अपराध?
कहां छिपाए हैं साक्ष्य धन शोधन विदेशी संपर्क के
खर दूषण शांत भूषण प्रशांत भूषण कपिल मुनि
अभिषेक सैंधव कोई भी बचा नहीं पायेगा
हम खोज कर मानेंगे दशानन से संबंध
वस्त्र शोधन तो व्याज था धन शोधक थे तुम रावण के
कृष्ण धन का लंका से करते थे व्यवहार
जब तक प्रमाण नहीं मिलते तिहाड़ में सड़ोगे तुम
शताब्दियों तक नहीं मिलेगी जमानत
जल पान तक के लिए नहीं मिलेगी सिरकी न इंसुलिन
एड़ी घिस घिस कर मरोगे
अधिग्रहण करो फोन लैपटाप
मेघनाद कुंभकर्ण के परिधान धोते थे
विभीषण के क्यों नहीं?
हमारे दल में आ जाओ
न्याय प्रिय धर्मप्रिय लोकप्रिय पुरुषोत्तम हैं
परम नैतिक देशप्रिय नर श्रेष्ठ
विभीषण की शुष्क शोधन यांत्रिकी में
धोकर साफ शफ़्फ़ाक कर देगें तुम्हें भ्रष्टाचार मुक्त श्वेत धन युक्त
दुराचारी को सदाचारी देशद्रोही को देशप्रेमी बना देंगे
हमारी गंगा में नहाओ पाप मुक्त हो
मंत्री पद पाओ
‘धैर्य धन’ मत बनो
विपक्ष को देते हो छंद
खंड खंड पाखंड दल के सदस्य
नागर नक्सल
संस्कृतिविहीन बुद्धिहीन बुद्धिजीवी कहीं के
धोबी नहीं देशद्रोही
यवन और म्लेच्छों की जारज संतान
राजद्रोही सेकुलर हो क्या!
ज ने वि के रंगे सियार धूर्त मक्कार
ललित, नीरव, विजय और प्रज्जवल की तरह चुपचाप
जंबुद्वीप देवभूमि प्यारी गोबर भूमि से निकल आओ
गांधी नेहरू के कांग्रेसी काने कारतूस
पवित्र स्थानी शुद्ध स्थानी सिंहल द्वीप में जा मरो डूब जाओ
( 07.03.2024 )
संपर्क: +911135719292
सामयिक और सार्थक कविता
समसामयिक कविता।
समकालीन राजनीतिक परिदृश्य का उत्कृष्ट व्यंग्यात्मक चित्रण। तत्सम शब्दावली व्यंग्य को तीखी धार देती है। लेकिन कविता का आंतरिक तर्क कमजोर है।
इब्बार रब्बी जिंदाबाद!
हमारे समय का सच्चा यथार्थ है यह कविता।
अद्भत, अद्भुत, अद्भुत। यथार्थ में कविता। कविता में यथार्थ। भाषा में अर्थ, अर्थ में वस्तु। वस्तु में वास्तु, वास्तु में निहित रब्यार्थ।
Wah Rabbi ji.. bahut khoob!
छापा श्रृंखला की कविताओं में पहला छाप। उल्लेखनीय और उत्कृष्ट है लेकिन अगले छापा को पढ़ने के बाद ही मूल मंतव्य स्पष्ट हो पाएगा