भारत माता की जय के बीच / विष्णु नागर
विष्णु नागर की यह छोटी-सी कहानी हमारे समय पर एक गहरी टिप्पणी है। वे ब्योरों के नहीं, निचोड़ के उस्ताद
विष्णु नागर की यह छोटी-सी कहानी हमारे समय पर एक गहरी टिप्पणी है। वे ब्योरों के नहीं, निचोड़ के उस्ताद
बसंत त्रिपाठी की यह पूर्व-प्रकाशित कहानी ख़ुद ‘कहानी’ के बारे में है। और जितना यह ‘कहानी’ के बारे में है,
‘शांता देवी अब उत्तरों की प्रतीक्षा नहीं करतीं। उन्हें अब केवल अपनी बात कहनी होती है—चाहे कोई सुने या न
स्त्री-पुरुष के बीच मित्रता का संबंध इतना असंभव-सा क्यों है?–कोई 70-75 साल पहले इस समस्या को केंद्र में रखकर मुक्तिबोध
घर की सारी घड़ियों के बंद पड़े होने की समस्या के साथ पति-पत्नी में बातों का जो सिलसिला शुरू होता
क्या कोई ऐसी कहानी हो सकती है जिसमें घटनाएँ नदारद हों, फिर भी आपको एक क़ायदे की शुरुआत मिले और
इस वर्ष सलीम-जावेद द्वारा लिखित और यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘दीवार’ को रिलीज़ हुए 50 साल हो गये। इस
अलग-अलग समुदायों के बीच संदेह और नफ़रत के बीज बोनेवालों को सबसे बड़ी कामयाबी क्या होती है? वह यह कि
2024 के राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान से सम्मानित ‘राकिया की अम्मा’ को पढ़ते हुए किसी वरिष्ठ, तथापि अ-गरिष्ठ, उस्ताद