व्यक्ति-स्वातंत्र्य जिस पूंजीवाद का ऐतिहासिक नारा रहा है, उसके पास निगरानी और नियंत्रण की अकूत ताक़त है और उसके रहते व्यक्ति-स्वातंत्र्य एक दुराशा से अधिक कुछ नहीं। फ़िल्म CTRL पर लिखी गई इंद्रजीत सिंह की समीक्षा इस पहलू को बखूबी उभारती है।
इंद्रजीत सिंह साहित्य और सिनेमा में गहरी रुचि रखते हैं और अभी दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए पूर्वार्द्ध के विद्यार्थी हैं।
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विज्ञान और तकनीक का विरोध करना किसी मूर्खता से कम नहीं समझा जायेगा या जाता है। लगातार इस क्षेत्र में विकास हो रहा है, नयी तकनीकें तेज़ी से उभर रही हैं। वर्तमान दौर में सबसे अधिक चर्चा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की हो रही है। जिस गति से इसकी स्वीकार्यता देखने को मिल रही है, उसके अनुसार कहा जा सकता है कि आने वाला समय एआई का है।
एआई किस प्रकार चेतन और अवचेतन मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकता है, किस प्रकार यह कंट्रोलिंग का एजेंट बन कर उभर सकता है, इसे बखूबी CTRL फ़िल्म में दर्शाया गया है। इस फ़िल्म में यह भी देखा जा सकता है कि किस तरह विज्ञान और तकनीक सदा से ताक़तवर वर्ग के लिए सेवक और सहायक साबित होते आये हैं। फ़िल्म में मंतरा नामक कंपनी लोगों के डाटा कलेक्ट कर तथा उन्हें निगरानी में रखकर पूरी तरह से नियंत्रित करने का काम करती है। इतिहास इसका गवाह है कि तकनीक/प्रौद्योगिकी का सबसे अधिक लाभ ऐसे ही वर्ग को मिला है जिसका राजसत्ता पर क़ब्ज़ा, और इसीलिए समाज की तमाम गतिविधियों एवं उनके कर्त्ताओं पर नियंत्रण, रहा है।
इस फ़िल्म में ‘नेल्ला’ के अपने ब्वॉयफ्रेंड ‘जो’ से ब्रेकअप होने के बाद वह अपने एआई असिस्टेंट ‘एल्लेना’ की सहायता से ‘जो’ के साथ की सारी तस्वीरों से ‘जो’ को मिटा देती है। दूसरी तरफ़ ‘जो’ एक टीम के साथ काम करते हुए मंतरा की डाटा चोरी और लोगों पर नियंत्रण करने की नीति का पर्दाफ़ाश करने की कोशिश करता है। मंतरा के मालिक ‘आर्यन के.’ को इसकी ख़बर लग जाती है, जिसके बाद वह ‘जो’ और उसके साथियों की बारी-बारी से हत्या करवा देता है। मंतरा और आर्यन के. की साज़िश का खुलासा करते हुए ‘जो’ की एक विडियो नेल्ला के हाथ लगती है जिसे नेल्ला सोशल मीडिया पर अपलोड करती है, लेकिन अपलोड होने के बाद उसकी वॉइस अपने-आप एडिट हो जाती है। एआई की सहायता से एडिट हुई विडियो में मंतरा और आर्यन के. की जगह नेल्ला दोषी करार दी जाती है। वह पुलिस हिरासत में चली जाती है। मंतरा के वकील की चेतावनी पर नेल्ला कंपनी से समझौता कर बाहर आ जाती है। वह फिर से नयी ज़िंदगी की शुरुआत करना चाहती है लेकिन लोगों के लिए अस्वीकार्य होने के कारण फिर से एआई असिस्टेंट की गिरफ़्त में चली जाती है।
एल्लेना एआई असिस्टेंट के रूप में नेल्ला की ज़िंदगी में आता है लेकिन उसकी नेल्ला पर पूरी तरह से निगरानी रहती है। वह कब किससे, क्या बात कर रही है? वह किससे मिलने जा रही है? सब पर उसकी नज़र है। यहाँ तक कि वह कई फ़ैसले खुद ही लेकर रिप्लाई भी करता है और नेल्ला उससे बेख़बर रहती है। वह नेल्ला की डिजिटल लाइफ़ से लेकर पर्सनल व सोशल लाइफ़ तक पर नज़र रखता है। ऐसी स्थिति में यह भूलना आत्मघाती साबित हो सकता है कि ऐसा एआई असिस्टेंट किसी कंपनी की निर्मिति है, और उस कंपनी के एजेंट (जासूस) की रूप में काम करता है। वह हर वक़्त कंपनी का लाभ चाहता है और चाहेगा, क्योंकि उसका फंक्शनिंग कंट्रोल कंपनी के हाथ में है।
ख़ास तौर से यह देखा जा सकता है कि किस प्रकार समाज पूंजीवाद के नये हथकंडे की गिरफ़्त में जा रहा है। ज़िंदगी का हर फ़ैसला किसी और के नियंत्रण में है। हम अपने लिए कुछ नहीं करते, एक कृत्रिम दुनिया के बीच अपना स्थान बनाने के लिए करते हैं, और वह भोक्ता के नियंत्रण से परे किसी अप्रत्यक्ष ताक़त के नियंत्रण में है। चाहकर भी उससे बाहर नहीं निकला जा सकता है। ग़रज़ कि इस फ़िल्म के माध्यम से विज्ञान और तकनीक पर कई सवाल खड़े किये गये हैं।
अपनी सत्ता क़ायम रखने के लिए सत्ताधारी या पूंजीपति किस हद तक जाते/जा रहे हैं, यह ‘जो’ और उसके साथियों की हत्या से मालूम पड़ता है। इन्हें एकाधिकार चाहिए, उसके लिए जिस हद तक जाना है, वे जाएंगे। आवाज़ कुचलने का रिवाज आज बखूबी निभाया जा रहा है। जिस पैकेजिंग के साथ ये पार्सल भेज रहे हैं, उसी पैकेजिंग के साथ आपको स्वीकार करना है। अगर कुछ भी शिकायत की तो आपके साथ भी वही होगा जो ‘जो’ के साथ हुआ या आपको देशद्रोही आदि-आदि आरोपों के तले दबाकर शांत कर दिया जायेगा या मुक़दमों में उलझाकर सींखचों के पीछे बंद कर दिया जाएगा। कुछ ऐसा ही इस फिल्म में नेल्ला के साथ होता है, जिसे अंत में शांत होकर जीवन व्यतित करने पर मजबूर होना पड़ता है। इस पर यह भी सवाल खड़ा हो सकता है कि क्या एआई नये सिरे के फ़ासीवाद को जन्म दे रहा है?
