आज़ादी के 75 साल – दीर्घक्रांति से प्रतिक्रांति तक
आज़ाद भारत के साढ़े सात दशक के सफ़र की दिशा-दशा को समझने के प्रयास में, देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और
आज़ाद भारत के साढ़े सात दशक के सफ़र की दिशा-दशा को समझने के प्रयास में, देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और
आज़ादी के बाद के भारत के सामाजिक यथार्थ को समझने के लिए उस पहले सवाल से फिर जूझना ही पड़ेगा
आधुनिक दुनिया ने राष्ट्र-राज्य बनाये और क्षेत्रीय अखंडता के आधार पर उन्हें खड़ा किया, जिनका आधार समरस सांस्कृतिक पहचानों वाले
आदिवासी समस्याओं को न समझने की, लगता है, भारतीय शासक दल क़सम खा चुका है। औपनेवेशिक अंगरेज-शासकों द्वारा दिये गये
1 कवन सपेरा बीन बजावै न्याव, प्रसासन, बिधि-बिधायिका : सबका नाच नचावै जाति-धरम चिनगी परचावै, धूं-धूं लपट उठावै बेकारन क
1 माधौ! असंसदीय मत बोलो। भजन-कीर्तन जाप करौ जब, राम कहे मुंह खोलो।। जुबां-केसरी फांक के, सच बोलै से पहिले
नया पथ के जनवरी-मार्च 2021 अंक में प्रकाशित बजरंग बिहारी तिवारी का आलेख : ———————————————————————————————– क्रांतिकारी आह्वान ‘दुनिया के