बारह कविताएँ / संजीव कौशल
अपने संवेदनशील प्रेक्षण से कई बार चौंका देने वाले संजीव कौशल छोटी कविताओं के उस्ताद हैं। अपने आसपास की अतिसाधारण
अपने संवेदनशील प्रेक्षण से कई बार चौंका देने वाले संजीव कौशल छोटी कविताओं के उस्ताद हैं। अपने आसपास की अतिसाधारण
‘इस तरह के दंगों या सांप्रदायिक हिंसा के भड़कने के बाद अक्सर पूछा जाता है कि हिंसा की शुरुआत किसने
इब्बार रब्बी की यह कविता एक रची जा रही शृंखला की पहली कड़ी है, इसलिए ‘पहला छापा’। दूसरे, तीसरे और
विडंबनाओं की पहचान और उनकी सहज संप्रेषणीय अभिव्यक्ति राघवेंद्र प्रपन्न की कविताओं को विशिष्ट बनाती है। वे बिना अधिक शब्द
ये उस दौर के दुःख में शामिल कवि की कविताएँ हैं जिस दौर में कथावाचक हर कथा की समाप्ति के
अपने देशकाल को कहने से लेकर अपने-आप को कहने तक, संजय कुंदन की कविताओं में सादगी के साथ व्यक्त होने
2024 के राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान से सम्मानित ‘राकिया की अम्मा’ को पढ़ते हुए किसी वरिष्ठ, तथापि अ-गरिष्ठ, उस्ताद
सन 2000 में इन पंक्तियों के लेखक ने अपने बचपन के मुहल्ले में एक सिनेमा हॉल के बनने और बंद
कला कौशल की किताब ‘फ़ेसबुक तुक’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। संस्मरण और समीक्षा जैसी विधाओं को समेटती 772