कौशांबी हत्याकांड: पीड़ित को ही गुनहगार ठहराने की कला / बजरंग बिहारी तिवारी
राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल-दर-साल जाति आधारित हिंसा में कमी आने के स्थान पर
राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि साल-दर-साल जाति आधारित हिंसा में कमी आने के स्थान पर
जितने क़ानूनी और सामाजिक अधिकार स्त्री को अब तक मिले, वे सब साझा प्रयासों का फल हैं जिनका उद्देश्य है
जबसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है, हिंदू राष्ट्र बनाने के अपने लक्ष्य की
आरएसएस की मूल अवधारणा ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ एक ऐसी निरंकुश सामाजिक सत्ता की कल्पना है जो हर तरह की असमानता और
आज़ाद भारत के साढ़े सात दशक के सफ़र की दिशा-दशा को समझने के प्रयास में, देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और
आज़ादी के बाद के भारत के सामाजिक यथार्थ को समझने के लिए उस पहले सवाल से फिर जूझना ही पड़ेगा
आधुनिक दुनिया ने राष्ट्र-राज्य बनाये और क्षेत्रीय अखंडता के आधार पर उन्हें खड़ा किया, जिनका आधार समरस सांस्कृतिक पहचानों वाले
आदिवासी समस्याओं को न समझने की, लगता है, भारतीय शासक दल क़सम खा चुका है। औपनेवेशिक अंगरेज-शासकों द्वारा दिये गये
1 कवन सपेरा बीन बजावै न्याव, प्रसासन, बिधि-बिधायिका : सबका नाच नचावै जाति-धरम चिनगी परचावै, धूं-धूं लपट उठावै बेकारन क