मनोरंजन की दृष्टि से देखा जाए तो फ़िल्म थोड़ी उबाऊ लग सकती है। सिने-कला के विभिन्न पहलुओं पर भी तौलने की कोशिश करेंगे तो बहुत सारी कमियां नज़र आ सकती हैं। बात इसकी प्रक्रिया पक्ष की करें, जो अंत की ओर ले जाने वाली डिटेलिंग का हिस्सा है, तो सबसे अधिक अधूरापन इसी में है। अच्छा होगा कि संदेश और सवाल को केंद्र में रखकर ही इसे देखा जाए। फ़िल्म एक लंबी बहस के लिए राह खोलती हुई समाप्त होती है।
फिल्म का विवरण : नाम – CTRL, अवधि – 99 मिनट, निर्माता – निखिल द्विवेदी, आर्या मेनन, निर्देशक – विक्रमादित्य मोटवणे, कथा – अविनाश संपथ, पटकथा – अविनाश संपथ, विक्रमादित्य मोटवणे, संवाद – सुमुखि सुरेश
संपर्क : 7320901601
अच्छी समीक्षा।
बधाई।
CTRL एक ज्वंलत विषय को लेकर बनाई गई है।
विचारणीय मुद्दा है।
आपकी समीक्षा की बदौलत अब इस फिल्म को देखने की ख्वाहिश है।
इसका अर्थ है कि पूंजीवाद तो फिर चलता ही रहेगा, परिवर्तन का नियम भी खत्म, अन्तरविरोधो का नियम भी पूंजीवाद के आगे कुछ नहीं, सोशल मीडिया से जाग्रति जो हर युथ के पास आ या जा रही है, फिर उसका असर भी पूंजीवाद के हित मेँ ही रहेगा,
ये jack london स्टाइल समीक्षा निराशा ही भरेगी
लेनिन ने जैक london कि रचनाओं को खूब पढ़ा उनकी कमजोरिओ को भी उजागर किया,
दिकत हम मेँ है, हम ही नहीं समझ पा रहें, रास्ते कैसे बनाने है,
पूंजीवाद को खाली कोसने से, या उसे अकेले, अकेले मोर्चा लेने से पूंजीवाद की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता, वह पूंजी के बल पर कातिल hire करती है, 400% मुनाफे पर वह मालिक कि गर्दन कटवा देती है, वह अकेले व आम इंसान को कंहा बख्शेगी , फिर भी उसकी मौत भी तो किसी अन्य के हाथ में होंगी, जैसे पिछली व्यवस्थाओ की थी
लेनिन और मार्क्स दोनों ने पूरे विश्वास के साथ कहाँ विज्ञान का पक्ष अंततः समाजवाद के साथ खड़ा होगा
मिडिल क्लास के खेल तमाशों के बारे में उन्होंने, साफ साफ बताया है
हर चीज मार्क्सवादी नजरिये देखना, ही विज्ञान व्यवहार है
हमारी हरकत ही पूंजीवाद को जीवन प्रदान किये जा रही है
न कि कोई टेक्नोलॉजी
बहुत अच्छी समीक्षा। AI इस कारपोरेट व साम्राज्यवादी समय में बहुत ही खतरनाक है।-सुनील
बहुत अच्छी समीक्षा भैया जी
फ़िल्म को इंद्रजीत ने अपनी समीक्षा से जीवंत कर दिया है . पढ़ कर ही हम फ़िल्म देख लेते हैं .AI के बारे में हमारी आशंकाएँ ठोस वास्तविकता में विस्तार पाती हैं .बधाई और शुभकामनाएँ .
बेहतरीन समीक्षा है. एकदम नए विषय पर बनी फिल्म के बारे में आपका विश्लेषण सटीक है. ए आई के माध्यम से अब तो इंसान के मरने के दिन की भविष्यवाणी की जा रही है और उनका दावा है कि हमारी भविष्य वाणी 78 प्रतिशत तक सही होती है.
हरियश राय